बेबस जनता... कैसे मिले न्याय...
कमज़ोर नकारा विपक्ष और ब्यूरोक्रेट्स पर हावी सत्ता पक्ष !
देश की लोकतांत्रिक बुनियाद तीन स्तंभों -विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के संतुलन पर टिकी है। लेकिन आज हालत यह है कि विपक्ष कमजोर और बिखरा हुआ है, ब्यूरोक्रेसी सत्ता पक्ष के दबाव में काम करती दिख रही है, और जनता अपने ही अधिकारों के लिए बेबस हो गई है।
विपक्ष का क्षय...
जहाँ विपक्ष का काम जनता की आवाज़ उठाना और सरकार की नीतियों पर सवाल करना होता है, वहीं आज विपक्ष केवल टीवी डिबेट और प्रेस कॉन्फ्रेंस तक सीमित हो गया है। न सड़क पर आंदोलन, न संसद में धार। नीतिगत मुद्दों पर तो छोड़िए, विपक्ष व्यक्तिगत हमलों और आरोप-प्रत्यारोप तक ही सिमटकर रह गया है। परिणामस्वरूप सत्ता पक्ष के निर्णयों पर कोई ठोस लोकतांत्रिक रोक-टोक नहीं रह गई।
ब्यूरोक्रेसी पर सत्ता का शिकंजा...
कभी "स्टील फ्रेम" कहे जाने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा और अन्य अफ़सरशाही आज राजनीतिक इच्छाओं का मोहरा बनकर रह गए हैं। ट्रांसफ़र-पोस्टिंग की राजनीति, दबाव में लिए गए फैसले और जनता की समस्या सुनने की बजाय सत्ता को खुश करने की प्रवृत्ति लोकतंत्र की आत्मा को खोखला कर रही है। अफसर, जनता के सेवक न होकर सत्ता के प्रतिनिधि बनते जा रहे हैं।
बेबस जनता की पुकार...
जनता आज महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रही है। शिकायत दर्ज कराने से लेकर न्याय पाने तक की राह इतनी कठिन है कि आम आदमी अक्सर हार मान लेता है। अदालतों में सालों की देरी, लोकायुक्त और विजिलेंस जैसे संस्थानों की निष्क्रियता और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्ता-भक्ति में डूब जाना इन सबने जनता को पूरी तरह असहाय बना दिया है।
लोकतंत्र का संकट...
जब विपक्ष नकारा हो जाए, ब्यूरोक्रेसी सत्ता के आगे झुक जाए और जनता का स्वर दब जाए, तो लोकतंत्र केवल एक दिखावा बनकर रह जाता है। संविधान ने जनता को ‘हम-भारत के लोग’ के रूप में सर्वोच्च शक्ति दी थी, पर आज सवाल यह है कि क्या जनता सचमुच सर्वोच्च है या केवल वोट देने तक ही सीमित कर दी गई है ? विपक्ष का रोल अब "केवल झूठ फैलाकर ट्वीट युद्ध"या ज्यादा हुआ तो सड़क पर हो-हल्ला कर सरकार का पुतला फूकने तक तक सीमित होना !
- अफसरों के लिए "सिस्टम" से बड़ा "सत्ता" हो गया
- जनता की हालत – "शिकायत करो, भुगतो और भूल जाओ"
न्याय की राह !
सवाल केवल यह नहीं है कि जनता कब न्याय पाएगी, बल्कि यह भी है कि न्याय दिलाएगा कौन? जब एक आईएएस को एक सत्ताधारी दल का विधायक सरेआम धमकी दे.एक पार्षद पति एक निगम कर्मी के साथ अभद्र व्यवहार करे ऐसे में आम जनता अपनी शिकायत और परेशानी किसे सुनाए ! किस से न्याय मांगे ! जब संस्थान निष्क्रिय हों, विपक्ष दिशाहीन हो और सत्ता बेलगाम, तब जनता को खुद ही अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी। लोकतंत्र तभी बचेगा, जब जनता चुप रहना छोड़कर सवाल पूछना शुरू करेगी।
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