G News 24 : विश्व के सबसे सफल डिप्लोमेट,हनुमान जी के अवतरण दिवस की,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...

 गंभीर चिंतक, महान कूटनीतिज्ञ, महाबुद्धिशाली और महान पराक्रमी ...

विश्व के सबसे सफल डिप्लोमेट,हनुमान जी के अवतरण दिवस की,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं...


पौराणिक ग्रंथों में हनुमान जी को प्रेम, करुणा, भक्ति, शक्ति और ज्ञान का प्रतीक बताया गया हैं. जनमानस में धारणा प्रबल है कि हनुमान जी पूजा से जीवन की सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं. अंजना और केसरी के पुत्र हनुमान को पवनपुत्र भी कहा जाता है. ये वायुदेव के रक्षक और सूर्य नारायण के शिष्य हैं. सूर्य देव से ही इन्हें वेदकोश, धनुर्वेद, गंधर्व विद्या, नीति, न्याय, प्रबंध और राजनीति की शिक्षा मिली.

हनुमान को क्यों कहा जाता दुनिया का सबसे सफल डिप्लोमेट !

चैत्र पूर्णिमा के दिन मंगलवार, 23 अप्रैल को हनुमान जयंती यानी हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाएगा. भगवान हनुमान रामायण के प्रचलित पात्रों में एक हैं. इन्हें कलियुग का जागृत यानी जीवित देवता कहा जाता है. इसलिए ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी आज भी धरती पर विराजमान हैं. क्योंकि इन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है. 

डिप्लोमेट यानी कूटनीतिज्ञ का काम है !

कूटनीतिज्ञ रिश्तों को बनाने और बनाए रखने के लिए चातुर्य और आपसी सम्मान का उपयोग करके बातचीत की कला और अभ्यास है. हालांकि कूटनीतिज्ञ की परिभाषा में अंतर हो सकता है. लेकिन सामान्य तौर पर कूटनीतिज्ञ बातचीत प्रणाली में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना और संघर्षों व विवादों को हल करने के उद्देश्य से किया गया संचार, बातचीत की प्रक्रिया और अभ्यास है.

हनुमान जी हैं महान कूटनीतिज्ञ !

  • भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी भगवान श्रीकृष्ण और हनुमान जी को विश्व का सबसे महान कूटनीतिज्ञ मानते हैं. इनके अनुसार, हनुमान जी तो कूटनीति को भी पार कर गए थे. 
  • वो लंका गए और वहां उन्होंने माता सीता से संपर्क किया. लंका में आग भी लगाई. एस. जयशंकर ने कूटनीतिज्ञ को परिभाषित करते हुए कहा था कि, कूटनीति के दृष्टिकोण से हमें श्रीकृष्णजी और हनुमानजी की ओर देखना चाहिए तब जाकर उनकी महानता का पता चलेगा.
  • ‘हनुमानजी को कौन सा कार्य सोंपा गया था?’, ‘वह कार्य हनुमान जी ने किस प्रकार पूरा किया?’, अपनी बुद्धीमत्ता का परिचय देते हुए वे इतने आगे निकल गए कि, उन्होंने कार्य तो पूरा किया ही, साथ ही आगे जाकर लंका भी जलाई .

हनुमान जी में थे ये कूटनीतिज्ञ गुण

  • वफादारी - सूर्य देव से वेदकोश, धनुर्वेद, गंधर्व विद्या, नीति, न्याय, प्रबंध और राजनीति की शिक्षा प्राप्त करने के बाद हनुमान किष्किंधा नरेश वानरराज सुग्रीव के दरबार के मंत्री बने. मंत्री पद में वफादारी की विशेष जरूरत होती है, जिसेस राजा और राज्य की रक्षा हो. जब सुग्रीव को वालि ने गद्दी से उतारा तो वे ऋष्यमूक पहाड़ी पर चले गए. इसके बाद हनुमान ने कठिन परिस्थिति में सुग्रीव को वालि के हमलों से बचाया.
  • जासूसी व चतुराई - सुग्रीव ने जब हनुमान को राम और लक्ष्मण के ऋष्यमूक पर्वत पर जाने का कारण पूछने के लिए भेजा तो वे अपना भेष बदलकर वहां गए. इससे हनुमानजी की जासूसी क्षमता की झलक मिलती है. हनुमान जी ने शांत, संयमित और बड़े ही चतुराई से राम-लक्ष्मण से बात कर उनकी प्रशंसा की. जब उन्होंने राम और लक्ष्मण के मन को पढ़ लिया तब जाकर उन्होंने अपनी पहचान और उद्देश्य को उजागर किया. हनुमान की बातें सुनकर रामजी ने उनकी प्रशंसा की और ऋष्यमूक जाने का कारण भी बताया. इस तरह से हनुमान जी ने अपनी कूटनीतिज्ञ कुशलता का परियच दिया.
  • इसके बाद हनुमान राम को ऋष्यमूक पहाड़ी पर सुग्रीव के गुफा ले गए और इसी स्थान पर राम और सुग्रीव मित्र व सहयोगी बने. इससे हमें यह सीख मिलती है कि भले ही दो सहयोगियों का लक्ष्य समान न हों फिर भी यह जरूरी है कि दोनों अपने-अपने लक्ष्यों को पूरा करने में एक-दूसरे की सहायता करें. जैसा कि हनुमान जी के कारण राम और सुग्रीव के बीच संभव हो पाया.

जब लंका में रामदूत बनें हनुमान

सुग्रीव और राम दोनों कुछ ही समय में हनुमान की क्षमता, कौशल और गुणों को जान चुके थे. इसलिए उन्होंने हनुमान को माता सीता की खोज के लिए दक्षिण की ओर भेजा.मार्ग में कई चुनौतियां आईं, जिसे पार करते हुए हनुमान ने यात्रा जारी रखी और लंका पहुंच गए. उन्होंने यहां सभी चीजों का बारीकी से अवलोकन किया और अशोक वाटिका के पास पहुंच गए, जहां माता सीता थीं. माता सीता से मिलकर हनुमान ने उन्हें रामजी का संदेश दिया.लंका में रावण हनुमान जी को पकड़कर उसे मृत्युदंड देना चाहता था. लेकिन विभीषण और कुंभकर्ण ने हनुमान को अन्य प्रकार से दंडित करने का सुझाव दिया. हनुमान जी ने इस अवसर का लाभ उठाया और पूरी लंका ही जला डाली.

राम दुआरे तुम रखवारे,

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।

ज्ञान और गुण के सागर में हनुमान का बहुत महत्व और प्रताप है, जो राम के मन में बसते हैं और उनके द्वार पर द्वारपाल की तरह विराजमान हैं. यानी रामजी के द्वार पर हनुमान का पहरा है. हनुमान जी वहां के रखवाले हैं. इनकी आज्ञा और अनुमति के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता है. तभी तो अपने प्रिय हनुमान के लिए, श्रीमद्वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा कांड के श्लोक में राम जी हनुमान की इस प्रकार से स्तुति करते हैं-

सचिवोऽयं कपिन्द्रस्य सुग्रीवस्य महात्मनः।

तमेव काङ्क्षमंस्य ममन्तिकमुपागतः4.3.26।।

यहां वानरों के महान सरदार सुग्रीव के मंत्री हैं, जिन्हें मैं देखना चाहता हूं.

तमभ्यभाषमित्रे सौग्रीव सचिवं कपिम्।

वाक्यज्ञं मधुर्वाक्यैस्नेहयुक्तमरिन्दम।।4.3.27।।

हे सौमित्री, शत्रुओं को जीतने वाला यह वानर, सुग्रीव का मंत्री, मैत्रीपूर्ण संचार में कुशल है. उसे सौम्य और मधुर शब्दों में उत्तर दें.

नानृग्वेदविनीतस्य नायजुर्वेदधारिणः।

नासामवेदविदुषश्च्यमेवं विभाषितुम्4.3.28।।

जब तक ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में पारंगत न हो, निश्चित रूप से किसी के लिए भी इतनी अच्छी तरह से बोलना संभव नहीं है.

नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा श्रुतम्।

बहु व्याहर्ताऽनेन न किञ्चिदपशब्दितम्4.3.29।।

निश्चित रूप से ऐसा लगता है कि उन्होंने पूरे व्याकरण का अच्छी तरह से अध्ययन किया है, क्योंकि उनके पूरे भाषण में एक भी गलत उच्चारण नहीं है.

न मुखे उत्सवयोर्वपि ललते च भ्रुवोस्तथा।

अन्येष्वपि च गत्रेषु दोषसंविदितः क्वचित्4.3.30।।

उसके चेहरे, आंखों, माथे, भौंहों के बीच या उसके शरीर के किसी भी हिस्से में कोई दोष नहीं.

अविस्त्रमसन्दिग्धमविलम्बितमद्रुतम्।

उर्स्थं कण्ठगं वाक्यं वर्तते मध्यमे स्वरे4.3.31।।

उनके वाक्य बहुत विस्तृत नहीं हैं, अस्पष्ट नहीं हैं, खींचने वाले नहीं हैं, तेज़ नहीं हैं, छाती या गले में उभरे हुए हैं, मध्यम स्वर में हैं.

संस्कारक्रमसम्पन्नामद्रुतमविलम्बिताम्।

उच्चार्यति कल्याणीं वाचं हृदयहारिणीम्4.3.32।।

उनकी बातें शुभ हैं. वे परिष्कृत हैं. न तेज, न धीमी, उनकी बातें दिल को मोह लेती है.

अन्या चित्रया वाचा त्रिस्थानव्यंजनस्थया।

कस्य नाराध्यते चित्तमुद्यतासेरेरपि4.3.33।।

उनके रंगीन शब्द तीनों स्रोतों से प्रवाहित होते हैं. उनकी छाती के नीचे से, उनके गले से और उनके सिर से. यदि कोई शत्रु ही हो जिसके हाथ में तलवार हो तो भी किसका मन उनकी पूजा नहीं करेगा?

एवं विदो यस्य दूतो न भवेत्पार्थिवस्य तु।

सिद्धयन्ति हि कथं तस्य कार्याणां गतियोऽनघ4.3.34।।

हे निष्पाप, कोई राजा, चाहे वह कोई भी हो, ऐसे राजदूत के साथ अतीत में अपना लक्ष्य कैसे पूरा नहीं कर सकता?

एवं गुणगणैर्युक्ता यस्य सयुः कार्यसाधकः।

तस्य सिध्यन्ति सर्वार्थ दूतवाक्यप्रचोदिताः4.3.35।।

जिसके पास अपने दूत जैसे महान गुणों वाले महान कार्यपालक हों, वह अपने कूटनीतिक कौशल से प्रेरित होकर अपने सभी लक्ष्य पूरे कर सकता है.

हनुमान जी को अमरता के साथ इन्हें अलग-अलग देवी-देवताओं से कई वरदान मिलें। 

  • सीता से मिला वरदान - माता सीता से हनुमान जी को अमरत्व का वरदान मिला. जब माता सीता की खोज में हनुमान जी अशोक वाटिका पहुंचे तो इन्हें माता सीता ने अमरत्व का वरदान देते हुए कहा कि वे युगों-युगों तक रामभक्तों की रक्षा करते रहेंगे.
  • सूर्य से मिला वरदान- हनुमान को सूर्यदेव से तेज का प्राप्त हुआ. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्यदेव ने हनुमानजी को अपना सौवां अंश वरदान दिया.
  • कुबेर से मिला वरदान - कुबेर देवता से ही हनुमान को गदा प्राप्त हुई है. गदा के साथ ही उन्होंने हनुमान को यह वरदान भी दिया कि, युद्ध में उन्हें कोई परास्त नहीं कर पाएगा.
  • यमराज से मिला वरदान - यमराज से हनुमान जी को यह वरदान मिला कि, वो कभी भी उनके पास नहीं जाएंगे. क्योंकि उन्हें अमरत्व का वरदान पहले ही मिला है.
  • शिव से मिला वरदान - हनुमान जी को शिव का 11वां रुद्रावतार कहा जाता है. शिव ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि, उन्हें कभी भी किसी अस्त्र से मारा नहीं जा सकेगा.
  • इंद्र से मिला वरदान - पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार हनुमान और इंद्र के बीच युद्ध हुआ. युद्ध में ही इंद्र ने हनुमान को यह वरदान दिया कि भविष्य में कभी भी उनके वज्र का प्रभाव हनुमानजी पर नहीं पड़ेगा.
  • विश्वकर्मा से मिला वरदान - भगवान विश्वकर्मा ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि, उनके द्वारा बनाए गए अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव भी हनुमान पर नहीं पड़ेगा.
  • ब्रह्मा से मिला वरदान - ब्रह्मा जी से हनुमान को दीर्घायु का वरदान मिला.

इस तरह से भगवान हनुमान को कई देवी-देवताओं से अलग-अलग वरदान प्राप्त हुए, जिससे वो पराक्रमी,अमर, बलशाली और शक्तिशाली बनें. लेकिन बलशाली होने के साथ ही हनुमान जी एक सफल कूटनीतिज्ञ भी थे. आइये जानते हैं कूटनीतिज्ञ का अर्थ 


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