"The Kashmir Files" के विरोध में अटल जी का नाम घसीटने वालों को जवाब

19 जनवरी 1990 का दिन वो ट्रिगर प्वाइंट था जब…

"द कश्मीर फाइल्स" के विरोध में अटल जी का नाम घसीटने वालों को जवाब 

कई मित्र मुझे लगातार संदेश भेज रहे हैं... उस संदेश में एक पोस्ट का जिक्र किया गया है... वो पोस्ट किसी कम्युनिस्ट ने लिखी है... पोस्ट में लिखा गया है कि भक्त कश्मीरी पंडितों पर मातम मना रहे हैं लेकिन ये नहीं बता रहे हैं कि जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हो रहा था उस वक्त केंद्र में वी पी सिंह की सरकार थी जिसको अटल बिहारी वाजपेयी का समर्थन प्राप्त था। इस पोस्ट को एंटी हिंदू लोग... हिंदूवादी ग्रुप्स में डाल रहे हैं... इस पोस्ट के उत्तर के तौर पर ही मैं ये पोस्ट लिख रहा हूं। 19 जनवरी 1990 का दिन वो ट्रिगर प्वाइंट था जब श्रीनगर की मस्जिदों से ये ऐलान हो गया था कि कश्मीरी हिंदुओं तुम या तो इस्लाम स्वीकार कर लो या फिर मर जाओ... इसके अलावा मस्जिदों से मुसलमानों ने रात भर ये नारे भी लगाए थे कि तुम अगर अपनी हिंदू औरतों को छोड़कर भाग जाओगे तो हम तुम्हारी जान बख्श देंगे। 19 जनवरी 1990 की उस काली रात को दिल्ली में प्रधानमंत्री वी पी सिंह थे और गृह मंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद थे। इस सरकार को नेशनल फ्रंट की सरकार कहा जाता था। और इस सरकार में बीजेपी का कोई भी नेता शामिल नहीं था। 

अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी इस सरकार में किसी भी पद पर नहीं थे। वो किसी भी मंत्रिमंडल में भी नहीं थे। वो सरकार द्वारा सृजित किसी समिति के पद पर भी नहीं थे। ये सरकार कैसे बनी थी और क्या इस सरकार के लिए गए फैसलों में बीजेपी की कोई भूमिका थी इस पर हम आगे बात करेंगे... फिलहाल दोबारा कश्मीर पर लौटते हैं। जब 19 जनवरी 1990 से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हुआ तब जगमोहन को जम्मू कश्मीर का राज्यपाल बनाकर भेजा गया था । उस वक्त कश्मीर में सर्दियां चल रही थीं और कश्मीर घाटी पूरी तरह देश से कट जाती थी क्योंकि तब आज के जैसे संसाधन नहीं थे। जगमोहन खुद जम्मू में थे और श्रीनगर नहीं आ पा रहे थे लेकिन उनको ये खबरें पता लग रही थीं कि कश्मीरी पंडित घाटी के अंदर बहुत डरे हुए हैं... उस वक्त घाटी के अंदर कश्मीरी पंडितों को मारा काटा जा रहा था... रेप किया जा रहा था... जम्मू कश्मीर की पुलिस को कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा करनी थी लेकिन उसमें ज्यादातर मुसलमान ही थे इसलिए उन्होंने कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा में कोई बचाव नहीं किया। केंद्र की तरफ के आर्मी को भी कश्मीर में शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए भेजा गया था। 

लेकिन आर्मी अपने आप कुछ भी नहीं कर सकती है जब वो किसी इलाके में जाती है तो उसे कानून व्यवस्था को बहाल करने के लिए उस राज्य की पुलिस के इशारों पर ही निर्भर रहना पड़ता है.... जम्मू कश्मीर पुलिस को ही ये तय करना था कि आर्मी कहां लगाई जाए और कहां नहीं ? और जम्मू कश्मीर पुलिस के मुस्लिम अफसरों ने जिहाद का पूरा फर्ज निभाते हुए आर्मी को सही तरीके से काम करने ही नहीं दिया। इसके बाद जब हजारों की संख्या में कश्मीरी पंडित भाग भाग कर जम्मू के कैंप्स में आने लगे...तब भी किसी पत्रकार ने जाकर ये जहमत नहीं उठाई कि कश्मीरी पंडितों का दर्द लोगों को बताया जाए। लेकिन धीरे धीरे कश्मीरी पंडितों के कैंप्स से इस्लामी आतंकवाद का सच लोगों के सामने आया। उस समय आज की तरह सोशल मीडिया भी नहीं था। कश्मीरी पंडितों का पलायन साल 2000 तक चलता रहा। अब जैसे की कम्युनिस्टों ने अपनी पोस्ट में ये आरोप लगाया है कि जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ तो सरकार भक्तों की थी ये बात पूरी तरह से गलत है । 

दरअसल साल 1989 के चुनाव में राजीव गांधी की हार हुई... कांग्रेस को 197 सीटें मिलीं... वी पी सिंह को 141 सीटें मिलीं और बीजेपी को 85 लोकसभा सीटें मिली थीं। जनमत का सम्मान करते हुए कांग्रेस ने सरकार बनाने का प्रयास नहीं किया। वी पी सिंह सबसे बड़े विपक्षी दल थे लिहाजा उनको सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति के द्वारा आमंत्रित किया गया। छोटी छोटी पार्टियों के साथ मिलकर वी पी सिंह ने एक गठबंधन बनाया जिसका नाम रखा गया... नेशनल फ्रंट... इस नेशनल फ्रंट का अध्यक्ष तेलगुदेशम पार्टी के एन टी रामाराव को बनाया गया... लेकिन फिर भी नेशनल फ्रंट के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं था... इसलिए एन टी रामाराव ने लाल कृष्ण आडवाणी को एक चिट्ठी लिखी और उनसे बिना शर्त समर्थन मांगा। आडवाणी ने अपनी जीवनी माई कंट्री माई लाइफ में इस चिट्ठी को छापा है... इसके जवाब में आडवाणी ने एन टी रामाराव को एक चिट्ठी लिखी थी। उस चिट्ठी में आडवाणी ने वी पी सिंह की आलोचना करने के बाद ये कहा कि वो जनता के मत का सम्मान करते हुए... वी.पी. सिंह की सरकार को आलोचनात्मक समर्थन देते हैं...ये समर्थन भी बाहर से दिया गया था। सरकार में बीजेपी का कोई रोल नहीं था। 

कश्मीरी पंडितों के पलायन पर वी पी सिंह की विफलता... गृहमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद का अपहरण और फिर आतंकवादियों को रिहा किया जाना। घाटी में जिहाद से निपटने में वी पी सिंह की नाकामी और राम मंदिर आंदोलन पर वी पी सिंह सरकार के विरोधी रुख... और राम रथ यात्रा के दौरान आडवाणी की बिहार में गिरफ्तारी के बाद 23 अक्टूबर 1990 को ये स्पष्ट हो गया कि अब वी पी सिंह के पास बाहर से बीजेपी का कोई समर्थन नहीं है... और नवंबर 1990 में ही वी पी सिंह की सरकार गिर गई। उसके बाद 1996 में अटल जी के सीएम बनने तक लगातार पांच साल चुन चुन कर कश्मीरी पंडितों का सफाया होता रहा लेकिन हर कांग्रेसी जिहाद के समर्थन में लगा रहा। मुस्लिम वोट बैंक खो जाने के डर से किसी ने कश्मीरी पंडितों का साथ नहीं दिया। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस दर्द को अपनी जीवनी में बयान किया है जिस पर हम आगे कभी जरूर बात करेंगे। इस संबंध में बीजेपी को दोष देना गलत है क्योंकि आतंकवादी की पहली गोली का शिकार भी बीजेपी का एक नेता ही हुआ था जो कि कश्मीरी पंडित था.... आगे कभी उसकी भी चर्चा होगी !

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