मातृ दिवस की बहुत बहुत शुभ कामनाएं...
मां ( जीजी )
मां जो स्वयं मिटती है, लेकिन मां संतान को कभी टूटने नहीं देती
इस आधुनिक समय में जब संवेदनाएं अक्सर स्क्रीन की रोशनी में धुंधला जाती हैं और रिश्तों की गर्माहट डिजिटल संदेशों में सिमटती जा रही है, तब भी एक रिश्ता है जो हर तकनीक, हर युग, हर भाषा से ऊपर है , वो रिश्ता मां...
मां कोई पद नहीं, एक संपूर्ण अनुभव है , जिसे न किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है, न किसी मान्यता की, वह अपनी ममता से हर दर्द को हर लेती है, अपनी चुप्पी से सब कह देती है और अपने आंसुओं से वह शब्द लिख जाती है, जिन्हें इतिहास भी दर्ज नहीं कर पाता।
बचपन में गिरी ठोकर पर उसका लिपटकर चुप कराना जितना सच्चा था, उतना ही सच्चा है उसका आज भी बिना कहे हमारी चिंता करना। जब हम बड़े हो जाते हैं, तो अक्सर सोचते हैं कि अब हम बहुत कुछ समझने लगे हैं। पर सच यह है कि मां के "बोल न सकने वाले मौन" को समझ पाना अब भी हमारे बस से बाहर की बात है।
मां वह धुरी है, जो एक बिखरते परिवार को जोड़े रखती है। वह चुपचाप सहती है, पर अपने बच्चों को कभी महसूस नहीं होने देती कि वह थक चुकी है। कई बार वह खुद अपने अस्तित्व को खो देती है, सिर्फ इसलिए कि हम अपनी पहचान पा सकें...
कई बार सोचा....मां से पूछूँ.....मां तुम कुछ कहती क्यूं नहीं?
बिना शब्दों के बोलती सी.....
शुद्ध हवन के धुंए सी.......
फैल जाती हो पूरे घर में!
सब के मन के अंतरद्वंद को टटोलती......
एक मज़बूत दरवाज़े की....
कभी बन्द होती....
कभी खुलती चट्कनी की तरह!
हर छोटी से लेकर बड़ी चीज़ पर...
अपनी छाप छोड़ती हुई!
मेरी बेबाक नादानियों पर....
ना चाहते हुए भी....
मजबूत दीवार सी संग दिखती रहती !
रिश्तों का हिसाब किताब लगाती....
जिन्दगी के बही खाते संभालती!
कई बार..... कंजूस कह के चिढ़ाया मैने
आज समझ आया.....
क्यूं बन्द तिजोरी सी घूमती थी तुम!
तुम्हारे अथाह प्रेम को समझ नहीं पाया था....
बस हर दम मेरी सांसों में समाई!
नहीं मां और प्रेम की कोई परिभाषा....
कुछ शब्दों में समेट दूं तुम को..…
मां, कहां यह होगा मुझसे!
मां तुझ में समाहित.... प्रेम ही प्रेम !!
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