राज्यपाल घोटाला की जांच हाई कोर्ट की निगरानी में कराएं :नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह

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राज्यपाल घोटाला की जांच हाई कोर्ट की निगरानी में कराएं :नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह 

भोपाल । मध्यप्रदेश में पोषण आहार घोटाले में कटघरे में आई शिवराज सरकार ने विधानसभा में अपना जवाब तो दे दिया है लेकिन कई सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। मुख्यमंत्री के दिए वक्तव्य से प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस संतुष्ट नहीं हैं और अब उसने इस पूरे मामले की जांच हाई कोर्ट की निगरानी में कराए जाने की मांग की है। पार्टी के विधायकों ने इस मामले में राज्यपाल मंगू भाई पटेल को एक चिट्ठी सौंपी है। 

दरअसल बुधवार को जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस मामले में सरकार का पक्ष रख रहे थे उस वक्त सदन में भारी हंगामा हो रहा था। ऐसे में कोई चर्चा भी नहीं हो पाई। बहरहाल अब नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह की ओर से राज्यपाल को 22 बिंदुओं की एक चिट्ठी सौंपी गई है जिसमें कहा गया है कि क्योंकि हमें सीबीआई पर भरोसा नहीं है इसलिए पोषण आहार घोटाले की जांच उच्च न्यायालय की निगरानी में कराई जाए। इस चिट्ठी के पहले बिंदु में ही कहा गया है कि 11 से 14 वर्ष की ड्रॉपआउट बालिकाओं का बेसलाइन सर्वे ही तय समय में नहीं हुआ, जो सर्वे 2017 में होना था वह सर्वे साल 2022 में किया गया जिससे सर्वे का महत्व खत्म हो गया। बेसलाइन सर्वे के निर्देश महिला एवं बाल विकास मंत्रालय नई दिल्ली ने दिए थे। हालांकि कांग्रेस ने दावा किया था कि वह इस मुद्दे को विधानसभा में उठाएगी लेकिन सदन में हुए शोर-शराबे और हंगामे के कारण यह पूरा मामला ही दब गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महालेखाकार की ड्राफ्ट रिपोर्ट पर जांच कराने की बात जरूर कही है लेकिन उन्होंने इस घोटाले के लिए कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया है उन्होंने कहा कि यह घोटाला कांग्रेस के कार्यकाल में शुरू हुआ।

नेता प्रतिपक्ष ने अपनी चिट्ठी में बोगस आंकड़ों पर भी सवाल उठाए हैं। दरअसल महिला एवं बाल विकास विभाग नई दिल्ली ने डिसबर्समेंट लिंक्ड इंडिकेटर्स(डी एल आई) राज्य सरकार द्वारा ना भेजे जाने पर आपत्ति जताई थी, बावजूद इसके डी एल आई को नहीं भेजा गया। इसी तरह मध्य प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग के ड्रॉपआउट छात्राओं की संख्या में भारी अंतर पर भी राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने अभिमत चाहा था, जिसे नहीं भेजा गया। राज्य सरकार ने इसके लिए कलेक्टरों को निर्देश दिए थे लेकिन किसी भी जिले के कलेक्टर ने ऐसी छात्राओं की कोई सूची नहीं भेजी गई। नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह का सवाल है कि क्या ऐसा शासन के संरक्षण के बिना संभव है। महालेखाकार ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में जिन तथ्यों का जिक्र किया है उनमें टेक होम राशन के परिवहन में जिन ट्रकों का उपयोग किया गया, वे ट्रक नहीं बल्कि बाइक, कार, टैंकर और ऑटो के नंबर हैं। इसी तरह 62 करोड़ 72 लाख रुपए के 10 हजार 176 टन जिस पोषण आहार का जिक्र है वह ना तो गोदामों में पाया गया और ना ही इसके परिवहन के प्रमाण महालेखाकार को मिले। राज्यपाल को लिखी चिट्ठी में बताया गया है कि कोरोना काल में मुरैना, झाबुआ, धार, रतलाम, मंडला डिंडोरी आदि कई जिलों में पोषण आहार नहीं दिया गया लेकिन उसका व्यय होना दिखाया गया है।

ड्रॉपआउट यानी शाला त्यागी बालिकाओं की संख्या में प्रतिवर्ष माह अनुसार काफी अंतर सामने आया है। मई 2018 में यह संख्या 352063, मार्च 2019 में 157950, जून 2020 में 158050, जनवरी 2021 में 107012 और मई 2021 में मात्र 15252 रही। एक ही शैक्षणिक वर्ष में बालिकाओं की संख्या में लाखों का अंतर यह बताता है कि ना तो परीक्षण हुआ और ना ही अधिकारियों ने इसका सत्यापन किया। विधानसभा क्षेत्र में साल 2018 से 2021 तक टेक होम राशन प्राप्त करने वाली बालिकाओं की सूची में अधिकांश की उम्र 14 वर्ष से ज्यादा तथा 19 वर्ष तक की है। इसी तरह 6 माह से 3 साल तक के बच्चों और 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चों की संख्या में भी प्रतिवर्ष काफी अंतर पाया गया है। इसकी बानगी देखिए। 6 माह से 3 साल तक के बच्चे शान 2018-19 से 2020- 21 में क्रमशः 3295 929, 3132 2826 तथा 2447 944 है। सवाल यह उठता है कि 2 सालों में बच्चों की संख्या में 84 7985 का अंतर कैसे आ गया।

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