फ्री मिलने वाले खाद्यान्न पर आखिरकार कौन डाल रहा है डांका !

गरीबों के लिए…
फ्री मिलने वाले खाद्यान्न पर आखिरकार कौन डाल रहा है डांका !

केंद्र सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि देश में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं रहेगा। जिनके पास कोरोना महामारी के चलते कोई रोजगार नहीं आमदनी का कोई साधन नहीं है और ना ही जिनके पास बीपीएल कार्ड है। फिर चाहे वह बीपीएल की श्रेणी में आता हो या ना आता हो, ऐसे सभी लोगों को जिनके पास एपीएल राशन कार्ड हो अथवा न हो,और जिन्हें अप्रैल-मई का राशन प्रति व्यक्ति 5 किलो गेहूं या चावल और प्रत्येक परिवार को 1 किलो चना दाल प्रति माह के हिसाब से फ्री दी गई थी। ऐसे उन सभी लोगों के लिए इस योजना को आगे बढ़ाते हुए नवंबर 2020 तक कर दिया गया है। 

यानी कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर रखा है कि जिन लोगों को अप्रैल -मई माह का फ्री राशन दिया गया था। उन्हें आगे भी राशन उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से मिलता रहेगा। लेकिन यहां बताना मुनासिब होगा कि अब जुलाई माह समाप्त होने को है लेकिन अभी भी ऐसे जरूरतमंद लोगों को जून और जुलाई महा का राशन गेहूं व चावल व चना दाल का वितरण अभी तक दुकानों के संचालकों द्वारा नहीं किया गया है।

 देश के सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री के द्वारा फ्री राशन की घोषणा करने के बावजूद अभी तक राशन का वितरण नहीं किया जाना, क्या इन गरीबों के साथ एक मजाक या छलावा नहीं है। या फिर यह घोषणा भी एक 1500000 की तरह जुमला साबित होने वाली है। इसी प्रकार जनधन खातों में 3 माह तक ₹500 डाले जाने बात कही गई थी। मजदूरों भवन निर्माण श्रमिक आदि के खातों में हजार रुपया आना था।  कुछ लोगों के अकाउंट में पैसा आया तो कुछ लोगों के अकाउंट में नहीं आया। किसी के अकाउंट में पहले माह पैसा आया  और फिर उसके बाद बंद हो गया। तो इस प्रकार की अवस्थाएं क्या सरकार की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा करती हैं।

कोरोना और बेरोजगारी के चलते आर्थिक  परेशानियों का सामना कर रहे हो गरीब लोगों के राशन को आखिरकार कौन हड़प करना चाहता है। जिनके के चलते इन गरीबों के हिस्से का राशन समय से वितरित नहीं हो पा रहा है। और फिर एक सोचनीय पहलू यह भी है कि इनको राशन की जरूरत अभी है आज है, इनकी आज की जरूरत का राशन इन्हें 2 महीने बाद मिलेगा तो इसका क्या फायदा होने वाला है ? राशन की आस में रोजाना ये लोग कंट्रोल पर जाते हैं राशन के बारे में पूछते हैं तो कंट्रोल संचालकों के जो लोग उचित मूल्य की दुकानों को संभाल रहे हैं उनके द्वारा इन लोगों को एक ही रटा-रटाया जवाब जवाब दिया जाता है कि अभी फ्री वाले राशन का कोटा नहीं आया है।

जबकि उचित मूल्य की दुकानों के गोदामों  माल भरा पड़ा है। और आम गरीब आदमी को इस बारे में क्या पता कि सामने जो कंट्रोल के गोदाम माल भरा पड़ा है, वो फ्री में बटने वाला राशन है या कार्ड धारकों का राशन है। लेकिन उसे तो अभी राशन नहीं आया है यही कहकर चलता कर दिया जाता है। तो क्या यह मान लिया जाए कि केवल घोषणाएं करके शासन इन लोगों को गुमराह कर रहा है या फिर उचित मूल्य की दुकानों का संचालन करने वाले इन गरीबों को गुमराह कर उनके हिस्से का राशन स्वयं हडपकर उसकी कालाबाजारी कर रहे हैं। यह एक सोच का विषय है और शासन प्रशासन को भी जिस पर ध्यान देने की जरूरत है कि गरीबों के हित में जो इसकी में चलाई जा रही है वे सही तरीके से फलीभूत हो भी रही है कि नहीं...

इस लेख के पीछे मेरी मनसा सिर्फ इतनी ही है कि सरकार इस प्रकार के मामलों को अपने संज्ञान में ले और जो योजनाएं सरकार द्वारा चलाई जा रही है वे धरातल पर सही तरीके से फलीभूत हो सके। इसके लिए सरकार सही तरीके से मॉनिटरिंग की व्यवस्था करवाना चाहिए। जिससे कि योजनाओं में होने वाले भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके और सही समय पर सही लोगों को इन योजनाओं का लाभ मिल सके।
                                                                                                                                         रवि यादव

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