शिकायत पत्र
शिकायत पत्र
श्री राम शिकायत है तुमसे,
क्यू भेजा जग में जीने को।
जब प्राण वायु में शामिल तुम,
फिर कष्ट दिए क्यू पीने को।
श्री राम आप भगवन होकर,
मानव रूप धरा जग में।
देखा था कष्टो का आंगन,
चुभते थे कांटे पग पग में ।
बचपन के रूप अनूप तेरे,
सुन्दर लगते थे मन भावन ।
जन्में तुम दशरथ जी के घर,
खेला करते आंगन आंगन।
चरितार्थ किया जीवन सारा,
लिखकर रामायण तुलसी ने।
जब ज्ञान दिया था पत्नी ने,
और जन्म दिया माॅ हुलसी ने।
देखा माॅ की ममता को भी,
ललचाई थी सिंहासन पर।
भाई का भाई भेद दिया,
तब विजय मिली थी रावण पर ।
तुम जनक दुलारी को ब्याह कर,
वन गमन किया था कांटो पर।
मर्यादा में सिमटे रहकर,
घूमें नदियों के घाटों पर।
श्री राम आप जगतारण थे,
जो पत्थर तैरे थे पानी पर।
अब दंभ लालची हंसते हैं,
प्रभु राम तेरी मर्यादा पर।
अब तो प्रतिकूल प्रतिष्ठा है,
ना पुत्र हुए आज्ञाकारी ।
नारी मर्यादा वंचित है,
और पुरूष हुए हैं व्यभिचारी ।
जब आप विधाता होकर भी,
न बदल सके विधि का विधान ।
हमसे उम्मीदें फिर कैसी,
बन जाएं कैसें आज महान।
जोड़ी बनती थी तब नभ में,
अब न्यायालय में बनती है ।
संग साथ चले तो दिन कितने,
फिर तो तलाक की कहतीं हैं।
यहाँ मात पिता के लिए प्रभु,
वृद्धा आश्रम खोले जाते हैं।
जिनको पाला था आंचल में,
कटु बचन ही बोले जाते हैं।
अब तो दहेज भी शामिल है,
बेटी की किस्मत लिखने में ।
उससे किसकी शादी होगी,
अफ़सोस न करतीं कहने में।
अब पुत्र वधु बस पुत्र की है,
तब रोती ममता माता की ।
घर में रहतीं मेहमां बनकर,
दुखदायी भगिनी भ्राता की ।
कितना संघर्ष गिनाऊं में,
प्रभु आप भी हमसे ना कह दो।
वापस जीवन ना दे देना,
विनती है प्रभु हां कह दो।
श्री राम राम प्रभु आप ही हो,
हम राम नहीं बन पाएंगे।
अब तो लेलो प्रभु शरण हमें,
अबकी ना वापस आएंगे।
भूपेंद्र "भोजराज" भार्गव
Comments
Post a Comment