G News 24 :चेंबर सफाई करने उतरे दो निगम कर्मचारियों की मौत !

 इसे  हादसा नहीं हत्या मानिए ...

चेंबर सफाई करने उतरे दो निगम कर्मचारियों की मौत !

ग्वालियर। मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले में लापरवाही के चलते बड़ा हादसा हो गया. चेंबर की सफाई करने उतरे नगर निगम के दो कर्मचारियों की मौत हो गई है। चेंबर से गैस रिसाव के कारण दम घुटने से मौत हुई है। मरने वालों में विक्रम ओर विक्रम शामिल है पुलिस ने आरोपी ठेकेदार को हिरासत में ले लिया है। उर्जा मंत्री ने 10 लाख मुआवजा और सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है।पूरा मामला हजीरा थाना क्षेत्र के वार्ड नं 16 के रेशम मील का है, जहां निगम के कर्मचारी सीवर की सफाई करने उतरे थे। आधुनिक मशीनों के दौर में भी कर्मचारियों से सफाई करवाया जा रहा है जिस कारण कर्मचारियों को जान गवानी पड़ रही है। इससे पहले भी इस तरह के कई हादसे हो चुके हैं l 

मृतक कर्मचारियों के परिवार ने ठेकेदार और नगर निगम के अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप लगाया है. मौत के बाद परिजनों के आक्रोश को देखते हुए नगर निगम और प्रशासन की टीम भी अस्पताल पहुंचे। जहां से शव को पीएम के लिए भेजा गया है. पुलिस ने आरोपी ठेकेदार को हिरासत में ले लिया है। वहीं घटना की सूचना मिलने के बाद ऊर्जा मंत्री प्रदुमन सिंह तोमर अस्पताल पहुंचे और मृतक के परिजनों को 10-10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता और दोनों मृतकों के परिजन को नगर निगम में सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है. इस आश्वासन के बाद परिजन माने और मामला शांत हुआ।

गौर करने वाली बात ये भी है कि ग्वालियर प्रशासन  स्वच्छता के मामले में इंदौर से मुकाबला करने का दम भरने वाली ग्वालियर नगर निगम के पास आज भी सीवर टैंक साफ करने के लिए मशीनरी नहीं है,इसका दुष्परिणाम दो सफाई कर्मचारियों की मौत के रूप में सामने आया है। हमेशा की तरह इस मामले पर मुआवजे की चादर डाल दी गई, जबकि ये एक अमानवीय कृत्य और इरादतन हत्या का मामला है।

  अदालत के सख्त आदेश के बाद भी निगम के सफाई ठेकेदार ने सफाईकर्मियों को सीवर चैंबर साफ़ करने के लिए नीचे उतार दिया। जहरीली  गैस  रिसाव होने के कारण दोनों की मौत हो गई। इसके बाद शासन से लेकर प्रशासन में हड़कंप मच गया। घटना की जानकारी लगते ही ऊर्जा मंत्री तोमर तुरंत मौके पर पहुंच गए।एवं परिजनो को सात्वनां दी।  पुलिस ने ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। और मामला रफा-दफा कर दिया गया।

हजीरा थाना क्षेत्र के रेशम मील इलाके में निगम के दो कर्मचारी अमन व विक्रम सीवर की सफाई करने अंदर गए थे। ठेकेदार ने पहले एक कर्मचारी को चेंबर में भेजा, काफी देर तक जब वह वापिस नहीं आया तो उसे देखने के लिए दूसरा कर्मचारी सीवर में उतरा फिर वो भी वापस नहीं आया। सफाईकर्मियों को मरता देख ठेकेदार और सुपरवाइजर मौके से फरार हो गए। अन्य सफाईकर्मियों ने मशक्क्त के बाद दोनों दोनों कर्मचारियों को सीवर से बाहर निकाला। अस्पताल में डॉक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया।

मृतक कर्मचारियों के परिजनों ने मौत के हंगामा मचाया। उन्होंने निगम ठेकेदार और अधिकारीयों पर लापरवाही के आरोप लगाए।  परिजनों के आरोप के बाद पुलिस ने ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया। इलाके के विधायक और ऊर्जामंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर  ने   मृतकों के परिजनों को सांत्वना दी और सरकार की तरफ से 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देने और एक एक परिजन को आउट सोर्स की नौकरी देने का ऐलान किया।इस आश्वासन के बाद परिजन माने और मामला शांत हुआ। 

इस मामले में किसी ने भी नगर निगम के आयुक्त, महापौर और मंत्री जी से सवाल नहीं किया कि करोड़ों रुपए के बजट वाली नगर निगम ने बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाई कर्मचारियों को सीवर टैंक में उतारा क्यों ? मान लीजिए कि ये काम नगर निगम ठेकेदार से कराती है तो ऐसे ठेकेदार को ठेका क्यों दिया जिसके पास सुरक्षा उपकरण हैं ही नहीं?

दरअसल ये मामला अकेले ग्वालियर का नहीं बल्कि पूरे देश का है।हम आज भी साफ - सफाई के मामले में अठारहवीं सदी में जी रहे हैं। हमने अपने घरों की सफाई के लिए भले ही रोबोट खरीद लिए हों किंतु सफाई कार्य के लिए हम आज भी जिंदा आदमी को मोत के मुंह में धकेल देते हैं। देश के गिने चुने स्थानीय निकायों के पास सीवर सफाई के लिए स्वचालित मशीनरी है। जबकि ये सभी के पास होना चाहिए।

 देश की सिंगल और डबल इंजन की सरकारें इन दर्दनाक मौतों से अनजान नहीं है। पिछले दिनों ही लोकसभा में बताया कि वर्ष 2017 के बाद से पिछले करीब पांच वर्ष में सीवर एवं सेप्टिक टैंक की जोखिमपूर्ण सफाई करने के दौरान 400 लोगों की मौत हुई। लोकसभा में दानिश अली के प्रश्न के लिखित उत्तर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने यह जानकारी दी थी।

अठावले द्वारा  सदन में पेश आंकड़ों के अनुसार, सीवर एवं सेप्टिक टैंक की जोखिमपूर्ण सफाई करने के दौरान वर्ष 2017 में 100 लोगों, वर्ष 2018 में 67 लोगों, 2019 में 117 लोगों, 2020 में 19 लोगों, 2021 में 49 लोगों और 2022 में 48 लोगों की मौत हुई। जाहिर है कि ये देशव्यापी समस्या है लेकिन ये न किसी दल का राजनीतिक एजेंडा है और न किसी दल के घोषणा पत्र में इस समस्या के निराकरण की बात की जाती है।

अदालतों के निर्देश और निर्णय भी सफाई कर्मचारियों की प्राण रक्षा करने में सहायक नहीं हैं। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 1993 में मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार पर रोक लगाने वाला कानून लागू किए जाने के बाद से लेकर अबतक सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कुल 971 लोगों की जानें गईं हैं। तमिलनाडु इस सूची में अव्वल है। चूंकि सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान होने वाली मौतें तयशुदा रूप से हानिकारक गैसों की वजह से होती हैं, इन मौतों को रोकने के उपाय नहीं करना आपराधिक है। नियमों का उचित तरीके से अमल और पर्याप्त निगरानी नितांत जरूरी है। साथ ही, मौजूदा योजनाओं के तहत इस तरह से मरने वाले लोगों के परिजनों को मुआवजा प्रदान करने और अगर वे चाहें, तो उन्हें इस पेशे से बाहर निकलने का विकल्प मुहैया कराने के सभी प्रयास किए जाने  चाहिए।

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