संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी हरीश ने पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया...
'आतंकवाद व अंतरराष्ट्रीय शांति के मुद्दे पर पाकिस्तान का दोहरा चरित्र निंदनीय' : UNSC में भारत
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी हरीश ने पाकिस्तान को आड़े हाथों लेते हुए उसे आतंकवाद के मुद्दे पर आइना दिखाते हुए कहा कि कश्मीर राग अलापना और सिंधु जल संधि के मुद्दे को उठाना पाकिस्तान की आदतों में शुमार हो चुका है। उन्होंने दो टूक कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इसकी संप्रभुता पर सवाल खड़े करने की किसी भी हिमाकत को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
भारत के राजदूत पार्वथानेनी हरीश ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। उन्होंने पाकिस्तान को दो टूक जवाब दिया और कहा, देश की संप्रभुता पर सवाल उठाने के किसी भी प्रयास को भारत कभी स्वीकार नहीं करेगा। कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीय करण और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) का जिक्र करने के पाकिस्तान के दुस्साहस का कड़ा विरोध करते हुए पी हरीश ने कहा, आतंकवाद और अंतरराष्ट्रीय शांति के मुद्दों पर पाकिस्तान का दोहरा चरित्र निंदनीय है।
हरीश के जवाब से पहले पाकिस्तानी उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने कश्मीर को लेकर टिप्पणी की थी। बता दें कि उन्होंने पाकिस्तान को जवाब उस मंच पर दिया, जहां बहुपक्षवाद और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के विषय पर चर्चा की जा रही थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की इस उच्च स्तरीय खुली बहस में पी हरीश ने लगभग पांच मिनट के अपने वक्तव्य में भारीय कूटनीति को स्पष्ट करते हुए पाकिस्तान को आइना दिखाया।
राजदूत हरीश ने कहा, यह एक महत्वपूर्ण चर्चा है। जब संयुक्त राष्ट्र के 80 वर्ष पूरे हो रहे हैं, तो यह इस पर विचार करने का एक अच्छा समय है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर में बताए गए बहुपक्षवाद और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के विचार को अब तक कितना हासिल किया जा सका है। साथ ही, यह भी समझने का समय है कि इस रास्ते में क्या-क्या रुकावटें आईं। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद के पहले चालीस वर्षों में उपनिवेशवाद का अंत हुआ और शीत युद्ध का दौर चला। उस समय संघर्षों को काफी हद तक रोका और संभाला जा सका। इन कोशिशों में संयुक्त राष्ट्र की अहम भूमिका रही। वास्तव में, साल 1988 में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना को नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया था। शीत युद्ध के अंत के बाद दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कई तरह के नए संघर्ष शुरू हो गए। इसी के साथ संयुक्त राष्ट्र की शांति बनाए रखने वाली गतिविधियों का तरीका भी बदलने लगा।
उन्होंने कहा, पिछले कुछ दशकों में संघर्षों का स्वरूप भी बदल गया है। अब सरकार से नॉन-स्टेट एक्टर्स (गैर सरकारी अराजक तत्व) की बढ़ती संख्या सामने आई है, जिन्हें कई बार कुछ देश समर्थन देकर अपने हितों के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही आधुनिक डिजिटल और संचार तकनीकों की मदद से सीमा के आर-पार पैसा, हथियार, आतंकवादियों का प्रशिक्षण और चरमपंथी विचारधारा और तेजी से फैल रहे हैं। उन्होंने कहा, संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों का भविष्य क्या होगा — इस पर गंभीर चर्चा हो रही है। साथ ही, शांति स्थापित करने की प्रक्रिया अब और भी ज्यादा महत्व पाने लगी है। क्षेत्रीय संगठनों की भूमिका भी इस दिशा में बढ़ी है। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी संघ ने अपने सदस्य देशों के बीच के विवादों को सुलझाने में सही ढंग से भागीदारी निभाई है।
उन्होंने आगे कहा, शांति से विवादों को सुलझाने के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय छह की शुरुआत इस बात को मान्यता देने से होती है कि किसी भी विवाद को सबसे पहले उसी में शामिल पक्षों को आपसी बातचीत और अपने चुने हुए शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाना चाहिए। किसी भी संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान तभी संभव है, जब उसमें शामिल देशों की सहमति और उनका सक्रिय योगदान हो। अगर कोई देश अच्छे पड़ोसी संबंधों और अंतरराष्ट्रीय नियमों की भावना का उल्लंघन करता है, तो उसे इसकी गंभीर कीमत चुकानी चाहिए।
'ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवादी शिविरों को बनाया निशाना'
हरीश ने आगे कहा, हाल ही में 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक खौफनाक आतंकवादी हमला हुआ, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक मारे गए। इसके बाद 25 अप्रैल को सुरक्षा परिषद ने एक बयान जारी किया, जिसमें सभी सदस्य देशों ने इस घृणित आतंकवादी हमले के दोषियों, साजिशकर्ताओं, मददगारों और समर्थकों को न्याय के कटघरे में लाने की जरूरत पर जोर दिया। इस पृष्ठभूमि में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसका मकसद पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर (पीओजेके) में मौजूद आतंकवादी शिविरों को निशाना बनाना था। यह अभियान सीमित, संतुलित और किसी तरह से उकसावे वाला नहीं था। जब अपने मुख्य लक्ष्य पूरे कर लिए गए, तो पाकिस्तान के अनुरोध पर सैन्य कार्रवाई तुरंत रोक दी गई। उन्होंने कहा, किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए एक ही तरीका सब पर लागू नहीं हो सकता। समय के साथ हालात बदलते हैं और ऐसे प्रयासों में उस बदलाव को भी ध्यान में रखना जरूरी है।
उन्होंने कहा, भारत एक जिम्मेदार देश है और संयुक्त राष्ट्र का एक संस्थापक सदस्य भी है। हमेशा की तरह भारत सभी साझेदारों के साथ मिलकर, खासकर संयुक्त राष्ट्र के मंच पर, एक शांतिपूर्ण, समृद्ध, न्यायपूर्ण और बराबरी की दुनिया के निर्माण के लिए रचनात्मक रूप से काम करता आ रहा है। शांति और सुरक्षा से लेकर उपनिवेशवाद के अंत और निष्पक्ष व्यापार से लेकर विकासशील देशों के अधिकारों तक — भारत की भूमिका हमेशा सकारात्मक रही है। भारत संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में अब तक का सबसे बड़ा योगदान देने वाला देश है। इसके साथ ही भारत ने शांति सेना में महिलाओं की भागीदारी को भी बढ़ावा दिया है, जो आज संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में सेवा करते हुए आदर्श बन चुकी हैं।
'मदद पहुंचाने वालों में सबसे आगे रहता है भारत'
'आज की दुनिया जुड़ी हुई है और एक-दूसरे पर निर्भर भी है। ऐसे में भारत बहुपक्षीय सहयोग को बहुत महत्व देता है, ताकि सतत विकास, जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन और वैश्विक स्वास्थ्य जैसी वैश्विक चुनौतियों को मिलकर संभाला जा सके। भारत संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर यूनिसेफ के जरिए एक विशेष विकास सहयोग कार्यक्रम चला रहा है। साथ ही, भारत अपने क्षेत्र में जब भी कोई मानवीय संकट आता है, तो सबसे पहले मदद पहुंचाने वालों में शामिल रहता है। आज हम ऐसे समय में हैं, जब दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र जैसी बहुपक्षीय व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। खासकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना और उसमें भागीदारी को लेकर गंभीर संदेह उठ रहे हैं, जिनका तुरंत समाधान होना जरूरी है।'
उन्होंने कहा, इसी संदर्भ में भारत को गर्व है कि अपनी जी20 अध्यक्षता के दौरान उसने अफ्रीकी संघ को इस मंच में शामिल करवाने में मदद की। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जो लगातार गतिरोध बना हुआ है, वह यह दिखाता है कि अब इस संस्था की कार्यक्षमता और प्रभावशीलता पर भी सवाल उठने लगे हैं और इन चुनौतियों का सामना करना जरूरी हो गया है।
उन्होंने कहा कि मुझे पाकिस्तान के प्रतिनिधि की ओर से दिए गए बयानों का जवाब देने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप में विकास, समृद्धि और तरक्की के मॉडल को लेकर एक बहुत स्पष्ट अंतर देखने को मिलता है। एक तरफ भारत है, जो एक परिपक्व लोकतंत्र है, तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है,और एक ऐसा समाज है जो बहुलतावाद और समावेश को अपनाता है। दूसरी ओर पाकिस्तान है, जो कट्टरता और आतंकवाद में डूबा हुआ है और जो बार-बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज लेने वाला देश बन चुका है। जब हम अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं, तो यह जरूरी है कि कुछ बुनियादी सिद्धांतों को सभी देश समान रूप से मानें। उनमें आतंकवाद के लिए जीरो टॉलरेंस एक सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, 'परिषद का कोई सदस्य अगर दूसरों को उपदेश दे, लेकिन खुद ऐसे काम करे जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए अस्वीकार्य हों तो उसे उचित नहीं कहा जा सकता। अंत में मैं यह कहना चाहता हूं कि भारत हमेशा की तरह बहुपक्षवाद और शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों के समाधान के जरिए अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।'
यह पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तान ने कश्मीर का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की कोशिश की है। लेकिन इन प्रयासों को ज्यादा समर्थन नहीं मिला है। ज्यादातर वैश्विक शक्तियां इसे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मामला मानती हैं। भारत की शांत, लेकिन मजबूत प्रतिक्रिया ने एक जिम्मेदार लोकतंत्र और वैश्विक शांति के प्रति प्रतिबद्ध देश के रूप में उसकी छवि को और मजबूत किया है, जबकि पाकिस्तान की स्थिति एक बार फिर केवल ध्यान भटकाने वाली रणनीति अपनाने वाले देश के रूप में सामने आई है।
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