ये तो ट्रेलर है पिक्चर तो अभी बाकी है ए दुनिया वालों

ग्लोबल वार्मिंग का...

ये तो ट्रेलर है पिक्चर तो अभी बाकी है ए दुनिया वालों

दुनिया तेजी से विकास तो कर रही है,इस विकास की भेड़ चाल में हमारा देश भी शामिल है। और क्यों ना हो विकास किसे बुरा लगता है विकास कौन नहीं चाहता लेकिन यह विकास अपनी जान की बाजी लगाकर मिले तो इसके कोई मायने नहीं रह जाते हैं।  विकास की इस भेड़ चाल में शामिल होते समय हम यह भूल गए कि हमारे देश का वायु मंडल उसकी भौगोलिक परिस्थितियां कैसी हैं ।यह कितनी जनसंख्या घनत्व का सामना कर रहा है।

पश्चिमी देशों के विकास से प्रभावित होकर इन सभी बातों को भुलाकर विकास की इस दौड़ में शामिल होने के लिए हम ग्रामीण क्षेत्रों को नष्ट कर आबादी के रूप में परिवर्तित करते जा रहे हैं। 2 नहीं 4 नहीं बल्कि16-16 लाइन के हाईवेज तैयार कर रहे हैं। 3 नहीं 4 नहीं बल्कि 5 g7g मोबाइल नेटवर्क भी हमारी जरूरत है पूरी नहीं कर पा रहे हैं।

इसके पीछे के कारण हैं हमारे द्वारा जरूरत से ज्यादा संसाधनों का उपयोग करना, जैसे संपर्क के लिए एक मोबाइल से काम चल सकता है लेकिन आज लगभग हर दूसरा व्यक्ति दो-दो मोबाइल रखता है और उन दोनों मोबाइल के अंदर दो-दो सिम किसी किसी में तो ट्रिपल सिम यूज करता है। तो स्वाभाविक है कि इसके लिए नेटवर्क भी ज्यादा चाहिए । जब नेटवर्क ज्यादा होगा तो उससे निकलने वाली किरणों से रेडिएशन भी ज्यादा बड़ेगा। 

इसी तरह जब एक परिवार में एक कार से भी काम चल सकता है उसके बावजूद भी लोग अपना स्टेटस दिखाने के लिए एक से अधिक का इस्तेमाल करते हैं। अक्सर देखने में आता है कि जितने लोग उतनी कार और उसी तरह टूव्हीलर रखने में लोग अपनी शान समझते हैं। और फिर इन सब को चलाने के लिए 4,6,8,16 लेन तो छोड़िए। सड़कों पर जिस गति से वाहन बढ़ते जा रहे हैं तो फिर 32 लाइन सड़क भी कम पड़ जाएगी। 

इन संसाधनों के निर्माण में प्रकृति द्वारा प्रदत संसाधनों का ही का उपयोग होता है ये सब जंगल और जमीन से ही लिए जाते हैं जब इन संसाधनों का दोहन जरूरत से ज्यादा किया जाएगा तो ग्लोबल वार्मिंग होना निश्चित है।

आज हम बड़ी-बड़ी गगनचुंबी इमारतों के रूप में कंक्रीट के जंगल उगाते जा रहे हैं। लेकिन इन चौड़ी चौड़ी सड़कों, गगनचुंबी इमारतों के निर्माण के बदले हमने कितने पेड़ पौधों कच्ची जमीन को नष्ट कर दिया इसका कोई ब्यौरा नहीं है। जितना हम प्रकृति से ले रहे हैं उसका हम पॉइंट फाइव परसेंट भी नहीं लौटा रहे हैं। यही कारण है आए दिन कभी किसी महामारी का कभी किसी आपदा का सामना या को करना पड़ रहा है। 

इस प्रकृतिक डिस्टरबेंस के चलते वाटर लेवल लगातार गिरता जा रहा है जमीन का तल लगातार ड्राई होता जा रहा है। पेड़ पौधों के नष्ट होने से जीवनदायिनी ऑक्सीजन का प्राकृतिक रूप से उत्पादन स्तर गिरता जा रहा है। यही कारण है कि आज लोग फ्री में प्रकृति द्वारा प्रदत्त की जाने वाली ऑक्सीजन के लिए लाखों करोड़ों रुपए हाथों में लिए घूम रहे हैं लेकिन उन्हें ऑक्सीजन है कि मिल ही नहीं रही है। और फिर कृत्रिम रूप से बनाई गई है यह ऑक्सीजन कितने दिन जिंदगी दे सकती है ? यह आप और हम इसकी कल्पना बहुत अच्छे तरीके से इन दिनों महामारी के दौरान ऑक्सीजन का जो क्राइसिस चल रहा है उसे देख कर लगा सकते हैं।

अब भी संभल जाइए दुनिया वालों वरना अभी तो प्रकृति ने अपना यह ट्रेलर दिखाया है पिक्चर तो अभी बाकी है यह दुनिया वालों संभल जाओ। और जो प्रकृति से छीना है उसे वापस करने का प्रयास करो। से अधिक पेड़ पौधे लगाओ लेवल रिचार्ज करो प्राकृतिक डिस्टेंस खत्म करने का जिंदगी की सांसे बिना किसी बाधा के लगातार मिलती रहेंगी अन्यथा आज जो देखने को मिल रहा है वह हमेशा इसी प्रकार का बार-बार देखने को मिल सकता है।

प्रकृति के बैलेंस को संतुलित बनाए रखने का सबसे आदर्श उदाहरण है हमारी ग्रामीण व्यवस्था। जहां लोग प्रकृति से उतना ही लेते हैं जितना की उनको जरूरत होती है। यही कारण है कि वे इस कोरोना कॉल जैसी महामारी में भी बिना किसी बाधा के सरवाइव कर पा रहे हैं। इसका कारण है उनके रहन-सहन खान-पान और दैनिक दिनचर्या में प्राकृतिक वातावरण का समाहित होना।

जबकि शहरों में ठीक इसके उल्टा है। यही कारण है कि शहर की ज्यादा जनसंख्या कोरोना जैसी महामारी से ज्यादा प्रभावित रही है। लेकिन शहरी लोगों के देखा देखी अब ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी भी शेरों की तरफ आकर्षित होने लगी है। यही कारण है कि शहरों की जनसंख्या घनत्व बढ़ने से शहरी क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधन भी तेजी से नष्ट होने लगे हैं।

यह जीवन का सबसे बड़ा एक सत्य यह भी है कि आदमी की जरूरतें कभी पूरी नहीं होती है । उसकी आकांक्षाएं इच्छाएं हमेशा बढ़ती ही रहती हैं। इन्हें जरूरत के हिसाब से सीमित रखने में ही समझदारी है। बढ़ती जरूरतों के हिसाब से प्रकृति का दोहन करेंगे तो निश्चित रूप से ग्लोबल वार्मिंग का सामना करना ही पड़ेगा।

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