जमीन से आसमान तक दिखी भारत के सैन्य और संस्कृति की झलक…

राजपथ बना 'शक्तिपथ'

जमीन से आसमान तक दिखी भारत के सैन्य और संस्कृति की झलक…

 

26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस एक ऐसा ही दिन है, जो देश का राष्ट्रीय पर्व है. देश का हर नागरिक चाहे वह किसी धर्म, जाति या संप्रदाय से ताल्लुक रखता हो, इस दिन को राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत होकर मनाता है. इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ. भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजादी तो मिल गई थी, लेकिन 26 जनवरी 1950 को भारत एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित हुआ. 73वें गणतंत्र दिवस के मौके पर आज राजधानी दिल्ली में राजपथ पर भारत की सैन्य शक्ति के साथ ही सांस्कृतिक झलक और परंपरागत विरासत की झांकी पेश की गई. गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय समर स्मारक पर देश के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की.  

साल 1971 और इसके पहले और बाद के युद्धों सहित सभी युद्धों के समस्त भारतीय शहीदों के नाम राष्ट्रीय समर स्मारक में अंकित किए गए हैं. स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद प्रधानमंत्री ने वहां डिजिटल आगंतुक पुस्तिका पर अपना संदेश भी लिखा. परेड की शुरुआत परमवीर चक्र और अशोक चक्र वीरता पुरस्कार विजेताओं के साथ हुई. ये सभी जीपों पर सवार होकर परेड में शामिल हुए. करगिल युद्ध (1999) में असाधारण बहादुरी दिखाने के लिए भारत का सर्वोच्च युद्धकालीन वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र पाने वाले सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव तीन जीपों में से पहली में सवार थे. यादव को पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर मानद कैप्टन के पद से नवाजा गया था.  

करगिल युद्ध के दौरान असाधारण बहादुरी दिखाने के लिए परमवीर चक्र पाने वाले सूबेदार संजय कुमार दूसरी जीप पर सवार थे. कर्नल डी श्रीराम कुमार तीसरी जीप में सवार थे, जिन्हें 23 अक्टूबर 2008 को इम्फाल में आतंकवाद रोधी अभियान के दौरान असाधारण बहादुरी दिखाने के लिए भारत के सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया है. भारतीय सेना की 61 ‘कैवेलरी रेजीमेंटके घुड़सवार सैनिक का दल बुधवार को गणतंत्र दिवस परेड की पहली मार्चिंग टुकड़ी रहा. इस दल का नेतृत्व मेजर मृत्युंजय सिंह चौहान ने किया. यह वर्तमान में दुनिया में सक्रिय एकमात्र घुड़सवार इकाई है। 61 ‘कैवेलरी रेजीमेंटका गठन 1953 में सभी राज्यों की अश्व इकाइयों को मिलाकर किया गया था.

 परेड में भारतीय नौसेना की झांकी में 1946 के नौसैनिक विद्रोह को दर्शाया गया, जिसने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इसकी मार्चिंग टुकड़ी का नेतृत्व एक महिला अधिकारी ने किया. गौरतलब है कि 18 फरवरी, 1946 को रॉयल इंडियन नेवी केतलवारजहाज पर सवार नौसैनिकों द्वारा विद्रोह शुरू किया गया था और बाद में 78 जहाज इसका हिस्सा बन गए. परेड में नौसैनिक दल में 96 पुरुष, तीन प्लाटून कमांडर और एक टुकड़ी कमांडर शामिल थे. इसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर आंचल शर्मा ने किया. राजपथ पर परेड में निकली वायु सेना की झांकी में देश की पहली महिला राफेल लड़ाकू विमान पायलट शिवांगी सिंह ने भी भाग लिया

 

वह वायु सेना की झांकी का हिस्सा बनने वाली दूसरी महिला लड़ाकू विमान पायलट हैं. पिछले साल फ्लाइट लेफ्टिनेंट भावना कंठ वायु सेना की झांकी का हिस्सा बनने वाली देश की पहली महिला लड़ाकू विमान पायलट थीं. वाराणसी से ताल्लुक रखने वाली शिवांगी सिंह 2017 में वायु सेना में शामिल हुई थीं और महिला लड़ाकू विमान पायलटों के वायु सेना के दूसरे बैच में शामिल हुईं. राफेल उड़ाने से पहले वह मिग-21 बाइसन विमान उड़ाती रही हैं. इस के अवसर पर यहां परेड के दौरान गुजरात की झांकी में 1,200 आदिवासियों के भीषण नरसंहार से ब्रिटेन द्वारा कुचल दिए गए भील बहुल साबरकांठा के एक सदी पुराने विद्रोह को दर्शाया गया.  

गुजरात सरकार की झांकी में ब्रिटेन द्वारा लगाए गए अत्यधिक लगान और जबरन मजदूरी कराए जाने के खिलाफ विरोध करने वाले पाल और दधवाव गांवों के आदिवासियों और इसके बाद ब्रितानी सेना द्वारा की गई अंधाधुंध गोलीबारी की घटना को दर्शाया गया. परेड के दौरान विभिन्न राज्यों, विभागों और सशस्त्र बलों की 25 झांकियां दिखाई गईं. तमाम झांकियों के बाद भारतीय एयरफोर्स की ताकत देखने को मिली. राजपथ के ऊपर जब एयरफोर्स के लड़ाकू विमान आए तो पूरा आसमान गूंजने लगा.  

वायुसेना की गर्जना देख लोगों के रौंगटे खड़े हो गए. राजपथ पर वायुसेना के कई विमानों ने अपने करतब दिखाए. एयरफोर्स के फाइटर जेट्स ने अलग-अलग फॉर्मेशन बनाए. जिसमें राफेल, सुखोई, जगुआर , एमआई-17 और अपाचे हेलीकॉप्टर नजर आए. फॉर्मेशन की अगर बात करें तो मेघना, एकलव्य, बाज, तिरंगा, विजय और सबसे खास अमृत फॉर्मेशन रहा. जिसमें कई विमान एक साथ नजर आए. आखिर में एयरफोर्स के 75 एयरक्राफ्ट्स ने एक साथ फ्लाई पास्ट किया.

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