भारत को तालिबान से ALERT रहने की ज़रूरत : वर्ल्ड मीडिया

भारत को रहेगा कंधार कांड जैसी घटनाओं का डर !

भारत को तालिबान से सतर्क रहने की ज़रूरत : वर्ल्ड मीडिया 

अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत के आने से उसके पड़ोसी देशों पर पड़ने वाले असर को लेकर वर्ल्ड मीडिया चिंता जाहिर कर रहा है। अफगानिस्तान के सात पड़ोसी देश हैं- पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, चीन और भारत। तालिबानी हुकूमत का सभी पर अलग-अलग प्रभाव होगा। हम बारी-बारी से सभी को बता रहे हैं। अल-जजीरा की खबर के अनुसार, तालिबान के उसके पड़ोसी देशों में सबसे बेहतर संबंध पाकिस्तान से हैं। जबकि, तालिबान ने सत्ता में आते ही उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान के बॉर्डर्स सील कर दिए हैं। 

भारत की ओर से लगातार नागरिकों की रक्षा की तैयारियों का जिक्र करते हुए उसने कंधार कांड की याद दिलाई। 24 दिसंबर 1999, इंडियन एयरलाइंस का विमान नेपाल के काठमांडू से 180 यात्री लेकर दिल्ली के लिए उड़ा, लेकिन दिल्ली पहुंचा नहीं। आतंकियों ने उसे हाईजैक कर लिया। तब उन आतंकियों को अपने यहां उतरने के लिए अफगानिस्तान की तालिबान हुकूमत ने जमीन दी। आतंकियों ने कंधार में विमान उतारा। वहीं से 8 दिन तक भारत के साथ डील करते रहे। जब भारत मसूद अजहर समेत 3 आतंकी लौटाकर अपने यात्रियों को लेने पहुंचा था तब तालिबानी सैनिकों ने भारतीय सेना को इस तरह से घेर लिया था कि वो कुछ नहीं कर पाए।

अब जब दोबारा अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आ रहा है तो भारत पिछले एक महीने में दो वाणिज्यिक दूतावास समेट चुका है। काबुल में भारतीय दूतावास ने अफगानिस्तान में सभी भारतीयों से आग्रह किया है कि बढ़ते संघर्ष के बीच व्यावसायिक उड़ानें बंद होने से पहले वे तत्काल वहां से निकलने की व्यवस्था कर लें। अपने लोगों को वापस लाने के लिए भारत ने C17 ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट भेजा है। इसके अलावा भारत की चिंता अफगानिस्तान में चल रहे 22 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट हैं। 

साथ ही द कनवरसेशन की खबर के अनुसार, अफगान सरकार के साथ मिलकर भारत लगातार पाकिस्तान पर कूटनीतिक बढ़त बनाए हुए था, लेकिन अब पाकिस्तान तालिबान के साथ मिलकर भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाएगा। अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान इकलौता देश है जो वहां तालिबान की हुकूमत से खुश है। पाकिस्तान के उर्दू अखबार 'नवा-ए-वक्त' के मुताबिक अफगान नेताओं का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल सोमवार को पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के दफ्तर पहुंचा। विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने उनका स्वागत करते हुए कहा, "हमें अफगानिस्तान और क्षेत्र की बेहतरी के लिए रणनीति विकसित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। 

UN की एक रिपोर्ट दावा करती है कि पाकिस्तान में 30 लाख से अधिक अफगान शरणार्थी रहते हैं। दोनों देशों के बीच 2500 किलोमीटर लंबी सीमा होने के बावजूद कोई बॉर्डर विवाद नहीं है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तेयेब अर्दोआन ने हाल ही में एक बयान में कहा, "तालिबान को अपने ही भाइयों की जमीन से कब्जा छोड़ देना चाहिए। मुस्लिमों के साथ रहा है। दूसरी ओर चीन के शिनजियांग क्षेत्र में रहने वाले उइगर मुस्लिमों को चीन ने आज तक अपनाया नहीं है। चीन हमेशा से उन्हें_ _अल्पसंख्यक और बाहरी मानता है। शिनजियांग क्षेत्र खनिजों से समृद्ध है और भारत, पाकिस्तान, रूस और अफगानिस्तान समेत 8 देशों के साथ सीमा साझा करता है। तालिबान हर हाल में यहां अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। 

यूरोपीय देश लगातार अफगानिस्तान में होने वाली आतंकी गतिविधियों का विरोध करते रहे हैं। अब वे तालिबान के निशाने पर होंगे। रूस और अफगानिस्तान के बीच लड़ाई जारी थी, तब से सऊदी अफगानिस्तान के साथ है। इसके अलावा कतर एक ऐसा देश है जो अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति में अहम भूमिका निभा रहा है। असल में तालिबान का राजनीतिक दफ्तर कतर के दोहा में ही है। इसी ने अपनी जमीन पर तालिबान को अमेरिका से बातचीत करने के लिए ठिकाना दिया था। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान छोड़ने पर अंतिम फैसला किया था।

Comments