कोरोना वायरस चीन का जैविक हथियार,जानबूझ फैलाया !

अगर ये साबित होता है कि…

कोरोना वायरस चीन का जैविक हथियार,जानबूझ फैलाया ! 


अगर ये साबित होता है कि कोरोना वायरस चीन का जैविक हथियार था और जानबूझ फैलाया गया था तो क्या होगा ? जैसे की अब तक की कहानी सुनी इसके बारे ओर इसकी शुरुआत की इसको लेब मै बनाया गया ओर जान बुझ कर कुछ लोगो को संक्रमित करने के बाद नॉर्मल हॉस्पिटल मै एडमिट कराया ताकी ,ये लोगो तक फैले! बेशक इसमें चीन के लोग भी मारे जाए । ओर वहा से ये पूरी दुनिया मै फैल जाए ताकी ज्यादा से ज्यादा लोग मर जाए,ओर चीन पूरी दुनिया पर कब्जा कर सके। मान लीजिए ये बात सच है सबको पता चल गई तब भी हम कुछ नहीं कर सकते तब तक जब इसकी पूर्ण रूप से दवा तैयार नहीं हो जाती। चलिए मान लेते है !

तो अब भी यही होगा, जैसे ही कोरोना का टीका बनेगा हर एक जन को उपलब्ध कराया जाएगा । अब जैसा की नॉवेल की फोटो तक दिखाई जा रही है सोशल मीडिया पर हो सकता है ;इसको बनाया गया हो मगर केमिकल कंपाउंड से नहीं ऐसा WHO का कहना है। कोरोना तीन चीज़ों से मिलकर बना होता है। प्रोटीन,लिपिड,ओर rna ओर इसके अंदर मिलने वाला प्रोटीन नेचुरल है ,तो संभावना बताई गई की ये चमगादड़ से बना हो सकता हैं।
अब आपने पूछा की क्या होगा अगर ये सबको पता चल जाता है। की चाइना ने ये वैपन बनाया है " क्योंकि ये एक बायोलॉजिकल वैपन है तब इसको ना इस्तेमाल करने वाले कानूनों का उल्लंघन माना जाएगा"

(बायोलॉजिकल वैपन एक अत्यंत ही विनाशक हथियार है, तो ऐसे में इससे जुड़े अत्यंत कड़े कानूनों की स्थापना की गयी है और विभिन्न देशों ने यह माना है कि इस हथियार का प्रयोग वे नहीं करेंगे। इसे उपयोग ना करने के विषय में यह तर्क दिया गया है ,कि जैविक हथियार को किसी भी प्रकार से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार के युद्ध में किसी भी देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए नुकसान है ;क्योंकि पूरे विश्व भर में यह फ़ैल सकता है।)

बीडब्ल्यूसी में अगस्त 2019 तक 183 स्टेट पार्टियां हैं, जिसमें तंजानिया सबसे हाल ही में एक पार्टी बन गया है। रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को संयुक्त राष्ट्र की सीट के बदलाव से पहले अनुसमर्थन का एक उपकरण जमा किया था। चीन भी सामिल है, इस संधि मै तो खुद ही विरोध करता हुआ पाया जाएगा। भविष्य मै कोई भी देश चीन के साथ हो सकता है आयात,निर्यात,ओर सभी तरह के रिश्ते ख़त्म कर दे।चीन जो सबसे अमीर ओर शक्तिशाली बनने के लिए दिन रात मेहनत, में लगा है सब बेकार हो जाएगी ।

पहला बायोलॉजिकल हमला जो की 1500–1200 ईशा पूर्व हित्तियो द्वारा किया गया इन लोगो ने अपने दुश्मन को मारने के लिए tularemeia नाम के बायोलॉजिकल वैपन का इस्तेमाल किया जो की पानी के मिलाकर छोड़ दिया गया था ।जो भी इस पानी को पीता या नहाता वो संक्रमित हो जाता ये बीमारी या जीवाणुओं का संक्रमण जानवरो से भी इंसानों मै फैलता था ।इंसानों से इंसानों में नहीं । बात ज्यादा पुरानी है थोड़ा आगे चलते है।

जर्मनी की सेना ने प्रथम विश्वयुद्ध में एन्थ्रेक्स (Anthrax) नामक जैव का प्रयोग युद्ध में किया था। द्वितीय युद्ध में दोनों और के पक्षों ने बायो-हथियारों (Bioweapons) का प्रयोग किया था। 1939 में जापान ने आँतों में टाईफाईड (Typhoid) उपजने वाले वाइरस को सोवियत के जल आपूर्ति करने वाले पाइपों में मिला दिया था। यह पहला ऐसा युद्ध था जब दोनों पक्षों द्वारा जैव शक्तियों का प्रयोग किया गया था। जिसके लिए अमेरिका ओर रूस ने इस का परीक्षण किया ओर इसके लिए टीका तैयार करने के बाद जनता को उपलब्ध कराया गया ।

जैविक युद्ध एक आम युद्ध से बिल्कुल अलग होता है जो जैविक हथियारों की सहायता से लड़ा जाता है । इसमें पूरी मानव जाति को समूल नष्ट किया जा सकता है जानते है पहले की जैविक हथियार क्या है।
जैविक हथियार बहुत कम समय में बहुत बड़े क्षेत्र में तबाही मचाने में सक्षम है। बताया जाता है कि सबसे पहले जैविक हथियारों का इस्तेमाल रोम ने किया था। जैविक हथियार का मतलब ऐसे कारकों को उत्पन्न करना, जो लोगों में रोग पैदा कर दे और रोग से ग्रस्त होकर उनकी मौत हो जाए। इसका कहर कुछ ऐसा है कि अपंग विकलांग मनोरोगी हो जाता है। फसलें तक नष्ट या फिर प्रदूषित हो जाती हैं।

जीवित - जीवित जैविक हथियारों में एंथ्रेक्स, प्लेग, चेचक आदि के जीवाणु हो सकते हैं।
अजीवित - अजीवित जैविक हथियार में बाटुनिल एंटरोक्सिन जैसे जीवाणु हो सकते हैं।
जैविक हथियार हल्की हवा में करीब एक लाख लोगों को प्रभावित कर सकता है हथियार कितने असरकारक होंगे, ये इस बात पर निर्भर करता है कि उस समय हवा, नमी और तापमान किस तरह का है।
एंथ्रेक्स यह - एक ऐसा रोग है, जो बेसिलस एंथ्रेसिस जीवाणु के हवा में उड़ने से पैदा होता है। इसे लैब में विकसित भी किया जा सकता है। ये श्वसन की शुष्क कणिकाओं से, शरीर की त्वचा के संपर्क से, संक्रमित पशुओं का अधपका मांस खाने से लोगों पर असर डालता है। एंथ्रेक्स का चुनाव इसलिए ज्यादा करने की संभावना रहती है, क्योंकि इसके जीवाण तेज धूप में कीटनाशक दवाओं और तेज गर्मी को भी सहन कर लेते हैं।

एबोला विषाणु का होता है तेजी से असर इसी तरह से एबोला विषाणु है, जो लोगों को बहुत तेजी से प्रभावित करता है। इसकी खास बात ये होती है कि इसमें मानव शरीर के अलग-अलग अंगों से रक्त स्राव होता है। इतना ही नहीं, इससे हाई-ब्लड प्रेशर और लो-ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां भी फैल जाती हैं।

मायकोटॉक्सीन टी टू भी एक घातक जीवाणु है, जो पानी और खाद्य पदार्थों में मिलकर तबाही मचा सकता है। कहा जाता है कि अगर क्लास्ट्रीडियम परफिंजेन बैक्टीरिया की बरसात दुश्मनों पर कर दी जाए तो ये दुश्मन के घावो में सात से आठ घंटे के अंदर गैस गैग्रीन (शरीर के अंगो का गलना) बीमारी को फैला देता है।

जैविक हथियार कुछ इस तरह से भी काम करते है की कृषि,ओर पशुपालन को प्रभावित करता है जिसमें फसलें ओर पशु बीमारी से नष्ट ही जाते हैं ओर जनता भूख से ही मर जाती है l जैव हथियारों के बारे में न तो कोई भविष्यवाणी की जा सकती है और न ही इनकी आयु के बारे में कुछ कहा जा सकता है।

इसका इतिहास करीब १५०० वर्ष ईसा पूर्व का है मतलब इसका इस्तेमाल सबसे पहले एशिया में हित्तियों द्वारा अपने दुश्मनों पर किया गया । हाल के दिनों की  बात करें तो विश्वयुद्ध में जैव हथियारों का प्रयोग हुआ था। जर्मनी की सेना ने प्रथम विश्वयुद्ध में एन्थ्रेक्स (Anthrax) नामक जैव का प्रयोग युद्ध में किया था। द्वितीय युद्ध में दोनों और के पक्षों ने बायो-हथियारों (Bioweapons) का प्रयोग किया था।

1939 में जापान ने आँतों में टाईफाईड (Typhoid) उपजने वाले वाइरस को सोवियत के जल आपूर्ति करने वाले पाइपों में मिला दिया था। यह पहला ऐसा युद्ध था जब दोनों पक्षों द्वारा जैव शक्तियों का प्रयोग किया गया था। अमेरिका ओर रूस जैसे देश ने इस पर काम किया ओर इसमें सुधार किया ओर इससे बचाव के तरीके मै टिके बनाए गए ।मगर इस तरह के हमलों मै इतने लोगो को ये टीका ओर उपचार कराना एक समस्या की तरह हो जाता है l

क्योंकि जैविक युद्ध से संसार को बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है या होता है इसलिए इसको लेकर काफी कड़े कानून बनाए गए है l विभिन्न देशों ने यह माना है कि इस हथियार का प्रयोग वे नहीं करेंगे। इस उपयोग ना करने के विषय में यह तर्क दिया गया है कि जैविक हथियार को किसी भी प्रकार से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार के युद्ध में किसी भी देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए नुकसान है क्योंकि पूरे विश्व भर में यह फ़ैल सकता है।
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