मप्र के किसानाें से पंजाब की क्या दुश्मनी : शिवराज

बासमती चावल पर उबली सियासत 2  मुख्यमंत्री आमने-सामने…

मप्र के किसानाें से पंजाब की क्या दुश्मनी : शिवराज

मप्र के बासमती चावल की जीआई टैगिंग को लेकर चल रहे विवाद के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चाैहान और पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह आमने-सामने आ गए हैं। बुधवार को कैप्टन ने बासमती की जीआई टैगिंग काे लेकर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार काे पत्र लिखा था। गुरुवार काे शिवराज ने इसका जवाब दिया। उन्हाेंने कैप्टन से पूछा कि कांग्रेस सरकार काे मप्र के किसानाें से क्या दुश्मनी है। मप्र में बासमती की पैदावार के बरसों पुराने दस्तावेज हैं। फिर भी जीआई टैग का विरोध अनुचित है। शिवराज ने प्रधानमंत्री काे पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने कहा कि मामला मप्र या पंजाब का नहीं, पूरे देश के किसान और उनकी आजीविका का विषय है। जहां तक बात पाकिस्तान की है तो उनके साथ कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के मामले का मप्र के दावों से कोई संबंध नहीं है। क्योंकि यह भारत के जीआई एक्ट के तहत आता है और इसका बासमती चावल के अंतर्देशीय दावों से कोई जुड़ाव नहीं है।

मप्र ने पक्ष में दिए तर्क -

पंजाब-हरियाणा के बासमती निर्यातक मप्र से बासमती चावल खरीद रहे हैं।

केंद्र सरकार 1999 से मप्र को बासमती के ‘ब्रीडर बीज’ की आपूर्ति कर रही है।

‘सिंधिया स्टेट’ के रिकॉर्ड में अंकित है कि 1944 में प्रदेश के किसानों को बीज मिले थे।

हैदराबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च ने अपनी ‘उत्पादन उन्मुख सर्वेक्षण रिपोर्ट’ में दर्ज किया है कि मप्र में पिछले 25 वर्ष से बासमती चावल का उत्पादन किया जा रहा है।

कांग्रेस के नेशनल मीडिया कोऑर्डिनेटर अभय दुबे ने कहा-'बीजेपी भ्रम फैला रही है. मद्रास हाई कोर्ट में चले मामले में एपीडा की तरफ से ही विरोध किया गया था. मध्य प्रदेश में 15 साल बीजेपी की सरकार रही, लेकिन अब तक बासमती जीआई टैग से महरूम है. कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता ने तो यह आरोप भी लगाए कि बीजेपी केवल पंजाब के मुख्यमंत्री का जिक्र कर रही है, जबकि हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने भी मध्य प्रदेश को जीआई टैग को लेकर आपत्ति जताई है.

ये है बासमती का अर्थ शास्त्र -

लजीज खुशबू और लंबे आकार के कारण बासमती मशहूर है.

हर साल करीब 15 लाख टन बासमती का निर्यात होता है.

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर को बासमति का टैग मिल चुका है.

प्रदेश को करीब 32 हजार करोड़ रुपये कमाई इसके 

भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश बासमती उत्पादक देश है.

चीन और ब्राजील भी बासमती की कमी को पूरा करने वाले देशों में हैं.

खाड़ी देशों में सबसे ज्यादा बासमती चावल की डिमांड है.

भारत से ईरान में 21.7%, साउदी अरब में 20%, यूएई में 10.5%, इराक में 10.4%, यूरोप में 9% निर्यात होता है.

मध्य प्रदेश को बासमती का पेटेंट यानी जीआई टैग मिला तो डिमांड की पूर्ति के साथ किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी.

मध्य प्रदेश के बासमती उत्पादकों को फिलहाल अधिकतम 34 रुपए प्रति किलो का भाव मिलता है.  जीआई टैग के बाद इसके दाम 124 रुपए प्रति किलो हो सकते हैं.

मध्यप्रदेश के किसान विदेशों में चावल निर्यात करके लगभग तीन हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा प्रतिवर्ष का लाभ पहुंचाते हैं. जीआई टैग से आमदनी दोगुना हो सकती है.

मध्यप्रदेश के 13 जिलों मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर और नरसिंहपुर में बासमती का उत्पादन होता है.

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