G News 24 : सत्ता की चमक के आगे बौना साबित हो रहा है‌ कानून !

 कानून का डंडा सिर्फ सामान्यजन के लिए है,खास के लिए तो ये खिलोना है !

सत्ता की चमक के आगे बौना साबित हो रहा है‌ कानून !

कुछ वर्षो से लगातार देखने में आ रहा है कि जिनके पास पैसा है,पॉलिटिकल पॉवर है समाज में जिनकी एक पोजीशन है उनके लिए कानून और उससे जुड़ी सुरक्षा एजेंसियों की कार्यवाही किसी खेल से कम नहीं है और कार्रवाई के बाद जिस प्रकार की नौटंकी इन सुरक्षा एजेंसियों, केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ अदालतों के बीच देखने को मिलती है। वह डिजिटल और सोशल मीडिया के जमाने में किसी से छिपी नहीं है। जबकि सामान्यजन के लिए कोर्ट-कचहरी की कारवाई तय समय अंदर हर हाल में जिम्मेदार एजेंसी पूरी कर लेती है,लेकिन बात जब खास की आती है तो सब नियम कायदे धरे के धरे रह जाते हैं। वर्तमान समय में जिस तरह की दोगली राजनीति के चलते सत्ता की धमक के आगे आज कानून कितना बोना साबित हो रहा है। सबके सामने हैं।

अक्सर देखने में आता है कि अगर कोई व्यक्ति किसी छोटे-मोटे झगड़े या 1000-2000 हजार की रिश्वतखोरी,भ्रष्टाचार, एक्सीडेंट या छेड़खानी जैसे किसी मामले में नामजद मात्र हो जाए फिर देखिए एजेंसियों के कार्य करने की रफ्तार, अदालतों के फैसले देने की रफ्तार, इस रफ्तार को देखकर तो ऐसा लगता है कि देश में बस रामराज्य आ गया है तभी तो दोषियों को तुरंत सजा मिल रही है। सामान्यजन को सीधे जेल ! कारण क्योंकि वो सामान्यजन है उसके पास पैसा नहीं है, कोई उसका राजनीति आका नहीं होता है, समाज में उसकी कोई प्रतिष्ठा नहीं है यही कारण है कि वो हाईकोर्ट,सुप्रीम कोर्ट तक की बात तो वो सोच भी नहीं सकता है। उसे तो sdm कोर्ट और जिला अदालत ही सीधे जेल की हवा खिला देती है। 

लेकिन जब इसका दूसरा पहलू देखते हैं तो पता चलता है कि इन अपराधों से कई गुना  बड़े गुनाह करने वाले और राजनीतिक गलियारों में गहरी पैठ रखने वाले खास लोग, पैसे और पावर की दमपर कानून का मजाक कैसे बनाते हैं ? सुरक्षा एजेंसियों को अपने हाथों की कठपुतली की तरह यूज़ करते है। सभी जानते हैं। ये खास लोग गिरफ्तारी से बचने के लिए कैसे कानून के साथ आंख-मिचोली खेलते हैं, देश इन दिनों देख रहा है। अदालत भी इनके हाथ का खिलौना बन चुकीं  हैं। ये जेल जाने से बचने के लिए रात के 2:00 बजे 3:00 बजे जब मर्जी चाहे तब अदालतों के दरवाजे खुलवा लेते हैं। जज साहब भी रात में ही इनके वकीलों को स्टे और आदेश जारी कर देते है। जबकि आम व्यक्ति  के लिए अदालतों के दरवाजे सांय 5:00 बजे के बाद अक्सर बंद हो जाते हैं। 

ऐसा लगता है कि इन अदालतों में बैठने वाले जज ना होकर सरकारों के हाथ की कठपुतलियां बैठी है। ऐसा माहौल देखकर तो यही लगता है कि अब इन अदालतों  एवं किराने की दुकान में कोई फर्क नहीं रह गया है। जैसे कि जब हमें कुछ जरुरत का सामान चाहिए होता है तो कभी भी हम किराने वाले की दुकान का दरवाजा खटखटा देते हैं और अपनी जरुरत का सामान ले लेते हैं वैसा ही कुछ अब अदालतों देखने को मिल रहा है। जब कुछ खास लोग इन अदालतों का कभी भी दरवाजा खुलवा लेते है फिर चाहे दिन हो या रात हो। आज और वकील दुकानदार की भूमिका में दिखाई पढ़ते हैं। जो अपने खास ग्राहक को अपनी सेवा देने के लिए तत्पर दिखाई पढ़ते हैं।  सजा से बचने के लिए यह खास अपराधी पहले जिला कोर्ट जाते हैं फिर हाई कोर्ट जाते हैं और जब वहां से भी कोई  राहत नहीं मिलती तो सुप्रीम कोर्ट में जाकर के अग्रिम जमानत और स्टे ले लेते हैं और फिर बड़ी शान के साथ छाती चौड़ी करके पीड़ित के सामने जाकर अपना रुतबा दिखाते हैं। 

अरविंद केजरीवाल और शाहजहां शेख आदि जैसे खास आदमी कैसे जांच एजेंसियों, सुरक्षा एजेंसियों और अदालतों का मजाक कैसे बनाते हैं यह सभी जानते हैं। किसी के 7, किसी के 8 और किसी के 9 संमन जारी हो रहे हैं। फिर भी एजेंसीज इन खास लोगों को गिरफ्तार नहीं कर पा रही है। और अगर गिरफ्तार कर भी लेती है तो सजा नहीं दिलवा पा रही है। क्या यहां अदालत की तौहीन नहीं है ? यहां ये कानून का मजाक नहीं उड़ा रहे हैं ? फिर भी अदालत इन्हें सजा नहीं दे पा रही है। इसके ठीक हो उलट अगर एक सामान्य व्यक्ति अदालत में जज के सामने भूलवश कुछ बोल भी दे। या उससे अदालत का एक भी संमन चूक जाए तो इसे अदालत का अपमान मानकर जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया जाता है।  इस प्रकार की व्यवस्था,इस प्रकार का भेद-भाव, आम और खास के बीच देखने को मिल मिल रही है ! ये हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि हमारे देश में क्या अलग-अलग कानून और अदालतें हैं जो आम के लिए एक नजरिया और खास के लिए दूसरा नजरिया अपनाते हुए दिखाई देत हैं।

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