Gripes on social media!

नए आईटी कानूनों को लागू करने के सवाल पर…

सोशल मीडिया पर शिकंजा !

इस साल 25 फरवरी को घोषित नए आईटी कानूनों को लागू करने के सवाल पर केंद्र सरकार और सोशल मीडिया कंपनियां आमने-सामने हैं। वॉट्सऐप तो इन कानूनों के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक और निजता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए इनके खिलाफ कोर्ट चला गया है। ट्विटर ने अदालत की शरण भले न ली हो, लेकिन एक बयान जारी कर कहा है कि वह इन कानूनों के उन प्रावधानों में बदलाव की वकालत करता रहेगा, जो अभिव्यक्ति की आजादी में बाधा डालते हैं। अन्य सोशल मीडिया कंपनियों ने कानून का पालन करने की मंशा जरूर जताई है, लेकिन वे भी अलग-अलग तरीकों से यह संकेत दे रही हैं कि इन कानूनों का पालन करने में काफी मुश्किलें हैं। जहां तक सरकार की बात है तो उसने अपना कड़ा रुख कायम रखते हुए वॉट्सऐप की आपत्तियों का तत्काल जवाब दिया। 

उसका कहना है कि लोगों के निजता के अधिकार का वह भी सम्मान करती है, लेकिन कोई भी अधिकार संपूर्ण नहीं होता। उसका कहना है कि एंड-टु-एंड एनक्रिप्शन भंग होने की जो बात वॉट्सऐप कह रहा है, वह आम यूजर्स के केस में वैसे भी लागू नहीं होती। यह कानून सिर्फ उन्हीं मामलों में लागू किया जाएगा, जहां देश की सुरक्षा, विदेश से संबंध और सार्वजनिक शांति व्यवस्था जैसे मामले जुड़े होंगे। हालांकि सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने, इनके जरिए फेक न्यूज फैलाने की जितनी शिकायतें आ रही हैं, उसके मद्देनजर इस पर विवेक का अंकुश लगाने की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। 

मगर ध्यान देने की बात यह भी है कि यह कानून सिर्फ सोशल मीडिया कंपनियों पर नहीं बल्कि मीडिया संस्थानों के डिजिटल संस्करणों पर भी लागू किया जाना है, जिनमें कॉमेंट सेक्शन होते हैं। इस पर अलग से भी काफी कुछ कहा जा चुका है कि मीडिया संस्थानों को इसमें शामिल करना न केवल अनावश्यक बल्कि खतरनाक भी है। लेकिन अभी तक सरकार ने इन कानूनों में किसी तरह का बदलाव लाने का संकेत नहीं दिया है। दूसरी बात यह कि कौन सा कंटेंट आपत्तिजनक माना जाएगा, यह तय करने का कोई आधार स्पष्ट नहीं है। 

जाहिर है, सोशल मीडिया कंपनियों को सभी कॉमेंट्स और संदेश अपने दायरे में रखने होंगे। पता नहीं किस कॉमेंट को आपत्तिजनक मान लिया जाए, किन संदेशों की ओरिजिन पूछ दी जाए। यानी वॉट्सऐप मेसेज भी भेजने वाले और पाने वाले के बीच सीमित चीज नहीं रह जाएंगे। भले सरकार कह रही हो कि इस कानून का इस्तेमाल सिर्फ उन्हीं मामलों में किया जाएगा, जिनमें और कोई उपाय न रह गया हो, लेकिन कोई उपाय रह गया है या नहीं, यह भी तो सरकार ही तय करेगी। पिछले दिनों सरकार ने सोशल मीडिया के खिलाफ जिस तरह का रुख दिखाया है, उससे संदेह बढ़ा है। बेहतर होगा कि सरकार इस मामले में बलपूर्वक आगे बढ़ने के बजाय बातचीत के जरिए संदेह दूर करते हुए आगे बढ़े।

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