राधा रानी के 28 नाम जाप से राधा-कृष्ण की अनंत कृपा प्राप्त होती है...
राधा अष्टमी पर राधा रानी के 28 नाम का जाप करना अत्यंत शुभ और कल्याणकारी होता है !
राधा अष्टमी का पावन पर्व इस साल 31 अगस्त 2025 को मनाया जा रहा है। आज से दिन राधा रानी के 28 नामों का जाप अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि राधा जी के इन नामों का स्मरण करने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और राधा-कृष्ण की अनंत कृपा प्राप्त होती है। इन नामों में इतनी शक्ति होती है कि इनके जाप से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इसलिए राधा अष्टमी के दिन राधा रानी की विधि विधान पूजा करने के समय इन नामों का स्मरण जरूर करें। इसके बाद राधा रानी की आरती करें। इससे आपको राधा जी के साथ-साथ भगवान कृष्ण की भी असीम कृपा प्राप्त होगी। जानिए राधा रानी के 28 नाम कौन-कौन से हैं।
राधाष्टमी का त्योहार राधा रानी के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदू पांचांग के अनुसार राधाष्टमी भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष के आठवें दिन मनाई जाती है। इस दिन श्रद्धालु उपवास रखते हैं और शुभ मुहूर्त में राधा रानी की विधि विधान पूजा करते हैं। वैसे तो ये त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन इसकी श्री खास रौनक ब्रज क्षेत्र में देखने को मिलती है। इस अवसर पर बरसाना स्थित श्री लाडली जी महाराज मन्दिर में विशाल महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जहां श्री राधा जी का अभिषेक और विशेष पूजन किया जाता है। यहां आप जानेंगे राधा अष्टमी पर राधा रानी की पूजा कैसे की जाती है और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या रहने वाला है।
राधा अष्टमी पूजा मुहूर्त-
राधा अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त 31 अगस्त 2025 की सुबह 11:05 से दोपहर 01:38 बजे तक रहेगा।
राधा अष्टमी पूजा सामग्री -पूजा स्थल पर स्वच्छ चौकी व लाल या पीला वस्त्रराधा-कृष्ण की प्रतिमा या चित्र और राधा रानी की पोशाकजल कलश व आचमन के लिए चम्मचपान, सुपारी, लौंग, इलायचीशुद्ध घी का दीपक और रूई की बत्तियांआरती की थाली व घंटीपंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)फूल (विशेषकर लाल और पीले) व मालातुलसी दलसुगंधित धूपदीपकघी/तेलसिंदूर, हल्दीकुमकुम, अक्षत
राधा अष्टमी पूजा विधि-
- राधा अष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद हाथ में अक्षत और कुछ फूल लेकर व्रत का संकल्प लें।
- उसके बाद राधा रानी की प्रतिमा को साफ चौकी पर स्थापित करें।
- राधा रानी को वस्त्र अर्पित करें और उनका श्रृंगार करें।
- धूप-दीप जलाएंं और राधा रानी की भगवान कृष्ण सहित विधि विधान पूजा करें।
- माखन मिश्री का भोग लगाएं।
- पूजा के अंत में कथा का पाठ करें और राधा रानी की आरती करें।
राधा अष्टमी व्रत विधि-
- सुबह स्नानादि दैनिक कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद एक मंडप के नीचे एक मण्डल की रचना कर उसके बीच में मिट्टी या ताम्बे का कलश स्थापित करें।
- कलश के ऊपर एक ताम्बे का पात्र रखें। फिर उस पात्र पर देवी श्री राधारानी की प्रतिमा स्थापित करें।
- प्रतिमा को दो नए वस्त्रों से ढक दें।
- शुभ मुहूर्त में राधारानी की षोडशोपचार विधि द्वारा पूजा-अर्चना करें।
- पूरे दिन उपवास करें और यदि असमर्थ हैं तो एक समय भोजन करके उपवास रख सकते हैं।
- व्रत के अगले दिन पर सुहागिन स्त्रियों को प्रेमपूर्वक भोजन करवायें।
- इसके बाद पूजन की गयी प्रतिमा आचार्य को दान कर दें।
- इसके बाद अपना उपवास खोल लें।
राधा अष्टमी पूजा मंत्र-
ॐ राधायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्
राधे राधे जय जय राधे, राधे राधे जय जय राधे।
राधा अष्टमी भोग-केसर युक्त खीर मिठाई (लड्डू, माखन-मिश्री आदि)
राधा अष्टमी व्रत कथा - राधा अष्टमी की पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन वृषभानु जी को तालाब में खिले कमल के फूलों के बीच एक सुंदर कन्या दिखाई दी जिसे वे अपने घर ले आए, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि वह बालिका आंखें नहीं खोल रही थी। वृषभानु जी को इस बात की बहुत चिंता हुई। मान्यता है कि राधा जी ने जन्म के बाद संकल्प लिया था कि वे अपनी आंखें तभी खोलेंगी जब वे सबसे पहले श्रीकृष्ण को देखेंगी। जब उनका सामना कृष्ण जी से हुआ, तभी उन्होंने अपनी आंखें खोलीं। वहीं द्मपुराण के अनुसार जब वृषभानु जी यज्ञ के लिए भूमि की सफाई कर रहे थे, तब धरती से एक दिव्य कन्या प्रकट हुई। वृषभानु जी ने उस बालिका का नाम "राधा" रखा। कहते हैं जिस दिन राधा रानी वृषभानु जी को प्राप्त हुईं, वह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी। यही कारण है कि इस दिन को "राधा अष्टमी" के रूप में मनाया जा
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।हम इस बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देते हैं ।










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