G News 24 : चैनलों पर पैनलिस्ट को, गलत टॉपिक डिफेंड नहीं करने देना करना चाहिए !

दुर्भाग्यवश, हाल के वर्षों में इन डिबेट शोज़ का स्वरूप बदल गया है स्वरूप ...

चैनलों पर पैनलिस्ट को, गलत टॉपिक डिफेंड नहीं करने देना करना चाहिए !

                                                                     सांकेतिक तस्वीर 

आजकल टीवी चैनलों पर होने वाले डिबेट शो (बहस कार्यक्रम) भारतीय मीडिया का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं। इन शोज़ का उद्देश्य आम जनता को विभिन्न मुद्दों पर जानकारी देना, विचार-विमर्श को बढ़ावा देना और लोकतंत्र को मज़बूत करना होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश, हाल के वर्षों में इन डिबेट शोज़ का स्वरूप बदल गया है। कई बार देखा गया है कि कुछ चैनल TRP की होड़ में ऐसे मुद्दों को डिबेट का विषय बनाते हैं, जो या तो समाज को बाँटने वाले होते हैं या जिनमें तथ्यात्मक सच्चाई की कमी होती है। इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि इन गलत टॉपिक्स को डिफेंड करने के लिए कुछ पैनलिस्ट बुलाए जाते हैं, जो गंभीरता से झूठ, नफरत या असंवेदनशील विचारों को सही ठहराने की कोशिश करते हैं।

1. गलत मुद्दों को सही ठहराने से समाज में भ्रम फैलता है

जब टीवी पर झूठ या आधे-अधूरे तथ्यों को बार-बार दोहराया जाता है, तो कई दर्शक उन्हें सच मान बैठते हैं। खासतौर पर ग्रामीण और कम पढ़े-लिखे दर्शक जो टीवी को जानकारी का मुख्य स्रोत मानते हैं, उनके लिए यह अत्यंत भ्रामक हो सकता है। अगर कोई डिबेट शो बार-बार गलत ऐतिहासिक तथ्यों, सांप्रदायिक विचारों या राजनीतिक प्रोपेगेंडा को सही ठहराने की कोशिश करता है, तो यह न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है बल्कि सामाजिक ताने-बाने के लिए भी खतरनाक है।

2. मीडिया की भूमिका: मार्गदर्शक या भटकाव का स्रोत?

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है। उसकी भूमिका निष्पक्ष, सटीक और तथ्यात्मक जानकारी प्रदान करना है। लेकिन जब चैनल TRP के लिए भड़काऊ या झूठे मुद्दों को तवज्जो देने लगते हैं, और पैनलिस्ट उन मुद्दों को डिफेंड करते हैं, तो मीडिया की साख पर सवाल उठने लगते हैं। यह एक खतरनाक चलन बनता जा रहा है जहाँ पत्रकारिता का उद्देश्य सूचना देना नहीं, बल्कि लोगों की भावनाओं से खेलकर मनोरंजन करना या एजेंडा चलाना हो गया है।

3. डिबेट का स्तर और भाषा का गिरता स्तर

इन शोज़ में अकसर देखा गया है कि बहस का स्तर बहुत ही निम्न हो जाता है। व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप, चिल्लाना-चिल्ली और असंसदीय भाषा का प्रयोग आम बात हो गई है। जब गलत मुद्दे को डिफेंड किया जाता है, तो पैनलिस्टों में वैचारिक द्वंद की जगह व्यक्तिगत हमले शुरू हो जाते हैं, जिससे दर्शक बौद्धिक रूप से समृद्ध होने के बजाय और अधिक भ्रमित और उग्र हो जाते हैं।

4. समाज पर पड़ने वाला प्रभाव

गलत विषयों को टीवी पर बार-बार बहस का मुद्दा बनाना समाज में विभाजन, नफरत और असहिष्णुता को बढ़ावा देता है। युवा वर्ग, जो इन शोज़ से अपनी सोच बना रहा होता है, वह एकतरफा विचारधारा का शिकार बन सकता है। इससे समाज में ध्रुवीकरण और वैमनस्य फैल सकता है।

5. समाधान और सुझाव

1. संपादकीय ज़िम्मेदारी: चैनलों को चाहिए कि वे किसी भी मुद्दे पर बहस से पहले उसकी तथ्यात्मकता की जाँच करें और सामाजिक ज़िम्मेदारी निभाएँ।

2. पैनलिस्ट की चयन प्रक्रिया: विशेषज्ञ और तथ्य आधारित सोच रखने वाले लोगों को आमंत्रित किया जाए, न कि केवल उन लोगों को जो किसी एजेंडा को बढ़ावा देने के लिए तर्क देते हैं।

3. नियामक संस्था की भूमिका: सरकार और प्रेस परिषद जैसी संस्थाओं को चाहिए कि वे ऐसे चैनलों के खिलाफ सख्त कदम उठाएँ जो बार-बार समाज को गुमराह करने वाले मुद्दों को बढ़ावा देते हैं।

4. दर्शकों की जागरूकता: दर्शकों को भी जागरूक होना होगा कि वे किस तरह की सामग्री देख रहे हैं और क्या वह वाकई में सच्चाई पर आधारित है।

टीवी डिबेट का उद्देश्य जानकारी देना और मुद्दों पर विचार-विमर्श को बढ़ावा देना होना चाहिए, न कि झूठ और नफरत को बढ़ावा देना। गलत टॉपिक को डिफेंड करना न केवल मीडिया की विश्वसनीयता को खत्म करता है, बल्कि समाज में ज़हर घोलने का काम भी करता है। ऐसे डिबेट शोज़ से दूरी बनाना और उन्हें प्रोत्साहन न देना ही बेहतर विकल्प है। साथ ही, मीडिया को भी आत्मावलोकन की ज़रूरत है कि वह किस दिशा में जा रहा है और वह अपने सामाजिक दायित्व को किस तरह निभा रहा है।

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