G News 24 :SIR का विरोध लोकतंत्र की रक्षा के लिए है या घुसपैठियों को बचाने के लिए रचा गया ड्रामा !

 वोटिंग लिस्ट के अपडेट का विपक्ष द्वारा विरोध...

SIR का विरोध लोकतंत्र की रक्षा के लिए है या घुसपैठियों को बचाने के लिए रचा गया ड्रामा !

भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव प्रणाली की पारदर्शिता और मतदाता सूची की शुद्धता लोकतांत्रिक स्वास्थ्य का मूल आधार है। चुनाव आयोग द्वारा वोटिंग लिस्ट को अपडेट करने की प्रक्रिया एक नियमित, आवश्यक और संवैधानिक कवायद है, जिसका उद्देश्य है – फर्जी वोटरों को हटाना, मृत लोगों के नाम सूची से निकालना, नए योग्य मतदाताओं को जोड़ना, और स्थान परिवर्तन के अनुरूप सुधार करना। किंतु जब इस प्रक्रिया का विरोध विपक्षी दलों द्वारा किया जाता है, तो यह सवाल उठता है – यह विरोध लोकतांत्रिक चिंता है या राजनीतिक रणनीति? तथ्य क्या कहते हैं?

1. चुनाव आयोग की प्रक्रिया...

चुनाव आयोग वोटर लिस्ट अपडेट करने के लिए घर-घर जाकर सत्यापन करता है, आधार से लिंक करने की प्रक्रिया अपनाता है, और नागरिकता के प्रमाण की मांग करता है। यह सब केवल यह सुनिश्चित करने के लिए होता है कि केवल वही नागरिक वोट डालें जो भारतीय हैं और एक से अधिक बार मत न डालें।

2. फर्जी वोटर का पुराना आरोप...

वर्षों से विपक्षी पार्टियाँ विशेषकर भाजपा विरोधी दल, यह आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार फर्जी वोटरों के ज़रिये चुनाव जीतती है। पर जब अब इन कथित फर्जी वोटरों की पहचान की जा रही है, तो वही पार्टियाँ इसे "अल्पसंख्यकों का दमन", "धार्मिक भेदभाव" या "राजनीतिक बदले की कार्रवाई" कह रही हैं।

3. घुसपैठियों का मुद्दा...

सीमावर्ती राज्यों विशेषकर बंगाल, असम और त्रिपुरा में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा वर्षों से चर्चा में रहा है। सुप्रीम कोर्ट तक ने माना कि घुसपैठ लोकतंत्र और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। इन राज्यों में विपक्षी दलों का वोट बैंक इन अप्रवासी समूहों में माना जाता रहा है। ऐसे में जब वोटिंग लिस्ट से इन कथित घुसपैठियों को हटाने की कोशिश होती है, तो विरोध होना स्वाभाविक नहीं बल्कि रणनीतिक प्रतीत होता है।

4. राजनीति बनाम राष्ट्रीय चिंता...

यदि कोई पार्टी वोटिंग लिस्ट में "असली भारतीय" का नाम हटाने का सबूत देती है, तो उनकी चिंता जायज़ है। लेकिन यदि विरोध केवल इसलिए हो रहा है कि कथित घुसपैठियों का नाम हटाया जा रहा है, जिससे "वोट बैंक" पर असर पड़ेगा, तो यह लोकतंत्र के विरुद्ध है।

सवाल महत्वपूर्ण हैं...

  1. क्या वोटिंग लिस्ट से घुसपैठियों को हटाना "धार्मिक भेदभाव" है, या यह राष्ट्रहित में एक ज़रूरी कदम?
  2. क्या विपक्ष के पास ठोस प्रमाण हैं कि आयोग द्वारा हटाए जा रहे नाम वास्तविक भारतीय नागरिकों के हैं?
  3. क्या देश की सुरक्षा, निष्पक्ष चुनाव और पारदर्शिता से बड़ा कुछ भी हो सकता है?

वोटिंग लिस्ट का शुद्धिकरण एक तकनीकी और संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसे राजनीति के चश्मे से देखना दुर्भाग्यपूर्ण है। विपक्ष का यह दायित्व है कि वह जनहित के लिए सवाल उठाए, लेकिन यदि विरोध केवल वोट बैंक की रक्षा के लिए किया जा रहा है, तो यह न केवल चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता के साथ अन्याय है, बल्कि देश की सुरक्षा, स्थिरता और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ भी एक धोखा है।

यह समय है जब सभी दल राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में एकमत हों, ताकि भारतीय लोकतंत्र केवल चुनावी नहीं, बल्कि सच्चे अर्थों में जागरूक और सुरक्षित बना रहे।

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