पार्क में इंसान नहीं सूअर और गधे करते हैं वाॅक

108.90 लाख रू. की लागत से 3.8 एकड़ में बने…

पार्क में इंसान नहीं सूअर और गधे करते हैं वाॅक

वार्ड 33,लक्ष्मण तलैया के पास बंद पड़ी खदान को कचरे से पाटकर एक पार्क की कल्पना जब अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के द्वारा की गई थी तो क्षेत्र में रहने वाली जनता को एक उम्मीद जगी थी कि उन्हें एक सुंदर पार्क मिल जायेगा। जिसमें वह सुकून के कुछ अपने परिजनों के साथ बिता सकेंगे। उनके बच्चे उस पार्क में खेल सकेंगे। बुजुर्ग माॅर्निंग वाॅक का लुत्फ उठा सकेंगे। जनता की उम्मीद उस समय और प्रगाढ़ हुई जब यहां 108.90 लाख रूपये खर्च करके 3.8 एकड़ क्षेत्र में एक पार्क को मूर्त रूप दिया जाने लगा। यहां पार्क का निर्माण भोपाल की फर्म विजय जेठानी ऐषोसियेट के द्वारा किया गया था। पार्क में चारों तरफ बागड़ भी लगाई गयी थी। वाॅकिंग साइड,मैदान में हरी घास और फूलांे के पौधे और जनप्रतिनिधियों ने फोटो खिचवाते हुए कुछ पौधे भी रोपे। 

यही सिलसिला नगर निगम ग्वालियर के द्वारा भी अपनाया गया वृक्षारोपण के नाम पर यहां वर्षात के दौरान वृक्षारोपड़ किया गया जिसके फोटो अखबारों की सुर्खिया बने। लेकिन इन सबके बाबजूद इस पार्क की जो स्थिति है उससे हम आपको रू-बरू करवा रहे हैं। आप स्वयं फैसला कररिये ये किसकी लापरवही और निकम्मेनन का नतीजा है जो 108.90 लाख रू. से भी अधिक रूपये खर्च होने के बाद भी इस पार्क में कोई इंसान इस पार्क में आराम करने या वाॅक करता हुआ कभी दिखाई नहीं देता है। हां कुछ बच्चों को छोड़ दिया जाये जो कि यहां बची-खुची घास पर क्रिकेट खेलते दिख जाये तो आष्चर्य की बात नहीं है क्योंकि ये यही की बस्ती के रहने वाले बच्चे है जो इस वीरान पडे़ पार्क में अक्सर खेलते दिख जाते हैं। 

इसके उलट यहां लाखांे रूपये खर्च कर बनाये गये इस पार्क में सूअर, गधे और आवारा पशु अवष्य पार्क में धूप का आनंद लेते और इसमें घूमते कभी भी देखे जा सकते हैं। पार्क में लगे फूलों के पौधे और घास सूख कर गायब हो चुके हैं। जो बागड़ है वह झाड़ियों के रूप में बदल चुकीं हैं। पोल्स पर लगी लाइटें टूट फूट चुकीं हैं। पानी की टंकी गायब हो चुकी है। पार्क की इस दुर्दषा के लिये क्या ठेकेदार जिम्मेदार है या लापरवाह वे अधिकारी और कर्मचारी हैं जो इसे बनबाकर इसकी देख-रेख की जिम्मेदारी उठाना भूल गये। यही हाल यहां वीरान पड़े हाॅकर जान का हैं जिसमें षिन्दे की छावनी,फालका बाजार और आसपास के हाथठेलों को खड़ा करवाने के लिये किया गया था। जिससे कि इन क्षेत्रों लगने वाले जाम से लोगों को निजात मिल सके। 

लेकिन यह भी पार्क की तरह ही देखरेख के अभाव और अधिकारियों की लापरवाही और उदासीनता केे चलतेें वीरान पड़ा है। और यही हाल रहा तो यह भी पार्क की तरह उजड़ जायेगा। यह पार्क या हाॅकर जान इस प्रकार की दुर्दषा का षिकार नहीं है इसी प्रकार उरवाई गेट से आगे बने हाॅकर जान का हाल तो इससे भी बुरा हुआ है। उसका तो सैड तक चोर उखाड़ ले गये इसी प्रकार बैजाताल के पास लाखों रूपये के विभिन्न किस्म के फूलदार पौधे-लेमन ग्रास आदि से एक लेण्ड स्केप तैयार किया गया था वह भी अब पूरी तरह नष्ट हो चुका है। अब प्रष्न वही खड़ा होता है कि जब हमारी नगर निगम या स्मार्ट सिटी इन प्रोजेक्ट का उचित प्रबंधन नहीं कर पा रही है तो फिर जनता के टेक्स से प्राप्त पैसे की बरबादी विकास के नाम पर क्यों की जा रही है।

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