दाल रोटी घर दी, दिवाली अमृतसर दी...

गोल्डन टैंपल में जलाए 1 लाख दिये

दाल रोटी घर दी, दिवाली अमृतसर दी...

दिवाली और बंदी छोड़ दिवस के मौके पर अमृतसर के गोल्डन टैंपल में एक लाख दियों से भव्य रोशनी की गई। दरबार साहिब की इसी खूबसूरती के कारण कहा जाता है- दाल रोटी घर दी, दिवाली अमृतसर की। गुरुवार को दरबार साहिब में दो लाख से अधिक लोगों ने माथा टेका। शाम को पूरे सरोवर के चारों तरफ दिये जलाए गए और आतिशबाजी हुई। यहां संगत ने एक लाख दिये जलाए। पूरे भारत में हिंदू जहां श्री राम की अयोध्या वापसी पर दिवाली मनाते हैं, उसी तरह सिख धर्म में आज का दिन बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस उपलक्ष्य में पूरे दरबार साहिब को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया है। इससे सोने से बने इस मंदिर की खूबसूरती कई गुणा बढ़ गई है। देश-विदेश से आज के दिन आने वाले श्रद्धालुओं के लिए तैयारियां सुबह से ही शुरू हो गई थीं। 

लंगर में दाल-रोटी के अलावा खीर, जलेबी भी श्रद्धालुओं को परोसी गई। एसजीपीसी और श्रद्धालुओं ने शाम सरोवर के चारों तरफ 1 लाख दिये जलाए और आतिशबाजी भी हुई। बढ़ रहे प्रदूषण को देखते हुए दरबार साहिब में इस साल इको पटाखे ही चलाए गए। दिवाली के दिन श्री राम सीता माता और लक्ष्मण जी के साथ रावण पर विजय पाने के बाद अयोध्या लौटे थे। लेकिन सिख इतिहास में आज ही के दिन श्री गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने 52 राजाओं को अपनी सूझबूझ से मुगलों की कैद से छुड़ाया था। सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए बादशाह जहांगीर ने सिखों के 6वें श्री गुरू हरगोबिंद सिंह जी को बंदी बना लिया। उन्हें ग्वालियर के किले में कैद कर दिया , पहले से ही 52 हिन्दू राजा कैद थे। 

लेकिन संयोग से जब जहांगीर ने श्री गुरू हरगोबिंद सिंह जी को कैद किया, वह बहुत बीमार पड़ गया। काफी इलाज के बाद भी वह ठीक नहीं हो रहा था। काजी ने सलाह दी कि वह श्री गुरु हरगोबिंद सिंह जी को छोड़ दे। लेकिन श्री हरगोबिंद सिंह जी ने अकेले जाने से मना कर दिया और सभी राजाओं को रिहा करने के लिए कहा। गुरु हरगोबिंद सिंह जी की बात सुनने के बाद जहांगीर ने भी शर्त रख दी कि वही राजा उनके साथ बाहर जाएगा, जो उनके पहनावे की कली को पकड़ पाएगा। लेकिन श्री गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने एक ऐसा कुर्ता पहना, जिसकी 52 कलियां थी। जिसे पकड़ कर सभी 52 राजे ग्वालियर के किले से बाहर आ गए थे। उन्हीं के आजाद होने पर दिवाली के दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

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