“राजा और वज़ीर तमाशा करेंगे और प्यादे जान गँवाते रहेगें !

ऑब्जेक्शन मी लॉर्ड…

“राजा और वज़ीर तमाशा करेंगे और प्यादे जान गँवाते रहेगें !

सिस्टम की दुर्गंध भरे खेल में अब चैक ऐंड मैट का मौक़ा आ गया है। समय रहते आवाज़ ना उठा तो भुगतना समाज के हर हिस्से को होगा । देखिये ना किस तरह से निचले कर्मचारी अंधे-बहरे सिस्टम का शिकार हो गये। दरअसल आज नींद खुली तो कॉल पर सोर्स ने बताया कि गुना के आरोन में काले हिरण के शिकारियों से पुलिस की मुठभेड़ें हो गई। सब इंस्पेक्टर समेत तीन पुलिस कर्मचारी मारे गये। दरअसल प्रदेश का राजनैतिक ध्रुव रहे ग्वालियर चंबल के भीतरखाने में माहौल ठीक नहीं है। कौन अफ़सर कब लाया जाये या हटा दिया जाये वो राजनैतिक चौसर पर वही तय करता है जिसका वजन ज़्यादा होता है। कल देर रात हुए हादसे में पुलिस महकमों तीन लोग की मौत के मामले की पड़ताल चौंका देने वाली है। पिन पॉइंट सूचना थी कि  काले हिरण के शिकारी इलाक़े में मौजूद है और काफ़ी शिकार कर रहे है। 

उनसे निपटने हाल ही में नौकरी आये सब इंस्पेक्टर राजकुमार , एक हवलदार नीरज भार्गव और सिपाही संतराम को प्राइवेट ड्राइवर के साथ बिना ठोस इंतज़ाम के भेज दिया जाता है। दुस्साहस से भरे शिकारियों से चार काले हिरण और मोर मरी हालत में पुलिस ने बरामद तो कर ली लेकिन उनकी गोली ने तीनों पुलिस कर्मचारियों को मौत की नींद सुला दिया। अब सोचिये ख़ूँख़ार शिकारियों से लोहा लेने तीन पुलिस के कर्मचारी पर्याप्त है ? क्यो अफ़सर इसने लापरवाह रहे कि राष्ट्रीय पक्षी मोर और शेड्यूल वन के प्राणी काले हिरण का शिकार करने वाले अपराधियों को दबोचने मुकम्मल फ़ोर्स और संसाधन नहीं दिये। वारदात के बाद ज़िम्मेदार आईजी देरी से पहुँचे उन्हें सीएम ने हटा दिया। 

ये भी तय है कि यदि शिकारी पकड़े जाते तो एसपी से लेकर अन्य अफ़सर अपने स्तुतिगान का लंबा चौड़ा प्रेसनोट जारी कर के अपनी उपलब्धि बताते। नेता भी अपनी सरकार का सख़्त रवैया बताकर अपनी ही  पीठ थपथपाते। अब जब ये दुखद घटना हुई है , तो एक दूसरे के सिर ठीकरा फोड़ने की नौटंकी जारी है। इसमें भी राजनैतिक खार साफ़ दिखती है। दरअसल पहले श्रीनिवास वर्मा को आईजी बनाकर ग्वालियर भेजा गया था। जबकि राजनैतिक उठापटक के बाद अनिल शर्मा आईजी बनाकर लाये गये। आने के बाद अपराध और ट्रैफ़िक को लेकर पहले दिन बड़े बड़े दावे किये लेकिन इसके बाद वे पूरा समय कही नहीं दिखे, उन्हें  आम जनता के बजाय परफ़ॉर्मेंस कहा देना था शायद उन्हें पता था। अब दोबारा श्री वर्मा को लाया गया है। पुलिस महकमे के बाद राजनैतिक गलियारे भी गरमाये हुए है। 

ख़ैर, अंचल में अफ़सरों की मौजूदगी दफ़्तरों के बाद कही दिखती है तो केवल बड़े नेताओं के क़ाफ़िले में गाड़ी में भागते हुए। पोस्टिंग कराई है तो जी हुज़ूरी में रहना मजबूरी भी है। अब ये ट्रेंड नया निकला कि मंत्रियों के क़ाफ़िले में आईजी स्तर के अफ़सर भी पूरा पूरा दिन घूमने लगे। जबकि निचला आज भी मई की गर्मी में चौराहे पर ड्यूटी करेगा और आम जनता के कोप का भाजन भी वही बनता रहेगा। सरकारें आती जाती रहेगी, लेकिन ये बादलों के ऊपर साँठगाँठ का ट्रेंड बंद होना चाहिये। इससे नुक़सान आम आदमी और निचले कर्मचारी का ही है। ज़िम्मेदार औपचारिक कार्रवाई के बाद हाथ पैर झाड़कर दोबारा कुर्सी पर क़ाबिज़ होगें और जान हर बार राजकुमार, नीरज और संतराम की जाती रहेगी। 

शहीद जवानों को सादर श्रध्दांजलि...

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