शब्दों से करती हूँ शहर की चुप्पी तोड़ने आव्हान : निशि भदौरिया

ऑनलाइन महिला साहित्यकार गोष्ठी का हुआ आयोजन...

शब्दों से करती हूँ शहर की चुप्पी तोड़ने आव्हान : निशि भदौरिया


मध्यभारतीय हिंदी साहित्य सभा में मासिक महिला साहित्यकार गोष्ठी का आयोजन किया गया ऑनलाइन आयोजित इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में पुणे की श्रीमती समीक्षा तैलंग उपस्थित रही। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती रश्मि सवा जी ने की और सारस्वत अतिथि के रूप में सुश्री कुंदा जोगलेकर जी संगोष्ठी में उपस्थित रही।

ऑनलाइन आयोजित इस संगोष्ठी में नगर की प्रतिष्ठित महिला साहित्यकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं का पाठ किया जिनमें श्रीमती सुनीता पाठक जी ने-सात समुदर पर शीर्षक से अपनी कविता का पाठ किया  श्रीमती प्रेक्षा नाइक ने भारत माता का ऐसा सपूत ही राष्ट्र पिता कहलाता है कविता का सस्वर वाचन किया श्रीमती ज्योति उपाध्याय जी ने  श्रीमती संगीता गुप्ता जी  ने समसामयिक दोहो की मधुर प्रस्तुति दी ।श्रीमती निशी भदोरिया ने अपनी रचना के माध्यम से पूरे ग्वालियर नगर का भ्रमण करवाया।

सुश्री मनीषा गिरी ने भी अपनी सामायिक रचना का पाठ कर संगोष्ठी को गति दी। सुश्री व्याप्ति उमड़ेकर  श्रीमती अपर्णा तिवारी की स्त्री विमर्श की कविताओं ने सबको मंत्र मुग्ध कर दिया । कार्यक्रम में श्रीमती पुष्पा मिश्रा,श्रीमती उमा उपाध्याय, श्रीमती मंजुलता आर्य  श्रीमती लक्ष्मी शर्मा, श्रीमती दीप्ति गौड़ ने भी अपनी प्रभाव शाली प्रस्तुति दी।

कार्यक्रम में श्रीमती वंदना कुशवाह ने अपने मुक्तकों का ,सुश्री मंदाकिनी शर्मा ने लम्बी उमर लघुकथा का,श्रीमती चारु मिश्रा ने कहानी बटवारा और श्रीमती सीमा जैन ने भी अपनी लघुकथा का,श्रीमती समीक्षा तेलंग ने अपनी व्यंग्य रचना का श्रीमती सुनीति वेस जी श्रीमती रश्मि सवा जी ने अपनी गजल का पाठ किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती सुबोध चतुर्वेदी जी एवं सुश्री कुंदा जोगलेकर जी और गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी की रचनाये विशेष प्रभावी रहीं।


इस अवसर पर श्रीमती ज्योत्स्ना सिंह,सुश्री शिवानी गोस्वामी, सुश्री शिखा श्रीवास्तव,श्रीमती करुणा सक्सेना जी, शिवपुरी से श्रीमती पद्मा शर्मा जी ,उदयपुर से श्रीमती ममता जोशी जी,जयपुर से राधा सोनी जी  दिल्ली से डॉ मंजू रानी खंडेलवाल जी ऑनलाइन उपस्थित रहीं। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती प्रतिभा द्विवेदी जी ने किया। आभार श्रीमती मंजुलता आर्य जी ने एवं कार्यक्रम का संयोजन श्रीमती वंदना कुशवाह और डॉ मंदाकिनि शर्मा ने किया।

प्रेक्षा नाइक की प्रस्तुति सुमधुर आवाज में थी। कविता सुंदर है। लेकिन कवि को  साहित्यिक मंच पर किसी पर व्यक्तिगत कविता पाठ से बचना चाहिए।
व्याप्ति उमड़ेकर की ओजस्वी आवाज में कविता सुनी। नवसृजन की आशा को सृजित किया। बहुत सुंदर।
उमा उपाध्याय जी ने मांं पर लिखा। इस एक शब्द की गाथा कुछ शब्द में कभी नहीं कही जा सकती। फिर भी सुंदर सार्थक कोशिश।

लक्ष्मी शर्मा जी ने सुंदर आवाज में प्रस्तुति दी। कहीं कोरोना तो नहीं आया। समसामयिक खूबसूरत रचना है।
मनीषा गिरि जी की रख हौंसला तू अपनी उडान पर, सुंदर प्रस्तुति है। आशावादी कविता।
अपर्णा तिवारी जी की कविता रुई से हल्की लडकियां, बहुत भारी बात। सुंदर अभिव्यक्ति।
पुष्पा मिश्रा मेरा भी उड़ने का मन एक अच्छी प्रस्तुति।

ज्योति उपाध्याय ने कोरोना पर कविता दी। बहुत ही हुंकार भरी प्रस्तुति। कोरोना भगाने के सारे उपक्रम सार्थक शब्दों में।
निशि भदौरिया जी के शब्द शहर की घुप्पी को तोड़ने आव्हान कर रही है। आशा के उद्गार अपने शहर, देश से।
संगीता गुप्ता जी के दोहे समसामयिक और आज की स्थिति पर रोष व्यक्त कर रहे हैं। बहुत बढिया। सस्वर दोहा प्रस्तुति।
डॉ.दीप्ति गौड़ बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। आज के समय में ऐसी ही रचनाओं की आवश्यकता है। मानव को चेतावनी देती कविता।

मंदाकिनी शर्मा की रिश्तों को सीख देती बालमन द्वारा रेखांकित की हुई लघुकथा मन को छू ली। कडवी सच्चाई को बखान करती बहुत सुंदर प्रस्तुति।
डॉ. मंजुलता आर्य की रचना जिंदगी पर कविता जीवन दर्शन के अलग अलग रूपों को व्यक्त करती है। जैसा चाहोगे वैसी ये बन जाएगी।
वंदना कुशवाहा जी के दोनों ही मुक्तक बहुत बेहतरीन। समय ही कैसे परिस्थितियों में विरोधाभास पैदा करता है, बहुत सुंदर शब्दों में पिरोया आपने।

सुनीति बैस जी की खूबसूरत ग़ज़ल। मकान हूं मैं बना दिया है, वाह!!
गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी दूधवाले का बेइंतहा दर्द बाखूबी, बहुत सुंदर। एक उम्मीद की किरण दिखाती रचना
सुनीता पाठक जी की कविता संसार का यही नियम है। मां ऐसी ही होती है। बहुत सुंदर भाव।

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