आप भी जानें विश्व के दूसरे सबसे प्राचीन कटारमल मन्दिर की महिमा...

 भगवान की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी !

आप भी जानें विश्व के दूसरे सबसे प्राचीन कटारमल मन्दिर की महिमा...

सनातन धर्म और सनातन संस्कृति में सूर्य पूजा का पूराना इतिहास है। तभी तो सनातन धर्म के आदि पंच देवों में एक सूर्यदेव भी है। जिन्हें कलयुग का एकमात्र दृश्य देव माना जाता है। सूर्य को देव या यूं कहें सूर्य नारायण मानते हुए देश में कुछ जगहों पर सूर्य मंदिरों का भी समय समय पर निर्माण होता रहा है। जो आज भी कई रहस्य लिए हुए हैं। एक ऐसा ही प्राचीन मंदिर है ‘कटारमल सूर्य मन्दिर’। इस मंदिर को उड़ीसा में स्थित सूर्य देव के प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर के बाद दूसरा सूर्य मंदिर माना जाता है। देवभूमि उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में कटारमल पर स्थित है। यह मंदिर उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गांव में है। 

मंदिर के निर्माण के समय को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं। इस मंदिर का निर्माण नौवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में कटारमल नामक एक शासक द्वारा करवाया गया माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में कुमाऊं में कत्यूरी राजवंश का शासन था। इसी वंश के शासकों ने इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था लेकिन पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर की वास्तुकला व स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों को लेकर किए गए अध्ययनों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण समय तेरहवीं सदी माना गया है। कटारमल सूर्य मन्दिर को ‘बड़ आदित्य सूर्य मन्दिर’ के नाम से भी जाना जाता है। 

इसका कारण है कि इस मन्दिर में स्थापित भगवान आदित्य की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी हुई है। इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। कटारमल सूर्य मन्दिर का निर्माण एक ऊंचे व वर्गाकार चबूतरे पर किया गया है। मुख्य मन्दिर के आस पास ही भगवान गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, श्री लक्ष्मीनारायण, भगवान नृसिंह, भगवान कार्तिकेय के साथ ही अन्य देवी देवताओं से संबंधित 45 के करीब छोटे बड़े मन्दिर बने हुए हैं। नागर शैली में बने इस मंदिर की संरचना त्रिरथ है। मन्दिर का ऊंचा शिखर अब खंडित हो चुका है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार जो बेजोड़ काष्ठ कला का उत्कृष्ट उदाहरण था, उसके कुछ अवशेषों को नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है। 

इस मंदिर की प्राचीनता को देखते हुए भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में उत्तराखण्ड में ऋषि मुनियों पर एक असुर ने अत्याचार किये थे। इस दौरान द्रोणगिरी, कषायपर्वत व कंजार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी यानि कोसी नदी के तट पर पहुंचकर सूर्य-देव की आराधना की। इसके बाद प्रसन्न होकर सूर्य-देव ने अपने दिव्य तेज को एक वटशिला में स्थापित किया। इसी वटशिला पर ही तत्कालीन शासक ने सूर्य-मन्दिर का निर्माण करवाया। वही मंदिर आज कटारमल सूर्य-मन्दिर के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

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