महाभारत में चार बार मृत्यु को प्राप्त हुए थे अर्जुन !

संसार में ब्रह्मा विष्णु महेश के अतिरिक्त किसी को भी परास्त किया जा सकता है...
महाभारत में चार बार मृत्यु को प्राप्त हुए थे अर्जुन !

महाभारत महाकाव्य के अनुसार अर्जुन अजय थे उन्हें कोई भी हरा नहीं सकता था। किंतु महाभारत में ही ऐसे कई  किससे हैं जिसमें यह वर्णन किया गया है कि अर्जुन परास्त हुए हैं ना कि सिर्फ परास्त हुए हैं अर्जुन महाभारत के पूर्ण काव्य में चार बार मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। उसमें से तीन बार उन्हें पुनः जीवनदान मिला है। एक मनुष्य को केवल शस्त्र से ही नहीं बल्कि बुद्धि से भी हराया जा सकता है। महाभारत के महान काव्य के अनुसार अर्जुन को बुद्धि से एक बार और शस्त्र से दो बार मृत्यु के आगोश से बहार निकला गया है।

यह घटना वनवास के दौरान की है जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए इंद्र एवं शिवजी की घोर तपस्या करने की अनुमति दी थी। इंद्र देव को प्रसन्न करने के पश्चात अर्जुन शिवजी की घोर तपस्या में लीन थे। शिव जी ने अर्जुन की परीक्षा लेने के हेतु पृथ्वी पर एक शिकारी के रूप में अवतार लिया और अर्जुन की ओर आते हुए एक राक्षस रूपी सूअर का वध किया। किंतु उसी समय अर्जुन ने भी उसी सूअर पर अपना तीर छोड़ा था। अब उस सूअर की मृत्यु अर्जुन के बाण से हुई या महादेव के बाण से हुई इसका निश्चय कैसे हो? हम और आप यह जानते हैं कि उस सूअर का वध महादेव के तीर से हुआ था। किंतु अभिमानी अर्जुन का यह विश्वास था कि उस सूअर का वध उनके बाण से हुआ है और एक सामान्य शिकारी की क्षमता नहीं है कि वह अर्जुन से पहले किसी शिकार का शिकार कर ले। इस अभिमान की वजह से अर्जुन ने उस शिकारी को चुनौती दी। महादेव ने अर्जुन सभी प्रकार के शस्त्र और अस्त्र विद्या में परास्त किया। यही नहीं अर्जुन को उन्होंने बाहुबल की परीक्षा करने का भी मौका दिया और तभी महादेव ने उसे इतनी बुरी तरह से घायल किया कि अर्जुन वही मृत्यु हो गए। यदि काव्य को ठीक से पढ़ा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि उस वक्त अर्जुन की सचमुच मृत्यु ही हो गई थी और शायद यह महादेव की एक लीला थी क्योंकि अगर यदि मनुष्य को स्वर्ग लोक जाना है तो उसका मृत्यु को प्राप्त होना आवश्यक है, इसी कारण शायद जानबूझ के महादेव ने अर्जुन को मार दिया था ताकि वह नी:संकोच स्वर्ग प्रस्थान कर सके और सारे दिव्यास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर सकें। विद्या पूर्ण होने पर महादेव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया और इनाम स्वरूप पाशुपतास्त्र भी दिया। यह पहली बार है जब अर्जुन की महाभारत में मृत्यु हुई थी। अर्थात महादेव में इतनी शक्ति थी कि वह अर्जुन का वध कर सकते हैं, बल्कि महादेव चाहे तो महाभारत के किसी भी पात्र का वध कर सकते थे शिवाय श्री कृष्ण के।

यह घटना भी वनवास के दौरान की है जब पांडव एवं द्रौपदी वनवास के दिन काट रहे थे। अज्ञातवास शुरू होने से पहले जब यमराज ने युधिष्ठिर की परीक्षा लेने के लिए एक तालाब को विषैला घोषित कर सभी पांडवों को अपने प्रश्नों का उत्तर दिए बिना पानी पीने की अनुमति नहीं दी थी तभी केवल युधिष्ठिर ही ऐसे थे जिन्होंने यमराज के सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए और उन्हें मृत्यु प्राप्त नहीं हुई बाकी सभी पांडवों को यमराज जी ने मृत्यु के मुख्य में छोड़ दिया था। बाकी चारों पांडवों की मृत्यु इसलिए हुई थी क्योंकि उन्हें अपनी शक्तियों पर घमंड था और अपनी बुद्धि पर यकीन नहीं था उन्होंने एक यक्ष को ना समर्थ मानकर उसके जल को पीने का दुस्साहस किया था और वे सभी मृत्यु को प्राप्त हुए थे यह दूसरा अध्याय है जब अर्जुन की मृत्यु हुई थी। माना कि अर्जुन ने कोई शस्त्र का प्रयोग नहीं किया था ना ही कोई युद्ध हुआ था जिसमें उनकी मृत्यु हुई थी। किंतु जैसा कि मैंने कहा की मृत्यु केवल शस्त्र से नहीं बुद्धि से भी हो सकती है और यहां पर यमजी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग कर अर्जुन के बाहुबल को ललकारा और अर्जुन ने अपनी बुद्धि का उपयोग किए बिना जल को पी लिया और मृत्यु को प्राप्त हुए। अर्थात यमजी में अर्जुन को हराने की क्षमता थी।

यह किस्सा महाभारत के युद्ध के पश्चात हुआ था। महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान लिया था जिसके अनुसार अर्जुन उत्तर पूर्व दिशा में विजय पताका लेकर निकले थे। वहां उनका सामना एक युवराज से हुआ जिस ने अर्जुन को ललकारा था। युवराज एक बालक था इस कारण अर्जुन का घमंड उससे यह कहता था वह उस बालक को बहुत ही आसानी से हरा देगा। जब युद्ध आरंभ हुआ तो उस युवराज ने एक ऐसा अचूक निशाना लगाया कि उस तीर ने सीधा अर्जुन की गर्दन को धड़ से अलग कर दिया। अर्जुन की मृत्यु वही हो गई थी। वह युवराज चित्रांगदा का पुत्र बबरूवाहन था। चित्रांगदा अर्जुन की पत्नी थी अर्थात बबरूवाहन अर्जुन का पुत्र था। अर्जुन के अपने पुत्र ने अनजाने में अपने पिता का वध कर दिया था। उस वक्त अर्जुन की दूसरी पत्नी उल्लूपीने नागमणि के प्रयोग से अर्जुन को पुनः जीवनदान दिया था। अर्थात अर्जुन को हराने की क्षमता एक साधारण बालक में भी थी।

भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक महान तपस्वी था। उन्होंने आपकी तपस्या से ऐसी सिद्धियां प्राप्त की थी कि वह केवल दो ही बालों से अपने सभी शत्रुओं का एक साथ मत कर सकते थे। इस कारण मेरा यह मानना है की बर्बरीक और अर्जुन का सीधा युद्ध हो अर्जुन की मृत्यु निश्चित थी। यहां पर मैं 2 योद्धाओं के नाम एक साथ लूंगा क्योंकि वे दोनों समान स्वरूप से शक्तिशाली थे और उनकी सोच बिल्कुल एक समान थी। मैं पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण की बात कर रहा हूं। संपूर्ण महाभारत के दौरान अर्जुन इन दोनों योद्धाओं को कभी अकेले पूरी तरह से हरा नहीं पाया। यह तीनों योद्धा आपस में शक्ति में एक समान थे। किंतु सबसे बड़ा फर्क यह है कि आचार्य द्रोण और पितामह भीष्म अर्जुन से बेहद प्रेम करते थे अतः वह कभी भी अर्जुन की ओर ऐसे तीर नहीं छोड़ेंगे जो उसके प्राण लेंगे। अर्जुन और इन दोनों योद्धाओं का सामना देखा जाए तो केवल विराट युद्ध और महाभारत के युद्ध में ही हुआ है इन दोनों समय दोनों आचार्य और पितामह अर्जुन की ओर से बहुत ही भावुक थे। इसलिए यह मेरा मानना है कि वह अपनी पूरी क्षमता से अर्जुन से युद्ध नहीं कर रहे थे। आचार्य द्रोण और पितामह दोनों ही हस्तिनापुर से बंधे हुए थे दोनों को हस्तिनापुर की सुरक्षा का अत्यंत विचार था, वह हस्तिनापुर की रक्षा के लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर सकते थे l अब एक क्षण के लिए यह सोचिए की दयुत्त क्रीड़ा के बाद वनवास जाने की बजाय पांडवों ने हस्तिनापुर पर आक्रमण कर दिया होता जैसा कि पांचाल राज्य और द्रौपदी के पिता चाहते थे तो पितामह भीष्म और द्रोण अपनी पूरी ताकत से हस्तिनापुर की रक्षा करते और उस वक्त कदाचित अर्जुन उन्हें परास्त करने में असफल होता। 

यह मेरी अपनी मान्यता है कि उस वक्त अगर अर्जुन ने हस्तिनापुर पर आक्रमण किया होता तो पितामह भीष्म अकेले या द्रोणाचार्य अकेले ही अर्जुन का वध कर सकते थे, अगर वध नहीं कर सकते थे तो निश्चय ही उसे हरा सकते थे। अर्जुन ने शिखंडी का सहारा लिया तब वह पिता मां को हरा पाया। उसी प्रकार युद्ध के अगले 2 दिन तक वह आचार्य द्रोण को कभी पूरी तरह से हारा नहीं पाया। 14 दिन के युद्ध के दौरान अर्जुन ने कई महान सिद्धियां प्राप्त की। उसने अकेले ही 7 अक्षौहिणी सेनाओं का वध कर दिया था। किंतु युद्ध के आरंभ में ही उनका सामना आचार्य द्रोण से हुआ था। उस वक्त काफी देर तक दोनों में द्वंद्व युद्ध हुआ जिसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था यह देखकर श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वह आचार्य द्रोण से आगे जाने की आज्ञा मांगे और यह युद्ध बंद करें। अर्जुन ने बिल्कुल ऐसा ही किया और एक शिष्य होने के नाते अपने गुरु से आगे जाने की आज्ञा मांगी तब आचार्य द्रोण उसे मना ना कर सके और उसे आगे बढ़ने की आज्ञा दे दी। यदि आचार्य द्रोण सचमुच चाहते तो उस दिन जयद्रथ जिंदा बच जाता और अपनी प्रतिज्ञा वर्ष अर्जुन को आत्मदाह लेना पड़ता। ऐसा नहीं चाहते थे इसीलिए उन्होंने अर्जुन को आगे जाने दिया। 

तो देखा जाए तो आचार्य द्रोण और पितामह दोनों में ही अर्जुन को हराने का सामर्थ्य था। अर्जुन को कदाचित अश्वत्थामा भी हरा सकता था। अर्जुन नर का स्वरूप थे कृष्ण नारायण का स्वरूप थे और अश्वत्थामा रुद्राक्ष का स्वरूप थे अतः वे स्वयं शिव जी का स्वरूप थे। महाभारत के युद्ध के दौरान जब अश्वत्थामा को यह पता चला कि उनके पिता की मृत्यु हो चुकी है तो वह आग बबूला हो गए। अपने क्रोध में उन्होंने पांडव सेना की ओर नारायण अस्त्र छोड़ दिया। अब उस वक्त श्री कृष्ण ने पूरी पांडव सेना को कहा कि नारायणास्त्र से बचने का केवल एक ही उपाय है कि वह अपना शास्त्र छोड़ दें और नारायण अस्त्र के शरण में चले जाएं। यह राज अर्जुन नहीं जानता था। यदि यह सोचा जाए कि बिना श्री कृष्ण के सिर्फ अश्वत्थामा और अर्जुन का युद्ध हो तो एक समय ऐसा आएगा जब अश्वत्थामा नारायण अस्त्र का प्रयोग करेगा और अर्जुन की हार हो सकती है। इसलिए मैं समझता हूं कि अश्वत्थामा में भी अर्जुन को हराने का सामर्थ्य था। मैं उत्तर में कर्ण को भी शामिल नहीं कर रहा। मेरे हिसाब से कर्ण में क्षमता नहीं थी अर्जुन को हराने की। खासकर वनवास के पश्चात। 

शायद रंगभूमि के दौरान जब दोनों का पहली बार सामना हुआ था तब कदाचित कर्ण अर्जुन को हरा सकता था वह भी अपने कवच और कुंडल के भरोसे। पर एक बार जब अर्जुन ने सारे दिव्यास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर लिया उसके पश्चात कर्ण कभी भी अर्जुन को हरा नहीं सकता था कवच कुंडल के साथ भी। यह बात विराट युद्ध में सिद्ध हो चुकी थी। यह उत्तर देकर मैं यह साबित नहीं करना चाहता कि अर्जुन एक नाकामयाब योद्धा था। अर्जुन एक महान योद्धा था और उसके जैसे और कोई योद्धा सचमुच नहीं था। अगर पांडवों की विजय हुई है तो वह केवल अर्जुन की ही वजह से हुई है। भीम का निसंदेह है उस युद्ध में बहुत बड़ा योगदान था किंतु बिना भीम के भी अर्जुन अकेले उस युद्ध को जीत सकता था। मैं इस वाक्य को पुनः कहूंगा, अर्जुन और कृष्ण की जोड़ी अकेले ही इस युद्ध को जीत सकती थी। नर और नारायण की जोड़ी को हराना असंभव है। नर नारायण की शक्ति का सचमुच पूरा पूरा अनुमान लगाना है तो खंडव वन के युद्ध के बारे में पढ़ें। मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि ब्रह्मा विष्णु और महेश के अतिरिक्त हर कोई हराया जा सकता है और उन्हें हराने के लिए स्वयं भगवान को धरती पर आने की जरूरत भी नहीं है।

Note : यह लेख मेरी अपनी सोच है और इस लेख से किसी को ठेस पहुंची हो तो मैं क्षमा चाहता हूं

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