जिस EVM के जरिए आप वोट देते हैं वो बेंगलुरु और हैदराबाद में बनती है

 ईवीएम की असली कीमत क्या होती है ....

जिस EVM के जरिए आप वोट देते हैं  वो बेंगलुरु और हैदराबाद में बनती है 


एक वोटर के लिए जो सबसे बड़ा और खास सवाल होता है, वह यह है कि जिस ईवीएम मशीन के द्वारा आपने अपने उम्मीदवार को वोट दिया है, आखिर उसे बनाता कौन है? अगर भारत सरकार उसे खरीदती है तो उसके लिए कितनी कीमत चुकाती है? इस आर्टिकल में हम आपको इन सभी सवालों का जवाब देंगे l

EVM जिसे आप इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के नाम से भी जानते हैं. चुनाव में आपका वोट इसी में दर्ज होता है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव भी इसी के माध्यम से कराए गए हैं. आज इन दोनों राज्यों का रिजल्ट आना है, रुझान आने शुरू हो गए हैं और कुछ देर में आंकड़े भी स्पष्ट हो जाएंगे कि कौन सी पार्टी किस राज्य में सरकार बना रही है.इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को भारत में दो सरकारी कंपनियां बनाती हैं. इनमें पहली है भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) जो बेंगलुरु में स्थित है. वहीं, दूसरी कंपनी है इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया जो हैदराबाद में स्थित है l

इलेक्शन कमीशन की आधिकारिक वेबसाइट पर छपी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का पहली बार इस्तेमाल साल 1982 में केरल के आम चुनाव में हुआ था. हालांकि, इसके उपयोग को निर्धारित करने वाले किसी विशेष कानून की अनुपस्थिति के कारण सुप्रीम कोर्ट ने इस चुनाव को रद्द कर दिया. इसके बाद ईवीएम का इस्तेमाल साल 1998 में मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के 25 विधानसभा क्षेत्र में किया गया l

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को चलाने के लिए बिजली की जरूरत नहीं पड़ती. यह एक 6 वोल्ट के एल्कालाइन बैटरी से चलती है. इसे ऐसा इसलिए बनाया गया है, ताकि इसका इस्तेमाल उस जगह पर भी किया जा सके जहां बिजली की व्यवस्था ना हो. वहीं एक ईवीएम मशीन में अधिकतम 3840 वोट दर्ज किए जा सकते हैं. जबकि, एक ईवीएम मशीन में कुल 64 उम्मीदवारों के नाम शामिल किए जा सकते हैं.शुरुआती दौर में यानी साल 1990 में जब पहली बार ईवीएम मशीन खरीदी गई तो उसकी कीमत (EVM Price) लगभग 5500 रुपए थी. इसके बाद साल 2014 में जब ईवीएम मशीन का आर्डर दिया गया तो एक मशीन की कीमत 10500 रुपए तय की गई थी l

Reactions

Post a Comment

0 Comments