खबर का असर…

एक बीमारी, एक दवा, रेट अलग-अलग !

खबर का असर…

दवा कंपनियों की पॉलिसी : देश में महंगी विदेश में सस्ती...

Remedesevir( रेमेडेसेविर ) on sale

  •     ? ये रेमडेसिवर injection कितने का है
  •       ः 899 का 
  •   ? और दिखाइए 
  •       ः जी
  •   ? इनका rate बताइए 
  •      ः  ये 2450, ये 2700 और ये 3490 का  
  •   ? ये फ़र्क़  क्यों 
  •      ः पता नहीं
  •   ? 899 वाला काम नहीं करेगा 
  •       ः करेगा 
  •   ? 3490 वाला ज़्यादा काम करेगा 
  •      ः नहीं उतना ही करेगा 
  •   ? फिर rate का फ़र्क़ क्यों  
  •     ः पता नहीं
  •   ? आप ने बराबर rate क्यों  नहीं रखे 
  •     ः  रेट सरकार ने फ़िक्स किए हैं 
  •   ? सरकार ने ऐसा क्यों  किया 
  •     ः पता नहीं 
  •   ? 899 वाला घटिया होगा 
  •     ः सरकार ने pemisssion दी है , कैसे हो सकता है
  •   ? 3490 वाले में Doctor का कमिशन है 
  •   ः   रेट सरकार ने तय किए हैं , डॉक्टर ने नहीं 
  •   ? फिर सरकार का commission होगा। 
  •     ः  पता नहीं 
  •   ? मैं कौनसा लगवाऊँ 
  •        ः आपकी मर्ज़ी 
  •   ? आपको पता है , कौनसा अच्छा है
  •       ः पता नहीं
  •   ? डॉक्टर को पता होगा 
  •     ः   पता नहीं
  •    ? किससे पूछूँ
  •      ः  सरकार से
  •    ? सरकार कहाँ है
  •       ः पता नहीं।

             अभी हाल ही में स्वदेशी निर्मित कोरोना वैक्सीन कोविशीलड और  कोवैक्सीन की निर्माता कंपनियां केंद्र सरकार को मात्र ₹150 में देती है। उसी वैक्सीन को अब चार सौ और ₹600 में राज्य सरकारों को एवं प्राइवेट अस्पतालों को 1200 ₹ में दिया जाएगा। इतना ही नहीं इतना ही नहीं दूसरी कंपनी 150,400 ₹600 में इन कोरोना वैक्सीन को देश में उपलब्ध कराने की घोषणा कर चुकी है। वहीं विदेशों में इससे भी काफी कम कीमत पर ये दवाएं भारतीय दवा इन दोनों कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है। इसके पीछे इन कंपनियों की आखिर मुनाफाखोरी नहीं तो और क्या लॉजिक हो सकता है!

       एक ही देश में एक ही मर्ज की दवा के अनेक दाम कैसे ?

अभी 2 दिन पहले ही जी न्यूज़ 24 द्वारा इस मुद्दे से संबंधित खबर प्रसारित की गई थी, इस खबर का शीर्षक था, "दवाओं पर रियल एमआरपी प्रिंट होगी, तो काली कमाई भी बंद होगी !" https://www.gnews24.co.in/2021/04/mrp.html?m=1 इस खबर को आप इस लिंक पर जा कर देख सकते हैैं। 

खबर में इस मुद्दे को बड़े ही गंभीर ढंग से उठाया गया था । जो बातें वर्तमान समय में देखने और सुनने में सामने आ रही हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण अलग-अलग कंपनियों के रेमेडीशिवर इजंक्शन की अलग-अलग u पर उपलब्धता ही इस व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करती है।  

क्योंकि जब बीमारी एक है तो उसकी दवाई भी एक ही होना चाहिए और जब दवाई एक है तो उसकी कीमत भी एक ही होना चाहिए।

अलग-अलग कीमत अपनी दवाओं पर दर्शा कर कंपनियां आखिर क्या दर्शाना चाहती हैं कि सामने वाली कंपनी ने कम कीमत पर जो दवा उपलब्ध करवाई है वह कारगर नहीं है और उसके द्वारा ज्यादा कीमत पर उपलब्ध कराई जा रही दवा कारगर है। और अगर ऐसा है तो सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराई गई दवा को अप्रूवल कैसे मिल गया ? और यदि उसे अप्रूवल मिला है तो वो खराब कैसे हो सकती है ? ऐसे ही कई प्रश्न हैं जिनका जवाब इन दवा निर्माताओं और सरकारों को देना चाहिए।

इस कोरोनाकाल में भी देखने को मिल रहा है। फार्मेसी कंपनियों द्वारा अपनी बनाई गई दवा पर मनमानी एमआरपी प्रदर्शित करके और फिर उस एसएमआरपी पर अस्पतालों डॉक्टरों और सरकारों की मिलीभगत से जिंदगी और मौत की जंग लड़ते मरीजों के परिजनों से रकम वसूलना ही एकमात्र उद्देश्य रह गया है।

                                               - रवि यादव

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