G NEWS 24 : अनेक गौशालाओं के होते हुए भी सड़क ही क्यों बनी गौमाता का आश्रय स्थल !

सिर्फ गिनी-चुनी गायों को ही आश्रय मिल पाता है...

अनेक गौशालाओं के होते हुए भी सड़क ही क्यों बनी गौमाता का आश्रय स्थल !

भारत में गाय को माँ का दर्जा दिया गया है - पूजनीय, आदरणीय और राष्ट्र की सांस्कृतिक आत्मा की प्रतीक। लेकिन विडंबना यह है कि वही गौमाता आज सड़कों पर भूखी, प्यासी और असहाय अवस्था में घूमती नजर आती है। देश भर में सैकड़ों नहीं, हजारों गौशालाएं हैं - फिर भी अगर गाय सड़कों पर दम तोड़ रही है, तो सवाल उठना लाज़मी है: क्या हमारी गौशालाएं सिर्फ नाम की रह गई हैं?

गौशालाएं: नाम की सेवा या दिखावे की व्यवस्था?

सरकारी फाइलों और NGO की रिपोर्टों में गौशालाएं पूरी तरह सक्रिय हैं, दान भी लगातार मिल रहा है, योजनाएं भी बनी हैं, लेकिन धरातल पर गाय की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। कई गौशालाएं सिर्फ कागजों पर चल रही हैं, कुछ में सुविधाएं इतनी सीमित हैं कि सिर्फ गिनी-चुनी गायों को ही आश्रय मिल पाता है। बीमार, बूढ़ी या दूध देना बंद कर चुकी गायों को अक्सर सड़कों पर छोड़ दिया जाता है - उनका कोई रखवाला नहीं।

सड़कें बनीं गौशालाएं, और इंसान बना तमाशबीन

यह दृश्य आज किसी भी शहर, कस्बे या गांव में आम है - बीच सड़क पर बैठी गाय, कूड़े के ढेर में से कुछ खाने की कोशिश करती हुई। कभी वाहन की टक्कर से घायल, कभी पॉलिथीन खाने से बीमार। जिनके लिए सड़क पर बैठना मजबूरी है, उनके लिए सरकार, समाज और धार्मिक संगठनों की नीयत पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।

सिर्फ श्रद्धा नहीं, ज़िम्मेदारी चाहिए

गौभक्ति सिर्फ मंदिरों में माला चढ़ाने तक सीमित नहीं हो सकती। यह एक सामाजिक, प्रशासनिक और मानवीय ज़िम्मेदारी है। अगर हम गाय को माँ मानते हैं तो उसे सड़कों पर मरने के लिए छोड़ देना एक तरह से हमारी श्रद्धा का अपमान है। गौशालाओं की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ उनकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता, निगरानी व्यवस्था, और स्थायी आर्थिक सहायता की जरूरत है।

समाधान क्या है ?

  • सभी गौशालाओं का डिजिटल ऑडिट हो — कितनी गायें हैं, क्या सुविधाएं हैं, कितना अनुदान मिल रहा है और उसका उपयोग कैसे हो रहा है।
  • नगर निकायों और पंचायतों को जिम्मेदार बनाया जाए कि उनके क्षेत्र में कोई भी गाय भूखी या बीमार न रहे।
  • पॉलिथीन और प्लास्टिक पर सख्त प्रतिबंध लागू किया जाए ताकि गायों की अनजाने में हुई मृत्यु को रोका जा सके।
  • स्थानीय समुदाय को जोड़कर "सड़क मुक्त गाय अभियान" चलाया जाए।

गौशालाएं तब तक बेकार हैं जब तक वहां हर बेसहारा गाय को सच्चा आश्रय न मिले। अगर हमारी श्रद्धा सिर्फ भाषणों और पोस्टरों तक सीमित रह गई है, और सड़क पर तड़पती गायों को देखकर भी मन नहीं पिघलता, तो यह केवल गाय की नहीं, मानवता की भी मौत है।

अब वक्त है कि देश सिर्फ गौशालाएं गिनने में न लगे, बल्कि गायों की असल स्थिति पर ध्यान दे — क्योंकि अगर गाय सड़क पर मर रही है, तो यह पूरे समाज की संवेदनहीनता की शर्मनाक तस्वीर है। देश भर में सैकड़ो गौशालाएं हैं लेकिन फिर भी सड़क बनी है इनका आश्रय स्थल !

गाय अगर सड़क पर भूखी प्यासी मर रही है तो देश को  फिर गौशालाओं की जरूरत क्या और क्यों है ! 

इन प्रश्नों के जवाब में सरकार को कठोरता निर्णय लेते हुए जिस भी गौशाला क्षेत्र में गए सड़क पर दिखे उस क्षैत्र  की गौशाला को तुरंत बंद करवा देना चाहिए और सरकार द्वारा दिया जाने वाला अनुदान भी समाप्त कर देना चाहिए। क्योंकि यह गौशालाएं धन्ना सेठों के लिए पैसे बनाने का साधन नहीं है या तो गायों के लिए आश्रय स्थल है और अगर गौशाला में गाय को आश्रय नहीं मिल रहा तो ऐसी गौशालाओं की देश को क्या जरूरत है !

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