जब किसी समुदाय को निरंतर लक्ष्य बनाया जाता है तो उसे भी अपने अस्तित्व को बचाने का अधिकार है
पलायन समस्या का समाधान नहीं, हिंदुओं को एकजुट व सशक्त होकर दंगाइयों को जवाब देना चाहिए !
भारत विविधताओं का देश है, जहाँ अनेक धर्म, संप्रदाय और जातियाँ सह-अस्तित्व में रहती हैं। लेकिन कभी-कभी यह विविधता कुछ असामाजिक तत्वों के कारण संघर्ष में बदल जाती है। दंगे, सांप्रदायिक हिंसा, और असुरक्षा की भावना ऐसी घटनाएँ हैं जो किसी भी समाज के लिए घातक होती हैं। जब किसी समुदाय को निरंतर लक्ष्य बनाया जाता है और उन्हें अपनी ज़मीन, घर, व्यवसाय छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ता है, तो यह सिर्फ उस समुदाय के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय बन जाता है।
पलायन या किसी स्थान को छोड़ देना किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। यह एक अस्थायी प्रतिक्रिया हो सकती है, लेकिन इससे असली अपराधियों को बल मिलता है। जब कोई समुदाय डरकर पीछे हटता है, तो असामाजिक तत्वों को यह संदेश जाता है कि वे डर पैदा कर सकते हैं और मनमानी कर सकते हैं। इससे उनका दुस्साहस और बढ़ता है।
1. एकजुटता की आवश्यकता-
इतिहास गवाह है कि जब-जब समाज के लोग आपसी मतभेद भूलकर एकजुट हुए हैं, तब-तब उन्होंने बड़ी से बड़ी शक्तियों को भी झुका दिया है। हिंदुओं को भी इस समय यही करने की आवश्यकता है। चाहे वह किसी गाँव में रह रहा हो या किसी महानगर में, सभी को एकजुट होकर अपने समाज, अपने अधिकारों और अपने धर्म की रक्षा के लिए खड़ा होना होगा।
2. सशक्तिकरण की आवश्यकता-
सिर्फ संख्या बल से कुछ नहीं होता, जब तक वह शक्ति संगठित और सशक्त न हो। सशक्तिकरण का मतलब केवल शारीरिक शक्ति नहीं है, बल्कि शिक्षा, आर्थिक स्वावलंबन, कानूनी ज्ञान और सामाजिक जागरूकता से भी है। जब समाज शिक्षित, संगठित और आत्मनिर्भर होता है, तो कोई उसे डराकर नहीं हटा सकता।
3. कानूनी और संवैधानिक उपायों का प्रयोग-
दंगाइयों को जवाब देने का यह मतलब नहीं है कि हम भी हिंसा का मार्ग अपनाएँ। लोकतंत्र में कानून सबसे बड़ा हथियार है। हमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा और कानून के दायरे में रहते हुए अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी। पीड़ितों को न्याय दिलाना और दोषियों को सज़ा दिलवाना भी एक सशक्त समाज की पहचान है।
4. सामाजिक समरसता बनाए रखना-
ध्यान देने की बात यह भी है कि सभी धर्मों और समुदायों में अच्छाई-बुराई दोनों होती हैं। हमें सभी धर्मों के शांतिप्रिय लोगों से संवाद बनाए रखना चाहिए, ताकि असली अपराधियों को पहचान कर उन्हें अलग किया जा सके। इससे समाज में विश्वास और सहयोग की भावना बनी रहती है।
पलायन केवल डर का परिणाम है, समाधान नहीं। इससे समस्या और बढ़ती है, समाधान नहीं होता। समय की मांग है कि हिंदू समाज अपने भीतर की शक्ति को पहचाने, संगठित हो, सशक्त बने और अन्याय का दृढ़ता से मुकाबला करे। हिंसा का जवाब कानून, एकजुटता और आत्मबल से देना ही सही मार्ग है। तभी एक समरस, सुरक्षित और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण संभव होगा।
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