G News 24 : धरती पर उतरते स्पेसक्राफ्ट बनेगा आग का गोला, फिर भी बिल्कुल सेफ रहेगी शुभांशु एंड टीम !

 शुभांशु शुक्ला की वापसी के आखिरी 54 मिनट में क्या कुछ होगा !

धरती पर उतरते स्पेसक्राफ्ट बनेगा आग का गोला, फिर भी बिल्कुल सेफ रहेगी शुभांशु एंड टीम !

भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला Axiom-4 मिशन के बाद कैलिफोर्निया के तट पर ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट के माध्यम से समुद्र में स्प्लैशडाउन करेंगे.चार अंतरिक्ष यात्री 18 दिनों तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर रहे और भारतीय समयानुसार ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट शाम 4:45 बजे ISS से अलग हुआ.डी-ऑर्बिट बर्न प्रक्रिया में स्पेसक्राफ्ट की गति धीमी कर पृथ्वी के वायुमंडल में सुरक्षित पुनः प्रवेश सुनिश्चित किया जाता है.

भारत का लाल अंतरिक्ष नापकर वापस आ रहा है. बस कुछ देर का इंतजार और, फिर भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला Axiom-4 स्पेस मिशन के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ धरती पर लैंड कर जाएंगे. दरअसल लैंड नहीं, उनका ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट पैराशूट की मदद से मंगलवार तकरीबन दोपहर के 3.01 बजे अमेरिका के कैलिफोर्निया के तट पर समुद्र में स्प्लैशडाउन करेगा.

पिछले 18 दिनों से चारों अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर थे. ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट ISS से भारतीय समयानुसार शाम 4:45 बजे अलग हुआ. इसमें ओरिजिनल शेड्यूल से 10 मिनट की देरी हुई और ISS से दूर जाने के लिए ड्रैगन ने दो बार थ्रस्टर्स चालू किए.

क्या आपको पता है धरती पर आने के पहले ड्रैगन द्वारा आखिरी बार बूस्टर से जोर लगाने (डी-ऑर्बिट बर्न) और समंदर में स्प्लैशडाउन करने के बीच के 54 मिनटों में क्या होगा, कैसे ड्रैगन  स्पेसक्राफ्ट आग के गोले में बदलेगा और फिर पैराशूट की मदद से नीचे आएगा. हम सबकुछ आपको बताएंगे.

वो आखिरी 54 मिनट

स्पेस स्टेशन के आसपास के सुरक्षित क्षेत्र से बाहर निकलने के बाद, अंतरिक्ष यात्रियों ने अपने स्पेससूट उतार दिए थे. लेकिन धरती पर स्प्लैशडाउन के लगभग 54 मिनट पहले जब डी-ऑर्बिट बर्न की प्रक्रिया शुरू होगी, उससे पहले अंतरिक्ष यात्री एक बार फिर स्पेससूट पहनेंगे. आपके मन में सवाल आ सकता है कि आखिर ये डी-ऑर्बिट बर्न होता क्या है. दरअसल डी-ऑर्बिट बर्न एक चरण है जहां एक स्पेसक्राफ्ट के बूस्टर को इस तरह चलाया (फायर) जाता है कि उसके गति धीमी हो जाए. इस तरह वो स्पेसक्राफ्ट अपनी कक्षा (ऑर्बिट) से नीचे उतरता है और पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करता है. वायुमंडल में कंट्रोल के साथ पुनः प्रवेश (री-एंट्री) और स्पेसक्राफ्ट की सुरक्षित लैंडिंग या स्प्लैशडाउन के लिए यह डी-ऑर्बिट बर्न महत्वपूर्ण है.

जैसे-जैसे ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट धरती के वायुमंडल में आता है, परिस्थिति गंभीर होती जाती है. डी-ऑर्बिट बर्न की प्रक्रिया के लगभग 19 मिनट बाद ड्रैगन में लगे ट्रंक मॉड्यूलर अलग हो जाएंगे और बस कैप्सूल वाला हिस्सा बचेगा और वह वायुमंडल में प्रवेश करेगा. यानी धरती पर सिर्फ कैप्सूल वाला हिस्सा आता है और इसी के अंदर चारों अंतरिक्ष यात्री होंगे. ड्रैगन कैप्सूल के अलग होते ही इसमें लगे 8 ड्रेको थ्रस्टर्स की मदद से कैप्सूल के फ्लैट, यानी नीचे वाले हिस्से को धरती की ओर मोड दिया जाता है. वजह है कि इसी फ्लैट पार्ट में हीट शिल्ड लगे होते हैं, जो अत्यधिक तापमान की स्थिति को झेलने में इसे सक्षम बनाता है. 

ड्रैगन कैप्सूल 28163 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से धरती के वायुमंडल में गुजरता है. इस रफ्तार से जब कैप्सूल गुजरता है तो वायुमंडल से रगड़ खाता है और घर्षण यानी फ्रिक्शन की वजह से तापमान 3,500 डिग्री फैरनहाइट तक पहुंच जाता है. खास बात है कि कैप्सूल के अंदर बैठे चारों अंतरिक्ष यात्री अगर बाहर देखें तो उन्हें ऐसा लगेगा कि वो किसी आग के गोले में बैठे हैं. लेकिन उन्हें यह तापमान फील नहीं होता क्योंकि कैप्सूल की उपरी परत में हीट शिल्ड टाइल्स लगे हुए हैं जो तापमान को अंदर नहीं जाने देते. SpaceX के अनुसार स्पेसक्राफ्ट में लगी हीट शील्ड यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि अंदर का तापमान कभी भी 85 डिग्री फैरनहाइट (लगभग 29-30 डिग्री सेल्सियस) से ऊपर न जाए.

अब बारी आएगी पैराशूट की. शुरू में दो पैराशूट खुलेंगे और वो ड्रैगन कैप्सूल की रफ्तार को कम करेंगे. इसके बार पैराशूट की संख्या 4 हो जाएगी और कैप्सूल की रफ्तार कम होकर 24 किमी प्रति घंटे तक आ जाएगी. इसी रफ्तार से कैप्सूल समुंदर में गिरेगा.पानी में गिरने के बाद अंतरिक्ष यात्री अंदर ही बैठे रहेंगे. उसी समय एक ग्राउंड टीम वहां पहुंचेगी और कैप्सूल को समुंदर से बाहर निकालेगी. इसके बाद कैप्सूल को खोलकर अंदर बैठे अंतरिक्ष यात्रियों को बाहर निकाला जाएगा.

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