G News 24 : सुप्रीम कोर्ट ने दिया झगड़ा सुलझाने का स्वदेशी फॉर्मूला !

 बोलो कम, सुनो ज्यादा... 

सुप्रीम कोर्ट ने दिया झगड़ा सुलझाने का स्वदेशी फॉर्मूला !

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को संबोधित करते हुए झगड़ा सुलझाने का एक स्वदेशी फॉर्मूला दिया है. इसमें कुछ कौशल की जरूरत होती है साथ ही इसके लिए मध्यस्थ को बोलने से ज्यादा सुनने पर ध्यान देना होता है. कोर्ट में 40 साल पुराना एक सिविल विवाद सुलझने पर सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय की तरफ से नियुक्त किए गए मध्यस्थ की तारीफ की है. 

कोर्ट ने आगे कहा कि वकीलों के लिए मध्यस्थ की भूमिका में आना अनिवार्य है और इसके लिए खिलाफ में मुकदमेबाजी वाले अप्रोच की जगह रचनात्मक रूप से समस्या के समाधान वाला नजरिया अपनाने की जरूरत है. कोर्ट ने ऐसे लंबित विवाद के निपटारे का 'मंत्र' देते हुए कहा कि इसके लिए वकीलों को अलग स्किल्स हासिल करने की जरूरत है जिसमें बोलने की जगह सुनना आना चाहिए. 

कोर्ट ने कहा, 'अगर वकील खुद को मध्यस्थ के रूप में भी पेश करना चाहते हैं तो उन्हें हमारे विचार से जिसकी अनिवार्य रूप से जरूरत होगी वो है, विशिष्ट कौशल विकसित करना और विवाद समाधान को लेकर एक नया दृष्टिकोण अपनाना, जो मुकदमेबाजी वाले अप्रोच से अलग हो. ऐसे कौशल और मानसिकता को हासिल करने की शुरुआत तर्क-वितर्क के लिए विकसित कुछ पारंपरिक तकनीक और प्रथाओं के जरिए होती है.

दो जजों की पीठ ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस पीएस नरसिम्हा और अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने कहा, 'मध्यस्थ सुनकर बोलते हैं. मध्यस्थता का वह मॉडल जिसे हम अपने देश के लिए सोचते हैं वह स्वदेशी मध्यस्थता है जो पश्चिमी अप्रोच से अलग है जिसमें व्यावसायिकता को व्यक्तिगत चरित्र से अलग कर दिया जाता है.' कोर्ट ने कहा कि अच्छाई एक आवश्यक वैल्यू है, यह न तो व्यावसायिकता से अलग है और न ही इच्छाशक्ति से हासिल न की जा सकने वाली चीज है. 

40 साल तक चला मामला क्या था?

दो जजों की पीठ ने उस मामले की सुनवाई की जिसमें अपीलकर्ता और प्रतिवादी के बीच करीब 40 साल से मुकदमा चल रहा था. यह हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि और उससे संबंधित अचल संपत्तियों पर अधिकारों को लेकर था. यह विवाद 2011 में एक दीवानी अपील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. काफी समय से लंबित होने के बावजूद 2024 में इसे मध्यस्थता के लिए भेजा गया. वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल को मध्यस्थ नियुक्त किया गया.

मध्यस्थ ने आगे जो किया वह सामान्य अदालती प्रक्रिया से उलट था. वह खुद हमीरपुर (हिमाचल प्रदेश) गए. उन्होंने दोनों परिवारों से बातचीत की, संपत्तियों का जायजा लिया और दोनों पक्षों में भरोसा पैदा करने में मदद की. आखिर में दोनों पक्षों ने आपस में सहमति बनाई और मध्यस्थ के सुझावों पर सहमति व्यक्त की. इसके बाद कोर्ट से समझौते के अनुसार दीवानी अपील का निपटारा करने का आग्रह किया गया. इसी मामले की तारीफ हो रही है. 

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