G. News 24 : पत्नी और दो बच्चों सहित पूर्व भाजपा पार्षद ने की खुदकुशी

 बेटों की लाइलाज बीमारी से थे परेशान ...

पत्नी और दो बच्चों सहित पूर्व भाजपा पार्षद ने की खुदकुशी


विदिशा l मप्र के विदिशा में पूर्व भाजपा पार्षद संजीव मिश्रा ने अपने पूरे परिवार समेत जहर खाकर जान दे दी। मिश्रा दंपती अपने दोनों बेटों की लाइलाज बीमारी से परेशान थे। इसी से तंग आकर उन्होंने सामूहिक खुदकुशी कर ली। गणतंत्र दिवस पर आई इस हृदय विदारक घटना की सूचना से लोग व्यथित हो गए। घटना गुरुवार शाम की बताई गई है। सूचना मिलते ही मिश्रा दंपती व दोनों बेटों को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।

'ईश्वर दुश्मन के बच्चों को भी न दे ये बीमारी'

पुलिस व पारिवारिक सूत्रों के अनुसार गुरुवार शाम पूर्व पार्षद संजीव मिश्रा घर पर ही थे। जहर खाकर सामूहिक खुदकुशी के पहले मिश्रा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा कर लिखा- 'ईश्वर दुश्मन के बच्चों को भी ना दें यह बीमारी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी डीएमडी, प्रार्थना।', मिश्रा की यह पोस्ट वायरल होते ही परिचित व रिश्तेदारों को किसी अनहोनी को अंदेशा हुआ और वे ताबड़तोड़ उनके घर पहुंचे। वहां मिश्रा दंपती व दोनों बेटों को गंभीर हालत में तड़पते हुए पाया।

विदिशा के भाजपा नेता व्यथित

मिश्रा के करीबियों के अनुसार जब वे उनके घर पहुंचे तो बाहर से दरवाजा बंद था। इसके बाद पड़ोसियों की मदद से मिश्रा के घर का दरवाजा तोड़ा गया। घर में संजीव मिश्रा, उनकी पत्नी नीलम मिश्रा, बेटा अनमोल (13) तथा सार्थक (7) बेहोश हालत में मिले। मिश्रा की पूरे परिवार समेत खुदकुशी की खबर मिलते ही विदिशा के भाजपा नेता व पुलिस व प्रशासन के अधिकारी मौके पर पहुंचे। विदिशा के भाजपा नेता इस घटना से बेहद व्यथित हैं। उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि मिश्रा ऐसा कदम उठा सकते हैं।

आनुवंशिक है डीएमडी का कोई इलाज नहीं

बताया गया है कि भाजपा नेता संजीव मिश्रा के दोनों बेटों को ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी) बीमारी थी। यह दुर्लभ व घातक बीमारी है। इसमें मांसपेशियों की कमजोरी आने से पीड़ितों का सामान्य जीवन मुश्किल हो जाता है। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी डायस्ट्रोफिन नामक प्रोटीन में कमी के कारण होती है। यह प्रोटीन मांसपेशियों की कोशिकाओं को स्वस्थ रखने और इनके विकास में मदद करता है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि डीएमडी की समस्या के लिए आनुवंशिक कारण अहम है। सामान्यतौर पर इसके लक्षण 2-4 साल की आयु में दिखने शुरू हो जाते हैं। इसका अब तक कोई इलाज नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक लंबे समय तक चलने वाले इसके सहायक उपचार के लिए प्रतिवर्ष का खर्च 2-3 करोड़ रुपये तक खर्च आता है।



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