G News 24 : जनसेवा की कसमें खाते हैं पैरों गिरते हैं और जीतने के बाद इसी जन के पैसे पर एस करते हैं !

 राजनीति में कितना पैसा और पावर है यह सभी समझते हैं इसे हासिल करने लोग नेता बन जाते हैं ...

जनसेवा की कसमें खाते हैं पैरों गिरते हैं और जीतने के बाद इसी जन के पैसे पर एस करते हैं !

राजनीति में कितना पैसा और पावर है यह सभी समझते हैं। यही कारण है कि इसके लिए राजनेता चुनावों के दौरान वो सब करते हैं या पूरा करने का आश्वासन देते हैं जो वोटर इनसे कहता है। वोट पाने के लिए तो ये नेता वोटर के चरणों में भी नतमस्तक होने से परहेज नहीं करते हैं, लेकिन जीतने के बाद वही नेता जिस वोटर के पैर छूता है उससे पैर छूआने का काम भी करता है। 

मेरा फिर वही सवाल है और यह सवाल किसी राजनेता या राजनीतिक पार्टी से नहीं बल्कि आम वोटर से है वह जिस नेता को वोट देता है और अपने मत का दान करके उसे अपने प्रतिनिधि के रूप में सदन में भेजता है। लेकिन चुनकर भेजे गए ये नेताजी अपने वादे भूल कर कमाई करने में जुट जाते हैं। ऐसे में जब ये नेता अपनी ड्यूटी ईमानदारी से नहीं करते हैं तब जनता को भी यह अधिकार होना चाहिए कि ऐसे जनप्रतिनिधियों को जिन्हें चुनकर उसने सदन में भेजा था, उन्हें  वापस रिकॉल करने का अधिकार भी उसे मिलना चाहिए। 

क्योंकि ये नेता जब जनसेवा और समाज सेवा के नाम पर चुनकर सदन में पहुंच जाते हैं तो समाज सेवा के नाम पर जिन संसाधनों  का उपयोग करते हैं। सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, इन संसाधनों में आवास,वाहन, रेल, हवाई यात्रा, वाहनों की सुविधा, सेवा-सफाई कर्मचारी, सुरक्षा कर्मी सभी सुविधा फ्री हैं। इन सेवाओं का लाभ उठाते हैं। 

यानि कि सेवा के बदले सेवा ! तो फिर सैलरी क्यों लेते हैं? क्योंकि सेवा के बदले सैलरी नहीं मिलती है। और नेता यदि सैलरी ले रहा है तो फिर वह सेवा नहीं कर रहा, बल्कि राजनीतिक नौकरी कर रहा है क्योंकि सैलरी तो नौकरी करने पर ही मिलती है। और नौकरी करने वाला एक कर्मचारी होता है जो एक निश्चित आयु तक नौकरी कर सकता है नौकरी के पश्चात उसे केवल पेंशन मिलती है।

अन्य सुविधाएं वह अपने पैसे से जुटाता है इसी प्रकार इन नेताओं की भी रिटायरमेंट की एक समय सीमा होना चाहिए, और जब ये सक्रिय राजनीति और सदन से बाहर हो जाते हैं तब इन्हें केवल सिंगल पेंशन ही मिलनी चाहिए। इसके अलावा अगर ये सुरक्षा आवास जैसी अन्य सुविधाओं का लाभ लेते हैं तो इन सुविधाओं पर होने वाले खर्च की भरपाई भी इनसे ही की जानी चाहिए। वैसे भी अधिकतर नेता जब तक सदन के सदस्य रहते हैं उस दौरान लाखों-करोड़ों के बारे न्यारे कर लेते हैं। इसलिए इनके रिटायरमेंट के बाद इन्हें पेंशन के अलावा अन्य किसी भी प्रकार की सुविधा एवं संसाधन उपलब्ध कराने का कोई औचित्य ही नहीं है।

नेताजी जिन सुविधाओं और संसाधनों का उपभोग करते हैं उस खर्च की भरपाई जनता के पैसे से ही होती है और यह पैसा जनता से टैक्स के रूप में लेकर सरकारी खजाने में जमा होता है। कई लोगों का कहना है कि टैक्स तो गिने चुने लोग देते हैं लेकिन मैं यहां स्पष्ट कर देना चाहती हूं की टैक्स देश का प्रत्येक नागरिक देता है। हां कुछ लोग प्रत्यक्ष रूप से टैक्स देते हैं और कुछ लोग अप्रत्यक्ष रूप से टैक्स देते हैं । देश का हर एक वह व्यक्ति जो एक माचिस की डिब्बी भी खरीदना है तो टैक्स देता है। और बीएमडब्ल्यू खरीदने वाला भी टैक्स पेयर है। इसलिए कभी किसी को ये गुरुर नहीं होना चाहिए कि फलां व्यक्ति टैक्स देता है और फलां टैक्स नहीं देता है। किसी को भी इस मामले में हेय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि जो सुविधा सामान्य कर्मचारियों को नहीं मिलती उनसे बढ़कर के सुविधाएं नेताजी  लेते हैं। सरकार की तरफ से बिजली, पानी,गाड़ी,बंगला यहां तक की गाड़ियों में डालने वाला पेट्रोल, रेल, हवाई जहाज की फ्री यात्रा का लाभ इन्हें क्यों मिलना चाहिए ? क्योंकि जब कोई कर्मचारी नौकरी से रिटायर्ड हो जाता है तो वह भी अपने स्वयं के खर्चे पर अपने संसाधन जुटाता है तो फिर इन राजनेताओं को इन संसाधनों को क्यों उपलब्ध कराया जाता है ? 

हजारों करोड़ का चंदा लेने वाली इन राजनीतिक पार्टियों को अपने उन नेताओं के वेतन भत्तों का खर्च स्वयं उठाना चाहिए जो जन प्रतिनिधि कहलाते हैं क्योंकि जब ये सत्ता से बाहर हो जाते हैं और जनता के लिए सरकार के बीच रहकर जब कोई काम ही नहीं करते तो फिर सरकार इनके आवास सुरक्षा आदि जैसे खर्च बहन क्यों करें। क्योंकि ये कोई समाज सेवक तो है नहीं, ये तो सरकार में रहकर नौकरी करते हैं और नौकरी के बदले लाखों रुपए सैलरी लेते हैं। जिस प्रकार एक सरकारी कर्मचारी सैलरी लेता है। यह सब बंद होना चाहिए।

जिस प्रकार कर्मचारियों के रिटायरमेंट की एक निश्चित सीमा होती है उसी प्रकार राजनेताओं के रिटायरमेंट की भी एक समय सीमा होनी चाहिए -दिव्या सिंह 

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