जागो फिर से…
वादों का गंगाजल झूठा,
जिन्हे पिलाया जाता है।
उंगली पे स्याही लगवा कर,
उन्हे नचाया जाता है।
कलम टूटती शब्द सिसकते,
सच्चाई कुमलाती है।
कीमत अच्छी गर मिल जाए ,
कुर्सी भी बिक जाती है।
वंशवाद का फिर दुर्योधन,
सिंहासन के लिए खड़ा।
मजबूरी में फिर गांधारी,
सत्ता का अभिमान चड़ा।
प्रशन उठाकर जो सेना पर,
देश द्रोह के घेरे में ।
कैसे तुम पाओगे सत्ता,
राजनीति के फेरे में।
सिंहासन पर चीर हरण है,
बनवारी फिर मौन खड़े।
विकते है हर रोज मसीहा,
जो जनता के लिए लड़े ।
क्यू बनकर गिरती सरकारें,
मुझको इसका पता नहीं।
मुफ्त मलाई देदो मुझको,
मेरी कोई खता नहीं।
अभी विषय चिंताओ का है,
विपदाओं ने घेरा है।
रहो थामकर धीरज अपना,
फिर से नया सबेरा है।
अब तुम जागो उन्हे जगाओ,
जिन्हे विदेशी भाता है।
राष्ट्र प्रेम है स्वयं स्वदेशी,
जो देशी अपनाता है।
अर्थ व्यवस्था की दर तुमसे,
तुम विकास को गति दे दो।
सारे कष्ट मिटें भारत से,
भारत माता जय कह दो।
बस भारत माता जय कह दो,
जय हिंद जय भारत
भूपेंद्र " भोजराज " भार्गव
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