कांग्रेस इस समय सही मायने में विपक्ष की भूमिका है या विरोध इसकी आदत में शुमार है ...
नेतृत्व विहीन कांग्रेस और खोई हुई दिशा, क्या भारत-अमेरिका युद्ध की चाह रखती है कांग्रेस !
भारतीय राजनीति के मौजूदा परिदृश्य को देखें तो यह स्पष्ट रूप से दिखता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस, आज गंभीर नेतृत्व संकट और दिशाहीनता से जूझ रही है। न तो उसके पास कोई स्पष्ट विचारधारा बची है, और न ही कोई ऐसा नेतृत्व जो पार्टी को देश की वर्तमान जरूरतों के अनुरूप एकजुट कर सके। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि अब कांग्रेस और उसके सहयोगी, अपने बयानों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने और भारत को किसी अप्रिय स्थिति, यहां तक कि भारत-अमेरिका जैसे संवेदनशील रिश्तों में तनाव की दिशा में ढकेलने की कोशिश कर रहे हैं।
कांग्रेस- विपक्ष की भूमिका या विरोध की आदत ?
लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष का होना जरूरी है, जो सरकार की नीतियों की समीक्षा करे, जरूरी सवाल उठाए और जनहित के मुद्दों पर सत्ता को जवाबदेह बनाए। लेकिन जब विपक्ष राष्ट्रहित की कीमत पर केवल विरोध के लिए विरोध करता है, तब वह न केवल अपनी भूमिका से भटकता है, बल्कि देश को भी संकट में डाल सकता है।
हाल के दिनों में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के कुछ नेताओं द्वारा अमेरिका या अन्य विदेशी शक्तियों के समक्ष भारत सरकार के खिलाफ बयानबाजी करना, भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर करने का प्रयास प्रतीत होता है। यह एक खतरनाक प्रचलन है। लोकतंत्र में विरोध की स्वतंत्रता है, लेकिन विदेशी मंचों पर जाकर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करना क्या राष्ट्रहित है या राजनीतिक हताशा का प्रतीक?
अमेरिका से युद्ध की मानसिकता ?
विपक्षी नेताओं द्वारा दिए गए कुछ बयान, जिनमें अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश से भारत के टकराव की कल्पना की जा रही है, वह न केवल अपरिपक्व सोच को दर्शाता है बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से भी खिलवाड़ है। क्या यह वही कांग्रेस है जिसने कभी पंचशील सिद्धांत दिए, शांति की बात की और भारत की विदेश नीति को संतुलन पर टिकाए रखा?
आज उसी पार्टी के कुछ नेता ऐसी भाषा बोल रहे हैं जो देश को अनावश्यक रूप से युद्ध जैसे हालात की ओर ले जा सकती है। यह न केवल कूटनीतिक मूर्खता है, बल्कि यह पार्टी की आंतरिक कुंठा और दिशाहीनता को भी उजागर करता है।
देशहित पहले या सियासी स्वार्थ ?
कांग्रेस और उसके सहयोगियों को यह समझना होगा कि सत्ता की भूख में राष्ट्रहित की बलि देना, आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरा बन सकता है। भारत जैसे उभरते राष्ट्र को आज ऐसे विपक्ष की जरूरत है जो आलोचना करे, लेकिन राष्ट्रहित से ऊपर न उठे।
कांग्रेस को अपने भीतर झांकने की जरूरत है। नेतृत्व की स्पष्टता, विचारधारा की मजबूती और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं की समझ के बिना वह न तो देश का भला कर सकती है और न ही स्वयं का। देश के आम नागरिक को भी यह समझना होगा कि जो पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों पर भी राजनीति करे, वह सत्ता के लायक नहीं बल्कि आत्ममंथन की पात्र है। कांग्रेस को यह तय करना होगा, वह एक राष्ट्रीय पार्टी बने रहना चाहती है या एक वैश्विक मंचों पर भारत विरोधी स्वर की गूंज ?
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