G News 24 : "Wish You All Happy Lohdi " ख़ुशी में झूमने का अवसर देता है लोहड़ी

मौसमी परिवर्तन का सूचक है लोहड़ी... 

"Wish You All Happy Lohdi " ख़ुशी में झूमने का अवसर देता है लोहड़ी 


लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है,यह मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है। आम तौर पर इस पर्व की रात्रि में किसी खुले स्थान में परिवार एवं आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बनाकर बैठते हैं तथा इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाकर पर्व मनाते हैं। लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है। यह प्राय: 12 या 13 जनवरी को पड़ता है। यह मुख्यत: पंजाब का पर्व है,  लोहड़ी की पूजा के समय लकड़ी+ओह (गोहा = सूखे उपले) +रेव्ड़ी (रेवड़ी)मक्की के दाने बने फुल्ले,मूंगफली आदि को पारंपरिक तरीके से नाचते -गाते हुए आग में अर्पित किये जाते है।  ये सभी  'लोहड़ी' के प्रतीक हैं। पूस-माघ की कड़कड़ाती सर्दी से बचने के लिए आग भी सहायक सिद्ध होती है-यही व्यावहारिक आवश्यकता 'लोहड़ी' को मौसमी पर्व का स्थान देती है।

पूर्वांचल में 'खिचड़वार' और दक्षिण भारत के 'पोंगल' पर भी-जो 'लोहड़ी' के समीप ही मनाए जाते हैं

लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से 'त्योहार' (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 'खिचड़वार' और दक्षिण भारत के 'पोंगल' पर भी-जो 'लोहड़ी' के समीप ही मनाए जाते हैं-बेटियों को भेंट जाती है। लोहड़ी से 20-25 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है।

लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होने की खुशी में भी मनाया जाता है 

जिन परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर बराबर रेवड़ी बाँटते हैं। लोहड़ी के दिन या उससे दो चार दिन पूर्व बालक बालिकाएँ बाजारों में दुकानदारों तथा पथिकों से 'मोहमाया' या महामाई (लोहड़ी का ही दूसरा नाम) के पैसे माँगते हैं, इनसे लकड़ी एवं रेवड़ी खरीदकर सामूहिक लोहड़ी में प्रयुक्त करते हैं। लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरयानी लोगो का प्रमुख त्यौहार माना जाता है।  लोहड़ी का त्यौहार फसलों की कटाई का प्रतीक है। इस दिन किसान अपनी नई फसलों की पूजा करते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें अच्छी फसल प्रदान करें।

इस दिन सूर्य देव का उत्तरायण होता है

सबसे पहले, यह त्यौहार सूर्य देव की पूजा करने के लिए मनाया जाता है। सूर्य देव को जीवन का स्रोत माना जाता है और इस दिन सूर्य देव का उत्तरायण होता है। उत्तरायण का अर्थ है कि दिन अब लंबे होने लगेंगे और रातें छोटी होने लगेंगी। इस कारण इस दिन को नए जीवन का प्रतीक माना जाता है। तीसरे, लोहड़ी का त्यौहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए लोहड़ी जलाकर उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

लोहड़ी को दुल्ला भाटी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं

लोहड़ी को दुल्ला भाटी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं। लोहड़ी की सभी गानों को दुल्ला भाटी से ही जुड़ा तथा यह भी कह सकते हैं कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भाटी को ही बनाया जाता हैं। दुल्ला भाटी मुगल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था! उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भाटी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी की सभी व्यवस्था भी करवाई। दुल्ला भाटी एक विद्रोही था और जिसकी वंशावली भाटी थी। उसके पूर्वज भाटी शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था।

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