आखिरकार 13 दिनों से पूरे देश की सनसनी बनी हुई अर्चना तिवारी को पुलिस ने बरामद कर ही लिया...
" वाह..ह... दीदी...वाह..ह"
अपने प्लान को कार्यरूप देते हुए अर्चना ने सबसे पहले अपना फोन वहां फेंका, जहां नेटवर्क न हो,ताकि लास्ट लोकेशन आस-पास की बताता रहे... सामान ट्रेन की सीट पर रखा... ताकि लगे कि इनके साथ कोई अनहोनी हुई है... इटारसी में वो जगह चुनकर उतरीं, जहाँ CCTV नहीं थे..दोस्त की गाडी में सवार होकर उन रास्तों से गुजरीं जहां टोल न पड़े... पहचाने जाने का डर न रहे इसलिए पहले राज्य बदला और फिर देश छोड़ने का मन बनाया... !
ये सब करते समय अर्चना यह सब भलीभांति जानती थीं कि 70 से अधिक पुलिस की टीम नदी नाले ,जंगल, पहाड़ खंगाल रही है... इनको सुरक्षित लाने के लिए अधिकारियों की नींदे हराम हैं... विपक्ष हथियार में धार कर रहा है ताकि यदि कोई अनहोनी हो तो सरकार को फ़ौरन घेरा जाए...सत्ता पक्ष चिंतित है कि युवती सुरक्षित मिल जाए...!
लेकिन पुलिस शायद यह नहीं जानती थी कि जो गुमशुदा इंसान है वो बहुत आपराधिक सोच के साथ पुलिस को चकमा दे रहा है... इसकी तलाश में पुलिस की सांसे फूल गई लेकिन ये सामने नहीं आई और जब मिल गई, तब भी इसकी करगुजारी के बदले पुलिस इस पर कोई कर्वाही नहीं कर पा रही है, पुलिस बेबस है क्यूंकि कोई कानून नहीं है जो इनके ख़िलाफ़ मुकदमा बनाया जा सके...लड़की बालिग़ है अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा सकती है...भले उसकी मर्जी का खामियाज़ा पूरे सिस्टम भुगतना पड़ा।
अर्चना के घर से भागने की जो वजह सामने आई है वह और भी हास्यपद है...!
वज़ह है घरवालों द्वारा अर्चना की शादी एक पटवारी से शादी तय कर दिया जाना !अर्चना को एक पटवारी के साथ अपना रिश्ता जोड़ा जाना पसंद नहीं आया ! उसकी नजरों में गोया पटवारी न हुआ कोई मंगल गृह का प्राणी का हो... ऐसे मामले ही महिलाओं के प्रति सद्भावनाओं को मारते हैं...!
ऐसे ही मामलों के कारण ही तमाम दुखी और निराश माता-पिता एवं परिजनों जब पुलिस के पास बेटी के गुम होने की रिपोर्ट लिखाने जाते हैं तो इस प्रकार के अनुभवों से दो-चार होकर गुजर चुके पुलिस अधिकारी कभी-कभी झल्लाकर इन्हें दुत्कारते हुए कह देते है कि "भाग गई होगी किसी के साथ" !
अरे अर्चना मैडम भागना ही था तो घर वालों को बता के भागती...सिस्टम को हलाकान करके क्यूँ भागी..जब इतनी फुल प्रूफ स्कीम बनाने में माहिर थीं तो परिवार वालों को साफ-साफ कह देती कि पटवारी नहीं " Not below the rank of Deputy Collector..
अभी तक कानून ढेरों संशोधन हुए हैं... ऐसे मामलों से निपटने के लिए भी संसद में बैठे हमारे माननीयों को कुछ करना चाहिए...ऐसे मामलों से निपटने में जो संसाधन लगते हैं, जो खर्चा होता है यदि ये सब साजिशन करवाया गया, तो तथाकथित पीडिता या पीड़ित से ही वसूला जाना चाहिए...! बाकी पुलिस ने जो इनकी पूरी योजना का ख़ुलासा किया उसे सुनकर सोशल मीडिया में चलने वाले मीम्स की एक लाइन उच्चारित करने का मन है... " वाह..ह... दीदी...वाह..ह"
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