जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला...
धर्म पूछकर पर्यटकों की हत्या—जिहादी आतंकियों का ‘जिहाद’ की ओर एक और खौफनाक कदम !
आज का दिन भारत के लिए एक और दुखद अध्याय बन गया, जब जम्मू-कश्मीर के सुरम्य और शांति प्रिय क्षेत्र पहलगाम में पर्यटकों पर एक निर्मम आतंकी हमला हुआ। यह हमला केवल एक आतंकी कृत्य नहीं था, बल्कि यह दर्शाता है कि आतंकवाद अब और अधिक वैचारिक, धर्मांध और खतरनाक रूप ले चुका है। सबसे भयावह बात यह रही कि हमलावरों ने पहले पर्यटकों से उनका धर्म पूछा और फिर उस आधार पर कुछ को निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया।
यह केवल हत्या नहीं, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराध है
जब आतंकवादी किसी के नाम, पोशाक या भाषा से नहीं बल्कि धर्म पूछकर उसे जीवित रहने या मरने का 'अधिकार' देते हैं, तब यह केवल आतंक नहीं रहता—यह मानवता के मूल्यों पर सीधा हमला बन जाता है। पहलगाम का यह हमला साबित करता है कि जिहादी आतंकियों के लिए अब कोई सीमाएं नहीं बचीं।
जिहाद की खोखली व्याख्या और उसका जहरीला प्रचार
इस्लाम में जिहाद का वास्तविक अर्थ होता है—सच्चाई और धर्म के मार्ग पर संघर्ष करना, बुराई से लड़ना, आत्म-संयम रखना। लेकिन आज कुछ कट्टरपंथी संगठनों ने इस शब्द को इतना विकृत कर दिया है कि वह अब निर्दोषों की हत्या, डर फैलाने और समाज को बांटने का प्रतीक बन गया है। पहलगाम का यह हमला भी इसी विकृत सोच का नतीजा है—जहां ‘धर्म’ के नाम पर युद्ध छेड़ा जा रहा है, लेकिन असल में यह युद्ध नहीं बल्कि कायरता है, जो कमजोरों पर निशाना साधती है।
पर्यटक नहीं, वह भारत के अतिथि थे
हम भारतीय संस्कृति में कहते हैं—‘अतिथि देवो भव’, यानी अतिथि भगवान के समान होता है। जो पर्यटक पहलगाम आए थे, वे हमारे देश के सम्मानित मेहमान थे। उनकी सुरक्षा न केवल एक प्रशासनिक जिम्मेदारी थी, बल्कि यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। जब आतंकवादी ऐसे निर्दोषों को सिर्फ उनके धर्म के आधार पर मारते हैं, तो वे केवल व्यक्ति की हत्या नहीं करते, बल्कि भारत की आत्मा पर वार करते हैं।
आतंकी उद्देश्य: डर और विभाजन
इस हमले का उद्देश्य केवल लोगों को मारना नहीं था। यह एक गहरा संदेश देने की कोशिश थी—कि तुम अगर एक विशेष धर्म से हो, तो तुम यहां सुरक्षित नहीं हो। यह भारत की धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता को चुनौती देने की कोशिश है। लेकिन भारत का इतिहास रहा है कि जितना इसे बांटने की कोशिश हुई है, उतना ही यह और अधिक एकजुट होकर खड़ा हुआ है।
समाधान की दिशा में कठोर कदम जरूरी -
- खुफिया तंत्र की मजबूती – आतंकी गतिविधियों की पूर्व जानकारी और निगरानी बेहद जरूरी है, खासकर पर्यटक स्थलों पर।
- कट्टरपंथी विचारधारा के विरुद्ध वैचारिक युद्ध – केवल बंदूक से नहीं, शिक्षा, तर्क और सही धार्मिक व्याख्या से आतंकवाद को हराना होगा।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव – जो देश या संगठन ऐसे जिहादी आतंकी समूहों को पनाह दे रहे हैं, उनके खिलाफ कूटनीतिक और आर्थिक कार्यवाही की जानी चाहिए।
- स्थानीय सहयोग और विश्वास निर्माण – कश्मीर के आम नागरिकों को आतंकवाद के खिलाफ एक साझेदार बनाना अत्यंत जरूरी है, ताकि वह अपने क्षेत्र को शांति का गढ़ बना सकें।
पहलगाम में हुआ यह हमला केवल एक आतंकी वारदात नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर चलाए जा रहे ‘झूठे जिहाद’ का उदाहरण है। यह एक चेतावनी है कि अब समय आ गया है जब हमें आतंकवाद के खिलाफ न केवल नीति, बल्कि नियत भी बदलनी होगी। हमें धर्म, जाति, भाषा से ऊपर उठकर आतंक के खिलाफ एकजुट होना होगा। यह लड़ाई केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर भारतीय की है—क्योंकि जब सवाल मानवता का हो, तब चुप रहना भी एक अपराध बन जाता है।
हमले का तरीका: पहचान के बाद चयनित हत्या
स्थानीय पुलिस के अनुसार, शाम करीब 6 बजे दो बाइक सवार नकाबपोश आतंकियों ने पहलगाम के नजदीक एक व्यस्त पर्यटक स्थल पर हमला कर दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आतंकियों ने वहां मौजूद पर्यटकों को रोका, उनसे उनका नाम और धर्म पूछा, और इसके बाद विशेष रूप से हिंदू पहचान वालों को निशाना बनाकर गोली मारी। हमले में 3 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि कई अन्य गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
आतंक का एजेंडा: डर पैदा करना और सांप्रदायिक विभाजन
जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय एजेंसियां इस हमले को धार्मिक आधार पर आतंक फैलाने की कोशिश मान रही हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार का हमला "सुनियोजित और वैचारिक आतंकवाद" का उदाहरण है, जिसका उद्देश्य स्थानीय मुस्लिम और बाहरी हिंदू समुदाय के बीच अविश्वास पैदा करना है।
प्रशासन अलर्ट, जांच तेज
हमले के तुरंत बाद पूरे क्षेत्र में सुरक्षा बलों ने तलाशी अभियान शुरू कर दिया है। ड्रोन और हेलीकॉप्टर की मदद से आतंकियों की तलाश की जा रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस हमले को “धर्म के नाम पर की गई सुनियोजित आतंकी साजिश” बताया है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर घटना पर गहरा शोक व्यक्त किया और कहा, “यह मानवता के खिलाफ अपराध है। दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।” वहीं, विपक्षी दलों ने सरकार से कश्मीर की सुरक्षा नीति पर पुनर्विचार की मांग की है। स्थानीय नेताओं ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि “कश्मीर की छवि को बदनाम करने की यह साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी।”
सामाजिक ताना-बाना खतरे में
धार्मिक आधार पर की गई यह हत्या देश के सामाजिक ढांचे पर भी सवाल खड़े करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन हमलों का त्वरित और निर्णायक जवाब नहीं दिया गया, तो इससे देश में धार्मिक ध्रुवीकरण और असहिष्णुता को बढ़ावा मिल सकता है।
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